दो जैनाचार्यों के आध्यात्मिक मिलन से भाव विभोर हुई जनमेदिनी

महाप्रज्ञ विहार से आचार्य के साथ चला उदयपुर, प्रवचन में अभय दान संकल्प कराया
उदयपुर (डॉ. तुक्तक भानावत)।
झीलों की नगरी उदयपुर में आए आचार्यश्री महाश्रमण ने बुधवार को उदयपुर शहर से विहार कर लिया। दोपहर में जैसे ही आचार्यश्री का संतों के साथ विहार का समय हुआ तब हजारों भक्त वहां पहुंचे। आचार्यश्री के साथ जैसे ही धवलवाहिनी ने भुवाणा स्थित महाप्रज्ञ विहार से अपने कदम आगे बढ़ाए तो भक्तों ने महाश्रमण की जयकारा गूंजायमान कर दिया। इस दौरान जुटी जनमेदिनी आचार्यश्री के विहार पर भावुक हो गई। इससे पहले आज उदयपुर में महाप्रज्ञ ने दान पर अपनी बात रखी और सबसे बड़ा दान अभय दान बताते हुए विस्तार से उसके बारे में बताया।


दो संतों का आध्यात्मिक मिलन :
तेरापंथ सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक पगारिया ने बताया कि आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ दोपहर सवा तीन बजे महाप्रज्ञ विहार से विहार कर देवेन्द्र धाम पहुंचे। यहां आर्चाश्री और राष्ट्रसंत पुलकसागर महाराज का आध्यात्मिक मिलन हुआ। दोनों ही जैनाचार्यों ने जैन एकता पर बल दिया। इसकी शुरूआत  साधु-संतों से ही हो सकती है। यदि ऊपर का एक बटन गलत लग जाये तो नीचे के बटन स्वत: गलत हो जाते हैं। दोनों संतों का मिलन तीसरे जैनाचार्य देवेन्द्रमुनि की समाधि में हुआ। यह मनिकांचन योग हो। इस अवसर पर तीनों संप्रदायों के श्रावक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
15 मिनिट की इस आध्यात्मिक मुलाकात के बाद दोनों राष्ट्रसंत हाथ-से-हाथ मिलाकर देवेन्द्रधाम से बाहर निकले तो उपस्थित श्रावक भाव विभोर हो गए। इस अवसर पर उद्योगपति आर के ग्रुप के अशोक पाटनी, विमल पाटनी भी उपस्थित थे।

 
विहार में आचार्यश्री के साथ कई भक्तों ने भी पैदल विहार किया। कुछ समय तक साथ चलते हुए आचार्यश्री का जयकारा लगाया। आचार्यश्री ने उदयपुर वासियों को मांगलिक श्रवण कराया और उदयपुर से राजसमंद की तरफ बढ़ गए। आचार्यश्री देवेन्द्र धाम से निकल करीब 6 कि.मी. की दूरी तय कर नाथद्वारा हाइवे पर सुखेर-अम्बेरी स्थित तेरापंथ सभा के अध्यक्ष कमल नाहटा के प्रतिष्ठान पहुंचे। विहार के दौरान पूरे मार्ग में जगह-जगह जयकारों के साथ आचार्यश्री का वन्दन अभिनन्दन किया गया। आचार्यश्री रात्रि विश्राम करने के पश्चात गुरूवार प्रात: ढाबालोजी के लिए विहार करेंगे।
सभी दानों में सबसे बड़ा अभय दान : आचार्यश्री महाश्रमण
इससे पूर्व तेरापंथ जैन समाज के आचार्य महाश्रमण ने महाप्रज्ञ विहार में प्रात:कालीन धर्मसभा में दान के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि जीवन में कई तरह के दान होते हैं जैसे विद्यादान, वस्त्रदान, अर्थदान, देहदान आदि-आदि लेकिन इनमें सबसे बड़ा दान अभय दान माना गया है। यह इसलिए क्योंकि इसमें जीवन बचाने का संकल्प होता है।


