दिव्यांगों को आत्मसम्मान लौटा रहा है नारायण सेवा संस्थान

उदयपुर। हर वर्ष 5 नवंबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस उन तकनीकी और मानवीय प्रयासों को सम्मान देने का अवसर है, जिनकी बदौलत अंग-विहीन लोगों को जीवन में दोबारा चलने, आत्मविश्वास और खुशियों को पाने का अवसर मिलता है। यह दिन अनगिनत मुस्कानों का उत्सव है, जो कृत्रिम अंगों से आत्म निर्भर बने हैं। इसी दिशा में उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान पिछले दो दशकों से उल्लेखनीय कार्य कर रहा है।संस्थान दिव्यांगजन पुनर्वास के क्षेत्र में एक सशक्त नाम बन गया है।
संस्थान ने देशभर में सैकड़ों शिविरों का आयोजन कर हजारों दिव्यांग भाइयों-बहनों की जिंदगी को फिर से गतिशील बनाया है। केवल भारत ही नहीं, संस्थान ने अपनी सेवा सीमाओं से परे जाकर केन्या और साउथ अफ्रीका में भी कई शिविर आयोजित किए, जहाँ 3,000 से अधिक जरूरतमंद लोगों को कृत्रिम अंग प्रदान कर उनकी ‘दुःख भरी दुनिया’ में नए कदमों और नई उम्मीदों का प्रकाश भरा गया।
संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल बताते हैं कि यह केवल कृत्रिम अंग प्रदान करने का कार्य नहीं, बल्कि संपूर्ण पुनर्वास का प्रयास है। कृत्रिम हाथ-पैर लगाने के बाद लाभार्थियों को चलना, उठना-बैठना, रोजमर्रा की गतिविधियाँ करने का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे स्वयं को निर्भर नहीं, बल्कि सक्षम और आत्मविश्वासी महसूस करें। अग्रवाल हर वर्ष संस्थान की तकनीक को और उन्नत करने तथा लाभार्थियों की संख्या बढ़ाने का संकल्प लेकर चलते हैं। आने वाले वर्ष में 15,000 कृत्रिम अंग लगाने का लक्ष्य प्रस्तावित है।
अब तक संस्थान द्वारा 40,000 से अधिक कृत्रिम अंग लगाए जा चुके हैं। संस्थान की कृत्रिम अंग कार्यशाला अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है, जहाँ 40 तकनीकी विशेषज्ञों की टीम प्रतिदिन दक्षता और संवेदना के साथ काम करती है। इस कार्यशाला की उत्पादन क्षमता प्रति माह 1500 से 1800 कृत्रिम अंग तक है, जिससे बड़ी संख्या में लोग समय पर और गुणवत्तापूर्ण सेवा प्राप्त कर रहे हैं। नारायण सेवा संस्थान का उद्देश्य किसी को दया का पात्र बनाना नहीं, बल्कि आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर वापस देना है। इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर संस्थान का संदेश सार्थक और सरल है— “किसी को चलने की राह देना सिर्फ तकनीक नहीं, मानवता का सबसे सुंदर रूप है।”

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