महाराणा जगतसिंह प्रथम की 417वीं जयन्ती मनाई

परोपकार के प्रतीक मेवाड़ के ऐतिहासिक तोरण
उदयपुर :
मेवाड़ के 57वें एकलिंग दीवान महाराणा जगतसिंह जी प्रथम की 417वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा जगतसिंह का जन्म वि.सं.1664, भाद्रपद शुक्ल तृतीया (वर्ष 1607) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई।


महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने बाताया कि महाराणा जगतसिंह एक महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व के धनी थे। महाराणा बड़े ही दानी थे। वो ब्राह्मणों, चारणों, आदि को दान दिया करते थे। वो प्रतिवर्ष अपने जन्मदिन पर बड़े-बड़े दान करते थे, जिनमें सोने-चांदी के अलावा कल्पवृक्ष, सप्तसागर, रत्नधेनु और विश्वचक्र प्रमुख है। उन्होंने श्री एकलिंगनाथ जी मन्दिर में सोने का ध्वजस्तम्भ और शिखर भी स्थापित करवाया। उदयपुर में श्री जगन्नाथराय जी (जगदीश मन्दिर) मन्दिर का निर्माण करवाया और एक ऐतिहासिक शिलालेख भी उत्कीर्ण कर लगवाया।

उनके शासनकाल में कई सारे निर्माण हुए जिनमें जगमन्दिर (पिछोला झील में) शामिल है, जो महाराणा कर्णसिंह द्वारा शुरू किया गया था लेकिन महाराणा जगतसिंह प्रथम के शासनकाल में इसे पूर्ण किया गया। पीछोला झील में मोहन मन्दिर और राजमहल के पास कँवरपदा महल बनवाये। राजमहल में त्रिपोलिया के पास पायगा पोल पर महाराणा द्वारा किये गये तुलादान के उपलक्ष में 8 तोरण लगे हुए है। तोरण मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा किए गए ‘दान’ अर्थात परोपकार के प्रतीक है, हमारे प्राचीन शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के दान को विस्तार से वर्णन किया गया है। ‘दान’ उचित रूप से स्वयं द्वारा अर्जित धन से बिना प्रतिफल की इच्छा रखे योग्य एवं जरूरतमंदों को दिया जाता रहा है।
मेवाड़ के महाराणाओं ने तीर्थ यात्रा के दौरान भी सामाजिक कल्याण एवं परोपकार हेतु दान एवं तुलादान की परम्पराओं का निर्वहन किया। मन्दिर निर्माण, जलाशय निर्माण तथा विशेष अवसरों पर महाराणाओं द्वारा उन कार्यों की समाप्ति पर दान किये जाते थे। दान परम्परा की स्मृति स्वरूप पाषाण के तोरण का निर्माण करवाया जाता था।
समाज में दान एवं परोपकारी कार्यों की परम्परा को जीवंत बनाए रखने के पावन उद्देश्य से मेवाड़ के 75वें एकलिंग दीवान महाराणा भगवतसिंह मेवाड़ ने महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन की स्थापना कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, और परोपकारी कर्तव्य-परम्पराओं के निर्वहन के प्रतीक ‘तोरण’ के इस मूल स्वरूप को फाउण्डेशन के लोगो (सिम्बोल) के रूप में लिया; यह फाउण्डेशन ‘प्रेरणा का मन्दिर’ है जो आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा, जो ‘शाश्वत मेवाड़’ की स्थिरता को दर्शाता है। उसी सूर्यवंशी परम्परा का निर्वहन महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन के न्यासी डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ निरन्तर कर रहे है। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन के प्रतीक चिह्न (लोगो) तोरण में दर्शित शिवलिंग दिव्य आशीर्वाद एवं प्रज्ज्वलित दीपक अंधकार को दूर करने के प्रतीक है।
अपने धर्म पर पूर्णरूप से दृढ़ होने के कारण महाराणा जगतसिंह प्रथम अपने पूर्वजों की संचित की हुई सम्पत्ति को दान-पुण्यादि में खूब खर्च किया। जिससे वे लोगों में बड़े दानी कहलाये तथा उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा प्रजा में उनका बहुत आदर-सत्कार रहा।

Related posts:

हिन्दुस्तान जिंक को एलएसीपी विजन अवार्ड्स में प्लेटिनम, मटेरियल कैटेगरी में ग्लोबली नंबर 1

एचडीएफसी बैंक परिवर्तन ने 10.19 करोड़ लोगों और 9000 से अधिक गांवों को प्रभावित किया

Bhoomipoojan and Ground Breaking ceremony of pre-primary classes at DAV Zawar

हिंदुस्तान जिंक की सखी पहल से सशक्त हो रही 25 हज़ार से अधिक ग्रामीण और आदिवासी महिलाएं

मॉडिफाइड लॉकडाउन में कानून व्यवस्था बनाए रखें-एसपी विश्नोई

ओल्ड सिटी की दीवारों को सुंदर बनाया आईआईआईडी ने

नवनियुक्त जिला कलेक्टर मेहता ने किया कार्यग्रहण

गोवर्धन सागर में दीपदान कर जल संरक्षण का संकल्प लिया

दिनेश चन्द्र कुम्हार को मिला 'तुलसी पुरस्कार'

इंजी पालीवाल और इंजी पुरोहित सम्मानित

हिन्द जिंक डीएवी जावर माइन्स विद्यालय का उत्कृष्ट रहा परिणाम

मुख्यमंत्री ने वागड़-मेवाड़ के लिए की कई महत्वपूर्ण घोषणाएं