अभयदान का महत्व आचार्य ने कहानी से समझाया :
आचार्यश्री ने इसी अभयदान को राजा की कहानी के माध्यम से बताया कि एक राजा को शिकार का शोक था। उसने जंगल में एक मृग का शिकार किया।  शिकार के बाद वह मृग के शरीर को लेने गया तो रास्ते में राजा को एक तपस्वी साधु मिले जो साधना में लीन थे। उन्हें देख कर राजा डर गया। राजा ने सोचा- यह तपस्वी साधु है। जब इन्हें पता चलेगा कि शिकार मैंने किया है तो हो सकता है मुझे कोई श्राप दे दें। राजा वहीं खड़ा रहा। ज्योंही तपस्वी की साधना पूरी हुई राजा ने तपस्वी साधु से क्षमा की भीख मांगते हुए उन्हें पूरी कहानी सुनाई। तपस्वी साधु ने कुछ देर शांत रहने के बाद राजा से कहा कि चलो ठीक है मैं तुम्हें अभय दान देता हूं, लेकिन बदले में मेरी शर्त है कि तुम्हें भी जीवन में अभय दान का संकल्प लेना होगा। आज के बाद अहिंसा के रास्ते पर चल कर प्राणी मात्र की रक्षा का वचन देना होगा। राजा ने उनकी बात स्वीकार की ओर अभयदान पाकर वह खुश हो गया।
साधना में सम्यक साधना ओर सामयिक का बड़ा महत्व :
आचार्यश्री ने कहा कि साधनाओं के भी कई रूप होते हैं लेकिन हर साधना की प्रवृत्ति अहिंसा की चेतना का विकास करने की होनी चाहिये। साधना में सम्यक साधना ओर सामयिक का बड़ा महत्व होता है। यूं तो सामयिक रोजाना हो जाए ऐसा प्रयास करना चाहिये। उसमें भी अगर समय देखा जाए तो प्रात: अमृकाल सामयिक का सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ समय होता है। ध्यान ओर साधना से विभिन्न प्रकार के कषाय, मोह-माया और लोभ से मुक्ति की ओर बढ़ा जा सकता है।
साधु दर्शन मात्र से ही कई पाप कर्मों की निर्झरा होती  :
साधु तो चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। उनमें संयम होता है, तप और साधना होती है। साधनाशील के सामने देवता भी नमस्कार करते हैं। साधु जब मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो वह या तो सीधे देव गति में जाता है या फिर उन्हें मोक्ष की ही प्राप्ति होती है। साधु के दर्शन मात्र से ही कई पाप कर्मों की निर्झरा हो जाती है। आचार्यश्री ने कहा कि गृहस्थ की सम्पत्ति अर्थ, धन सम्पदा होती है। होनी भी चाहिये इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन वह सम्पत्ति शुद्धता से कमाई वाली होनी चाहिये। अर्थ उपार्जन में जितनी शुद्धता होगी वह अर्थ आपके अच्छे कार्यों में ही काम आएगा। ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण होती है। शत-प्रतिशत ईमानदारी भी अपने काम और व्यापार में लाई जा सकती है अगर इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प हो। साधु की सम्पत्ति तप, साधना और त्याग होती है।


पंचरंगी पाण्डाल जहां खचाखच भरा :
तेरापंथ जैन समाज के आचार्य महाश्रमण के उदयपुर प्रवास के तीसरे दिन महाप्रज्ञ विहार में प्रात: सवेरे 4.30 बजे से श्रावक दर्शन के लिए कतारों में खड़े हो गए। उनके विहार होने तक आचार्यश्री के दर्शनार्थ एवं प्रवचन लाभ लेने के लिए श्रद्धा का ऐसा ज्वार उमड़ा कि वह अपने आप में एक महोत्सव बन गया। महाप्रज्ञ विहार में बना विशाल पंचरंगी पाण्डाल जहां खचाखच भरा था वहीं पाण्डाल के बाहर भी उतने ही श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शन का लाभ लेने अनुशासित एवं कतार बद्ध खड़े नजर आये। हर किसी की यही चाहत थी कि चौदह सालों बाद आचार्यश्री का उदयपुर में पदार्पण हुआ है, और उदयपुर वालों के लिए यह ऐसा एक स्वर्णिम अवसर है जब आचार्यश्री को करीब से निहार सकें और उनका आशीर्वाद लेने का परम सौभाग्य प्राप्त कर सकें। युवा-बुजुर्ग सहित हजारों श्रावक-श्राविकाओं ने दिन भर आचार्यश्री का वन्दन किया। तेरापंथ सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक पगारिया ने विहार कार्यक्रम की जानकारी दी।
समाज की पूरी टीम जुटी थी :
आज की सभा में अतिथि के रूप में जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी, पुलक चेतना मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद फांदोत, ओसवाल सभा के अध्यक्ष प्रकाश कोठारी, ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा और भाजपा नेता प्रमोद सामर उपस्थित थे। आचार्य की यात्रा को लेकर समाज की पूरी टीम यहां जुटी थी। धर्मसभा में तेरापंथ सभा के अध्यक्ष कमल नाहटा, तेरापंथ सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक पगारिया, सभा उपाध्यक्ष विनोद कच्छारा, सभा के मंत्री अभिषेक पोखरना, कोषाध्यक्ष भगवती सुराणा, कार्यालय व्यवस्थापक प्रकाश सुराणा, अर्जुन खोखावत, कमल पोरवाल, मनोज लोढ़ा सहित जैन समाज के विशिष्ठ जन उपस्थित थे। यह सम्पूर्ण आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ प्रोफेशन फोरम, अणुव्रत समिति, तेरापंथ किशोर मंडल एवं तेरापंथ कन्या मण्डल के साझे में किया जा रहा है।
जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने लिया महाश्रमण का आशीर्वाद :


इस अवसर पर जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने महाश्रमण का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर खराड़ी ने कहा कि आप जैसे संतों की वजह से ही समाज में नैतिकता कायम है। आपके आगमन से उदयपुर की फिजा में आघ्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ है। ऋषि-मुनियों की वाणी से ही भारत जैसे देश में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शांति है।
लक्ष्मण सिंह कर्णावट की पुस्तक का विमोचन :
इस अवसर पर लक्ष्मण सिंह कर्णावट की आत्मकथा पुस्तक का विमोचन आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा किया गया। आचार्यश्री ने कहा कि कर्णावट मेवाड़ का मेवाड़ में साधु-संतों की सेवा में अपूरर्णीय योगदान रहा है। इस पर आचार्यश्री ने पूर्व में दी गई इनको दी गई ‘श्रद्धानिष्ठ शासनसेवी’ की उपाधि का उल्लेख किया।

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