उदयपुर। राजस्थान की जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज करते हुए खिरनी की नई प्रजाति की पहली उपस्थिति उदयपुर जिले में दर्ज की गई है। खिलौने बनाने के लिए उपयुक्त मानी जाने वाली इस लकड़ी की नई प्रजाति राइटिया डोलीकोकारपा को पूर्व वन अधिकारी एवं पर्यावरणविद् डॉ. सतीश कुमार शर्मा और फाउंडेशन फॉर ईकोलॉजिकल सिक्योरिटी के फील्ड बायोलॉजिस्ट डॉ. अनिल सरसावन ने खोजा है। यह खोज उदयपुर जिले के उबेष्वर वन क्षेत्र और गोगुन्दा तहसील के ओबरा खुर्द गांव में हुई है। इस नई खोज के साथ उदयपुर में अब राहटिया वंश की खिरनी की कुल तीन प्रजातियां विद्यमान हो चुकी हैं।
एक समय था जब खिरनी की लकड़ी से बने खिलौनों के लिए उदयपुर शहर देशभर में प्रसिद्ध था। उस समय खिलौने बनाने में दो प्रमुख प्रजातियों की लकड़ी का उपयोग किया जाता था। पहली प्रजाति खिरनी, जिसे वैज्ञानिक भाषा में राइटिया टिंक्टोरिया कहा जाता है और दूसरी प्रजाति खिरना, जिसका वैज्ञानिक नाम राइटिया टोमेनटोसा है। नई खोजी गई राइटिया डोलीकोकारपा इसी परंपरा को नया जीवन देने वाली प्रजाति मानी जा रही है।
राइटिया डोलीकोकारपा का पहला वैज्ञानिक उल्लेख वर्ष 1969 में नगर हवेली क्षेत्र के बोन्टावन से हुआ था, जब वनस्पति वैज्ञानिक के. बहादुर और एस.एस.आर. बैनेट ने इसे पहचाना। उनकी यह खोज 1978 में प्रकाशित हुई थी। लगभग पचपन वर्ष बाद यह प्रजाति अब राजस्थान में दर्ज की गई है, जो राज्य के वनस्पति इतिहास में एक उल्लेखनीय घटना है।
नई प्रजाति डोलीकोकारपा आकार में पूर्व ज्ञात खिरनी राइटिया टिंक्टोरिया से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन इसके फलों की लंबाई इसे अलग पहचान देती है। जहां टिंक्टोरिया के फलों की लंबाई 15 से 50 सेंटीमीटर तक होती है, वहीं डोलीकोकारपा के फल 60 से 96 सेंटीमीटर तक लंबे पाए गए हैं। इतनी लंबी फली के कारण यह प्रजाति वन में दूर से ही पहचान में आ जाती है। इस खोज का विस्तृत विवरण हाल ही में प्रकाशित “जर्नल ऑन न्यू बायोलॉजिकल रिपोर्ट्स” के अंक 14, खंड 1 में दर्ज किया गया है, जो राजस्थान के वनस्पति शोध को नई दिशा प्रदान करने वाला है।
खिरनी की नई प्रजाति की राजस्थान में पहली उपस्थिति
