एमपीयूएटी का 26वां स्थापना दिवस समारोह

जनजाति कृषकों के हितार्थ कार्यक्रम चलाए एमपीयूएटी: डॉ. सारस्वत
शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास पर रहेगा पूरा फोकस: डॉ. प्रताप सिंह
उदयपुर
। जनजाति बहुल विशाल भौगोलिक भू-भाग, मृदा संरचना, जलवायु एवं छोटी-छोटी जोत के चलते दक्षिणी राजस्थान की शेष प्रदेश से अपनी अलग पहचान है। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को इन बातों को दृष्टिगत रखकर कार्यक्रम चलाने होंगे ताकि लघु-सीमांत आदिवासी कृषकों का उद्धार हो तथा उनके आर्थिक स्तर को सुधारा जा सके। कोटा कृषि विश्वविद्यालय एवं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलगुरू डॉ. भगवती प्रसाद सारस्वत ने शनिवार को यह उद्गार व्यक्त किए। डॉ. सारस्वत राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में एमपीयूएटी के 26 वें स्थापना दिवस समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। समारोह की अध्यक्षता एमपीयूएटी के नवनियुक्त कुलगुरू डॉ. प्रताप सिंह ने की।


डॉ. सारस्वत ने कहा कि किसी भी कुलगुरू का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और स्थापना दिवस आत्मावलोकन का दिन होता है। एमपीयूएटी ने अब-तक जो उपलब्धियां हासिल की, उन पर गर्व करें और जो कार्य नहीं हो पाए, मंथन कर उनकी क्रियान्विति करें। उन्होंने पूर्ण विश्वास के साथ कहा कि डॉ. प्रताप सिंह जैसे ऊर्जावान कुलगुरू के नेतृत्व में एमपीयूएटी आगामी वर्षों ने नए कीर्तिमान छुएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के नवनियुक्त कुलगुरू डॉ. प्रताप सिंह ने कहा कि आज देवउठनी एकदशी पर विश्वविद्यालय का 26 वां स्थापना दिवस समारोह होना सुन्दर संयोग है। उन्होंने मंच पर मौजूद मप्रकृप्रौविवि के 6 पूर्व कुलगुरूओं को देवतुल्य बताते हुए कहा कि आज सभी देवता जगे हुए हैं।


