उदयपुर। मन का संतोष होने पर तो लेखन अपना प्रभाव निस्तेज कर देता है किन्तु उसकी गहन बेचैनी ही किसी लेखन को धारदार बनाती है। यह बात प्रसिद्ध लोकमर्मज्ञ डॉ. महेन्द्र भानावत ने कही। वे कस्तूरबा मातृमन्दिर सभागृह में डॉ. जयप्रकाश भाटी ‘नीरव’ की पुस्तक ‘मन में उठते प्रश्न’ के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज का लेखक अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। जहां पाठकों की संख्या कम होती जा रही है तब वह किसके लिए लिखे, क्या लिखे फिर प्रकाशन की समस्या भी कम नहीं है। ऐसा होते भी कुछ लेखक निरन्तर लिख रहे हैं और छप भी रहे हैं। डॉ. जयप्रकाश भाटी भी उनमें से एक हैं जो साहित्य की सभी विधाओं में बेहतरीन लिख रहे हैं।
विशिष्ट अतिथि एडवोकेट मनीष श्रीमाली ने कहा कि सारी चुनौतियों के बावजूद मेरे जैसे पाठक भी हैं। मेरे अपने पुस्तकालय में अनेक साहित्यकारों की कृतियों के संग्रह हैं और मैं उनका नियमित पाठक बना हुआ हूं।
अध्यक्ष हास्य-व्यंग्य लेखक डॉ. लक्ष्मीनारायण नन्दवाना ने कहा कि ‘मन में उठे प्रश्न’ में डॉ. भाटी के 28 आलेखों का संचयन उनकी साहित्यिक चेतना के विविध बिम्बों का इन्द्रधनुषी रंग लिये है। तीन खण्डों में व्यक्तित्व, भाषा एवं साहित्य तथा चिन्तन में उनकी लेखकीय प्रतिभा, साहित्य के सरोकारों के प्रति समर्पणता तथा चिन्तन की गम्भीरता के दर्शन होते हैं।
प्रारम्भ में लेखक डॉ. भाटी ने अपनी लेखन यात्रा का परिचय देते बताया कि उनका पहला कविता संग्रह ‘सावन की धूप’ का प्रकाशन 1966 में हुआ। तब से वे निरन्तर लिख रहे हैं। समारोह में टखमण कला संस्था के डॉ. एल. एल. वर्मा, डॉ. भावना शर्मा, दुर्गाशंकर गर्ग, कैलाश पटेल, मंजु गुर्जर की उपस्थिति प्रमुखता लिये रही।इस अवसर पर संयोजिका डॉ. अंजना गुर्जरगौड़ ने डॉ. भानावक को अपनी पुस्तक ‘मेवाड़ के इतिहास में गैर-राजपूतों की भूमिका’ भेंट की।