स्व. परशराम और स्व. शांता जैसी विभूतियों का मेवाड़ में जन्म लेना गर्व की बात : कटारिया
उदयपुर। स्वतंत्रता सेनानी दम्पति स्व. परशराम त्रिवेदी और स्व. शांता त्रिवेदी की मूर्ति का अनावरण मंगलवार को राजस्थान महिला परिषद उदयपुर में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया थे। अध्यक्षता समाजवादी विचारक एवं पूर्व विधायक मोहन प्रकाश ने की। अति विशिष्ट अतिथि निवृति कुमारी मेवाड़, विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद रघुवीर सिंह मीणा, शहर विधायक ताराचंद जैन, चावंड आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती, राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड विश्वविद्यालय उदयपुर के कुलगुरु प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने मंत्रोच्चार के बीच विधिविधान से मूर्तियों का अनावरण किया। इससे पूर्व हीरक जयंती द्वार का उद्घाटन एवं शांता त्रिवेदी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।

समारोह में राजस्थान महिला परिषद, उदयपुर की अध्यक्ष चंद्रकांता त्रिवेदी, परिषद के निदेशक, पूर्व राज्यमंत्री जगदीश राज श्रीमाली, सचिव दिव्या जौहरी, कोषाध्यक्ष अक्षिता त्रिवेदी, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रवीन्द्र श्रीमाली सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस दौरान जगदीश राज श्रीमाली का नागरिक अभिनंदन किया गया। समारोह में लेखक- कवि शंकरलाल शर्मा की पुस्तक कीर्ति काव्य संग्रह का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।

पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक गुलाबचन्द कटारिया ने परशरामजी के साथ बिताये अपने पलों के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उन जैसी विभूति मेवाड़ में पैदा होना गर्व की बात है। शांताजी त्रिवेदी ने आजादी के उस दौर 1947 में मेवाड़ में महिला शिक्षा की अलख जगाई जब महिलाएं घूंघट में रहती थी। उन्होंने महिलाओं को घूंघट के बाहर निकाल शिक्षा के मार्ग पर अग्रेसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अवसर पर राज्यपाल ने संस्था के वर्तमान संचालकों को भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी संस्था को जीवित रखा है।

कटारिया ने कहा कि यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम राजनीति के वशीभूत कई महान विभूतियों को भुला देते हैं। उन्हें सम्मान देने की बनिस्पत उन्हें अतीत के पन्नों में दफन कर देते हैं। ऐसी विभूतियों को सम्मान देने के लिए हमें राजनीति से ऊपर उठ कर काम करना चाहिये ताकि उन्हें देखकर, पढक़र उनकी मूर्तियां देखकर ही सही नई पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके। शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में परशरामजी और शांताजी का कोई सानी नहीं है। कटारिया ने कहा कि वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कभी मन भेद नहीं रखा। चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल का हो अगर उन्होंने अच्छा काम किया है तो उसकी तारीफ की है और उनके कामों को आगे बढ़ाने का ही काम किया है। स्व. मोहनलाल सुखाडिय़ा ने अपनी दूरदृष्टि के माध्यम से उस समय देवास योजना की नींव रखी। जिस समय उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन उनके बाद यह योजना दफ्तर दाखिल हो गई। यह सभी राजनीतिक कारणों से हुआ लेकिन उन्होंने फिर से देवास को जवित किया। आज भी वह देवास योजना का श्रेय स्व. मोहनलाल सुखाडिय़ा को ही देते हैं।

शांताजी की प्रतिमा लगाने को आश्वस्त किया :
कटारिया ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह वाकई में दु:ख का विषय है कि हम मेवाड़ की इन दोनों विभूतियों को वह सम्मान नहीं दे पाये जिसके वे हकदार थे। उन्होंने आश्वासन दिया कि आने वाले समय में वह फतहसागर के आसपास महान स्वतंत्रता सैनानी एवं महिला शिक्षा के क्षेत्र में मेवाड़ की पहली अग्रणी महिला शांता त्रिवेदी की प्रतिमा स्थापित करवाने का प्रयास करेंगे।

समाजवादी विचारक एवं पूर्व विधायक मोहन प्रकाश ने परशरामजी और शांताजी त्रिवेदी की मूर्तियां लगाने पर प्रसन्नता व्यक्त की और उनके साथ बिताये कई पलों को साझा करते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके महतवपूर्ण योगदान, समाज सेवा एवं शिक्षा के क्षेत्र में किये गये कार्यों के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि परशरामजी विनोदी और विद्रोही दोनों ही स्वभावों से ओतप्रोत थे। उन्होंने कहा कि हम आकाश को स्वर्ग बनाएं इसमें आपत्ति नहीं है, लेकिन धरती को श्मशान बना कर आकाश को स्वर्ग बनाना चाहें आपत्ति इस बात पर होनी चाहिये।

