उदयपुर (Udaipur)। कलम और कागज़ को जीवन का ध्येय मानकर कर्मशील रहे लोककलाविद डॉ. महेन्द्र भानावत (Dr. Mahendra Bhanawat) को राजस्थान साहित्य अकादमी (Rajasthan Sahitya Academy) अध्यक्ष दुलाराम सहारण (Dularam Saharan) एवं सचिव बसन्त सोलंकी (Basant Solanki) ने उनके निवास पर पहुंच कर इक्यावन हजार रुपये की राशि का चैक, शॉल एवं सम्मानपत्र भेंट किया। डॉ. भानावत को अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान ( Writer Award) से समादृत किया गया है। उनकी अब तक एक सौ छह किताबें साहित्य, लोककला एवं अणुव्रत दर्शन पर प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ. भानावत जीवन के छिय्यासी वसन्त देख चुके हैं तथा घर पर ही सृजनरत रहते हैं।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कहा कि वरिष्ठ वयोवृद्ध लेखकों का सृजन सम्मान करना अकादमी की सारस्वत परम्परा है। जहां लेखक समादृत होता है वह पुण्यधरा कहलाती है। साहित्य अकादमी के सचिव बसन्त सोलंकी ने डॉ. भानावत को शॉल पहनाकर सम्मानित किया तथा उनके स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना की। अभी कुछ दिनों पूर्व भी सहारण ने साहित्यकार गोवर्धनसिंह शेखावत (Govardhan Singh Shekhawat) के सीकर स्थित निवास पर जाकर इसी प्रकार विशिष्ठ साहित्यकार सम्मान समपर्ण किया था।
वरिष्ठ साहित्यकार किशन दाधीच (Kishan Dadhich) ने सहारण की इस कार्यशैली की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि लेखक के निवास पर पहुंच कर सम्मान समपर्ण करने से अकादमी स्वयं सम्मानित होती है। दाधीच ने कहा यह डॉ. भानावत का नहीं समूचे मेवाड़ का सम्मान है। इससे पूर्व भी डॉ. भानावत को उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा दो लाख इक्यावन हजार रुपये के शिखर सम्मान से समादृत किया जा चुका है।
अकादमी का आभार मानते डॉ. भानावत ने कहा कि साहित्य समाज ने लोकसाहित्य को सदैव ही दोयम दर्जे का साहित्य माना है। वे इसे चुनौती मानते संतुष्ट हैं कि जिस विषय पर उन्होंने पहलीबार लिखा उस पर पचास से अधिक शोधप्रबंध लिखे जा चुके हैं। डॉ. भानावत ने अकादमी अध्यक्ष सहारण को लोकदेवता वीर कल्लाजी राठौड़ तथा निर्भय मीरां पुस्तक भेंट की। डॉ. भानावत ने कहा कि जहां-जहां मीरां कृष्ण को ढूंढ़ती रही, वहां-वहां अपनी छह प्रांतीय यात्राओं में हम मीरां को खोजते रहे। प्रारंभ में डॉ. भानावत कुटुम्ब के डॉ. तुक्तक एवं रंजना (Dr. Tuktak-Ranjana ) ने मान्य आगन्तुकों का स्वागत किया।