उदयपुर। रंगों के उत्सव होली को लेकर शहर के बाजारों-घरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। अबीर-गुलाल से दुकानें सजने लगी हैं। इसी बीच चित्तौडगढ़ के गुर्जर खेड़ा गांव की सखी उत्पादन समूह की महिलाओं द्वारा निर्मित हर्बल गुलाल बाजार में उपलब्ध है। खास बात यह है कि इस समूह में सभी ग्रामीण महिलाएं हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक गुलाल तैयार करती हैं। लगभग 1 हजार की आबादी वाले इस गांव में इस बार इन महिलाओं द्वारा बनायी जा रही गुलाल की खुशबू और रंग पूरे गांव में उत्साह और उमंग ला रहे है। महिलाएं पिछले कई वर्षों से समूह से जुड़ी हैं। इनके द्वारा पहली बार बनायी गयी हर्बल गुलाल सिर्फ चित्तौडगढ़ ही नहीं प्रदेश के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद और अजमेर सहित अन्य जगहों पर भी भेजी जा रही हैं। ये महिलाएं होली के लिए स्कीन फ्रेण्डली गुलाल तैयार कर रोजगार पाने के साथ ही इको फ्रेण्डली गुलाल को बढ़ावा देकर आम लोगो को रंगोत्सव के लिए बेहतरीन गुलाल उपलब्ध करा रही हैं। समूह से जुड़ी सखी महिला मोसिना बताती हैं कि यहां चार रंगों में गुलाल तैयार किया जा रहा है- हरा, गुलाबी, लाल और पीला। गुलाल को मक्के से बना अरारोट में प्राकृतिक रंग और इत्र मिलाकर तैयार किया जाता है। जिसे बनाने का प्रशिक्षण हिन्दुस्तान जिंक के सहयोग से मंजरी फाउण्डेशन द्वारा संचालित सखी परियोजना के अंतर्गत दिया गया है।
जिंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरूण मिश्रा ने बताया कि मुझे खुशी है कि सखी परियोजना से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं लघु उद्यमी और एंटरप्रेन्योरशिप की ओर बढ़ रही हैं। महिलायें सशक्त ग्रामीण भारत के निर्माण की आधार है, इनके आत्मनिर्भर बनने से समाज में आर्थिक मजबूती को बढ़ावा मिलेगा। हम ग्रामीण महिलाओं को नयी संभावनाएं तलाशने के अवसर दे रहे है ताकि उन्हें स्वरोजगार के नये आयाम मिल सकें। गुर्जर खेड़ा गांव की सखी बहनो ने हर्बल गुलाल बनाने में रुचि दिखा कर स्वयं के आर्थिक पक्ष को बढावा देने के साथ ही ईको फ्रेंडली गुलाल के उपयोग से पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया है।
सखी निर्मित उपाया हर्बल गुलाल नाम से उपलब्ध
गुलाल बनाने के बाद 100, 200 और 500 ग्राम के पैकेट में पैकिंग भी खुद करती हैं जो कि सखी उत्पादन समिति निर्मित उपाया हर्बल गुलाल के ब्राण्ड से उपलब्ध है। महिलाएं बताती हैं कि इस गुलाल की खासियत यह है कि यह पूरी तरह स्कीन फ्रेण्डली है और इसके उपयोग से त्वचा पर किसी तरह की कोई जलन भी नहीं होती। इसे पानी से तुरंत साफ किया जा सकता है।
हर्बल गुलाल बनाने वाली नारायणीबाईं बताती है कि पहली बार वह हर्बल गुलाल बना रही है जिसे अब वे हर साल बनाएगीं। महिला समूह में लीला, निरमा, मांगीबाई, शारदा, अनू, कमली, पानी और कृष्णा हैं। गुलाल बना कर अब तक इन महिलाओं को 7 हजार रूपयों की आमदनी हुई है।
सखी परियोजना से जुडी मांगीबाई का कहना है कि जिंक के सखी कार्यक्रम से जुड़ने से पहले गांव की ज्यादातर महिलाएं खेती या मजदूरी का कार्य करती थी लेकिन अब नये नये कार्यो के बारें में जानकारी होने से महिलाएं समूह के माध्यम से लघु उद्योग चलाने के लिए प्रेेरित हुई हैं। कमलीबाई का कहना है कि हमने सोचा ही नही था कि होली के त्यौहार के लिए जो रंग बाजार से लाते थे, आज खुद बनाने का हूनर रखते है और परिवार की आमदनी को बढ़ा सकते है। अब हमारे गांव की महिलाएं भी सखी परियोजना के तहत् संचालित मसाला सेंटर और सिलाई सेंटर से जुड़कर अतिरिक्त आय बढाकर अपनी परिवारिक स्थिति को मजबूत रखने की सोच रखती है।
हिन्दुस्तान जिंक और मंजरी फाउण्डेशन के सहयोग से महिलाएं बना रही स्कीन फ्रेण्डली गुलाल
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