उन्होंने कहा कि उनका पूरा फोकस शिक्षा के साथ कौशल विकास पर रहेगा। सभागार में बड़ी संख्या में मौजूद छात्र-छात्राओं का आह्वान किया कि वे डिग्री लें और पूरी तन्मयता से काम शुरू करें तथा दूसरों को भी प्रेरित करें। विश्वविद्यालय में मानव संसाधन और वित्तीय प्रबन्धन बड़ी चुनौती है। तीन ’पी’ का उल्लेख करते हुए कहा कि पर्सन, पे और पेंशन जैसी चुनौतियों का हल निकालने में पूरी ताकत लगाकर काम करेंगे। हालांकि इन सबके इर्द-गिर्द एक अनकहा तनाव रहता है। कभी यह कहावत ’जल बिन सब सून’ सार्थक लगती थी, लेकिन आज ’धन बिन सब सून’ जैसी नौबत है।
डॉ. प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री के ’विकसित भारत – 2047’ के प्रण को साकार करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों से समग्र सोच के साथ अपना योगदान देने का आह्वान किया। वैश्विक परिवर्तन एवं भविष्य की चुनौतियों के दौर में कृषक और उनके परिवार की पीड़ा को समझना होगा। हाल ही विदाई के बाद पुनः लौटे मानसून ने किसानों की आंखों में आंसू ला दिए। खलिहान में कटी पड़ी फसलें बारिश से सड़-गल गई। शोध, शिक्षा और प्रसार के क्षेत्र में नवाचार लाने की जरूरत है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी व प्राकृतिक खेती पर ज्यादा जोर देना होगा।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि एमपीयूएटी के निवर्तमान कुलगुरू डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश में वर्तमान में 74 कृषि विश्वविद्यालय है। जोबनेर के बाद दूसरा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय राजस्थान में कृषि शिक्षा का ध्वजवाहक माना जाता है। विगत तीन वर्षों में एमपीयूएटी ने 45 पेटेन्ट हासिल किए। आज 58 पेटेन्ट के साथ हम देश में शीर्ष पर है। एमपीयूएटी में शिक्षा, शोध और प्रसार का अनूठा संगम देखने को मिलता है। इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध सभी कृषि विज्ञान केन्द्र आई.एस.ओ. सर्टिफाईड है। सौर ऊर्जा, स्मार्ट विलेज सहित कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य हुए और भविष्य में कई कीर्तिमान एमपीयूएटी रचेगा।
विशिष्ट अतिथि पूर्व कुलगुरू डॉ. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि स्थापना के बाद एमपीयूएटी ने अब तक लगभग 15 कुलगुरू देखे हैं। इनमें 10 तो इसी विश्वविद्यालय से निकले हुए छात्र हैं। उन्होंने हर वर्ष फरवरी में लगने वाले फ्लावर शो को पुनः आरम्भ करवाने का आग्रह किया। साथ ही कार्मिकों की कमी से बन्द हो चुके अनुसंधान, डिप्लोमा कोर्स पुनः आरम्भ करने को कहा। एक जिला – एक उत्पादन तथा लोकल फॉर वोकल थीम पर कार्य करने की जरूरत बताई। एमपीयूएटी ने जो पेटेन्ट हासिल किए है, उन्हें उद्योग अंगीकार करें, तभी इनकी सार्थकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर), नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक रहे व एमपीयूएटी के कुलगुरू डॉ. एन.एस. राठौड़ एवं डॉ. एस.एल. मेहता ने कहा कि हमें कभी-भी अपनी कमजोरियां नहीं बल्कि सकारात्मक रूप से सम्भावनाओं को देखना चाहिए। निसंदेह हम अपने कार्यों के चलते अन्य विश्वविद्यालयों से बेहतर हैं। बल्कि प्रयास यह होने चाहिए कि हम देश का सर्वश्रेष्ठ कृषि विश्वविद्यालय बनाएं। इसके लिए तमाम संसाधन और संभावनाएं यहां है। केवल एकाग्रता से मेहनत करने की जरूरत है।
एमपीयूएटी के पूर्व कुलगुरू और वर्धमान कोटा खुला विश्वविद्यालय के कुलगुरू डॉ. बी.एल. वर्मा ने कहा कि देश की 60 फीसदी जनता प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी है। इसलिए कृषि पेशा नहीं बल्कि संस्कृति है। मार्केटिंग, वैल्यु एडीशन पर एमपीयूएटी खूब काम कर रहा है। वयोवृद्ध पूर्व कुलपति डॉ. वी.बी. सिंह ने इस विश्वविद्यालय को उदयपुर में खोलने में ठाकुर गुलाब सिंह शक्तावत की महती भूमिका रही है। डॉ. सिंह ने कहा कि आज अच्छे और सच्चे शिक्षक की जरूरत है जो उपलब्ध नहीं है।

आरम्भ में सभी अतिथियों ने प्रातः स्मरणीय वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप व कृषि वैज्ञानिक डॉ. ए. राठौड़ की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित की। निदेशक अनुसंधान डॉ. अरविन्द वर्मा ने विश्वविद्यालय की 26 वर्षों की विकास यात्रा एवं उपलब्धियों का पीपीटी प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। स्वागत उद्बोधन अधिष्ठाता आरसीए डॉ. एम.के. महला ने दिया व संचालन डॉ. विशाखा बंसल ने किया। इस अवसर पर अतिथियों ने डॉ. निकिता वधावन एवं डॉ. लोकेश गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक ’फ्रूट एंड वेजीटेबल प्रिजरवेशन एवं प्रोसेसिंग’ एवं डॉ. हरिसिंह व डॉ. अरविन्द वर्मा द्वारा लिखित ’बियोन्ड राइज: इनसाइड फ्रॉम क्रॉप डाइवरसीफिकेशन’ पुस्तक का विमोचन किया। 

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