निवृत्ति कुमारी मेवाड़ ने कहा कि मुझे मेवाड़ की धरा पर परशरामजी और शांताजी जैसी विभूतियों के होने पर गर्व की अनुभूति हो रही है। महिला सशक्तिकरण में हमेशा मेवाड़ की भूमिका अग्रणी और महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने बेटियों को सन्देश देते हुए कहा कि वह हमेशा याद रखें कि हम तो जन्म से ही सशक्त हैं। हम बिना किसी डर और झिझक के पढ़ें लिखें और आगे बढ़े।
विधायक ताराचन्द जैन ने परशरामजी और शांता त्रिवेदी को नमन करते हुए कहा कि ऐसी विभूतियां विरली ही पैदा होती है। उन्होंने समारोह में उपस्थित गुलाबचन्द कटारिया को अपना गुरू और परशरामजी को अपना आदर्श बताया। उन्होंने आश्वस्त किया कि नगर निगम के चुनावों के बाद स्व. परशराम त्रिवेदी और स्व. शांता त्रिवेदी के नाम को अमर करने के लिए शहर की सडक़ों का नामकरण उनके नाम पर करने के प्रस्ताव की फाईलें निकलवाएंगे और नामकरण करवाने का प्रयास करेंगे।
प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने इतिहास का पुनर्मुल्यांकन करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि इसमें जो भी त्रुटियां रह गई है उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिये। महापुरूषों और विभूतियों की जो मूर्तियां स्थापित की जाती है वे केवल मूर्तियां नहीं होकर आदर्श व्यक्तियों की जीवंत स्मृतियां होती है। उन स्मृतियों को पुनर्जीवित करते हुए नई पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेती है। एक महिला शिक्षित होती है तो पूरी एक पीढ़ी शिक्षित होती है। तो समाज अपनी संस्कृति और संस्कारों को भूला देते हैं उनका पतन भी निश्चित हो जाता है।
महामंडलेश्वर स्वामी हितेषानन्द सरस्वतीजी ने कहा कि मेवाड़ तो भारत ही नहीं दुनिया के लिए एक तीर्र्थ है। मेवाड़ कई ऋषि-मुनियों की तपोस्थली, स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी रहा है। यहां की भक्ति-शक्ति और शूरवीरता के आगे सारी दुनिया नतमस्तक होती है। ऐसी मेवाड़ की पवित्र धरती पर परशरामजी त्रिवेदी एवं शांताजी त्रिवेदी जैसी महान विभूतियां पैदा हुई और उन्होंने वंचितों और आदिवासियों के उत्थान के लिए हमेशा आजीवन काम किया, यह गर्व का विषय है।
पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने कहा कि उनका जीवन भी परसरामजी त्रिवेदी के आदर्शों से परिपूर्ण रहा है। शांताजी ने महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एमएलए बनने के बाद उनके आदेश और उनकी इच्छा के अनुरूप जावला गांव में उन्होंने सडक़ बनवाई।
जगदीश राज श्रीमाली ने कहा कि महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. परशरामजी त्रिवेदी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। देहलीगेट पर शांति आनंदजी के साथ जब वे आंदोलन में शामिल हुए थे तब अंग्रेजों के गोलीकांड में परशरामजी के पांव में गोली लगी जिससे वे घायल हो गए थे। कई दिनों के उपचार के बाद स्वस्थ हुए। इसी प्रकार रंग निवास पर अंग्रेजी हुकुमत के लाठीचार्ज में स्व. शांता त्रिवेदी को चोटें आई थी। उनको बॉम्बे अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टर ने कहा कि वे अब कभी मां नहीं बन पाएगी। इसके बाद स्व. शांता त्रिवेदी ने संकल्प लिया कि वे बच्चों को गोद लेकर उनकी जिंदगी संवारेंगी। दोनों दंपति ने ठान लिया कि स्कूल एवं छात्रावास खोलकर बेटियों को पढ़ाने के साथ ही उनको पालने का काम करेंगे। इसी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 11 सितंबर 1947 को राजस्थान महिला परिषद की स्थापना की। स्व. परशराम त्रिवेदी का निधन 24 जनवरी 2002 और स्व. शांता त्रिवेदी का निधन 21 जून 2010 को हुआ था। समारोह का संचालन राजेन्द्र सेन एवं आरती वैष्णव ने किया।