मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों से कुपोषण उन्मूलन विषयक 8 दिवसीय प्रशिक्षण का समापन
उदयपुर। कभी मोटे अनाज (श्री अन्न) यथा बाजरा, ज्वार, रागी, कांगणी, सांवा, चीना आदि को गरीबों का भोजन माना जाता था, लेकिन आज अमीर आदमी मोटे अनाज के पीछे भाग रहा है। दरअसल मोटे अनाज में ढेर सारी व्याधियों को रोकने संबंधी पोषक तत्वों की भरमार है, इसलिए लोग श्री अन्न को अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं। यह बात प्रसार शिक्षा निदेशालय के निदेशक डाॅ. आर.ए. कौशिक ने कही। वे निदेशालय सभागार में सोमवार को मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों से कुपोषण उन्मूलन विषयक आठ दिवसीय प्रशिक्षण के समांपन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिर्वतन के दौर में मोटे अनाज की खेती का रकबा बढ़ा है। लोगो ने भी उसका महत्व समझा तो मांग भी बढ़ी हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् अतंर्गत राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केन्द्र उदयपुर की ओर से अनुसूचित जाति उप-योजना अतंर्गत जीविकोपार्जन हेतु आयोजित इस प्रशिक्षण में सलूम्बर, उदयपुर जिले के चयनित 30 युवक-युवतियों ने भाग लिया। प्रसार शिक्षा निदेशालय के सहयोग से प्रतिभागियों को मोटे अनाज से जैसे- ज्वार पपड़ी, कांगणी पकोड़े, रागी केक, बाजरा लड्डू, बाजरा ब्राउनी, सांवा फ्राईम्स, कांगणी कप केक, ज्वार डोनट, ओट्स कुकीज जैसे दर्जनों व्यंजन बनाना सिखाया गया। यही नहीं प्रतिभागियों को शहर की बड़ी बेकरियों का एवं राजस्थान महिला विघालय में अचार, पापड़ के व्यावसायिक निर्माण ईकाई का भ्रमण भी कराया गया।
समारोह अघ्यक्ष क्षेत्रीय केन्द्र प्रमुख डाॅ. बी. एल. मीणा ने कहा कि प्रशिक्षण का ध्येय यही है कि सुदूर गांवों के समाज के कमजोर तबके के युवाओं का आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने क्षेत्र में एक नया स्टार्ट-अप आरम्भ कर आर्थिक दृष्टि से न केवल मजबूत बन सके बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी प्रेरित कर सके। डाॅ. मीणा ने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि प्रसार शिक्षा निदेशालय की ओर से पूरे मनोयोग से प्रशिक्षण लेने के बाद घर पर नही बैंठे, बल्कि अपने घर से ही उत्पाद बनाकर नव-व्यवसाय की शुरूआत करें। जब लगे कि इसे व्यावसायिक शक्ल दी जा सकती है, टीम बनाकर कार्य आरम्भ करंे। बेकरी व्यवसाय में 40-50 प्रतिशत तक मुनाफा है। आरंभ में क्षेत्रीय केन्द्र के प्रिसिंपल साइंटिस्ट डाॅ. आर.पी. शर्मा, रोशनलाल मीणा ने अतिथियों का मेवाड़ी पाग व उपरणा पहनाकर स्वागत किया।
इस मौके पर अतिथियों ने मोटे अनाज के विविध व्यंजन-उत्पाद बनाने की विधि-सामाग्री संबंधी बुकलेट को विमोचन भी किया। साथ ही उपरोक्त उत्पादों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया। प्रत्येक प्रतिभागी को बुकलेट के अलावा पूड़ी मेकर, सेण्डविच मेकर, सेव-चिप्स बनाने की मशीन, छाछ बिलोने की मशीन का पूरा किट दिया गया ताकि गांव पहंुचने पर बिना समय गंवाए वे अपना व्यवसाय शुरू कर सकंे। प्रतिभागियों ने अपने अनुभव भी साझा किए। प्रशिक्षणार्थी प्रिया मेघवाल ने राजस्थानी नृत्य प्रस्तुत दी। संचालन प्रसार शिक्षा निदेशालय कि प्रोफेसर डाॅ. लतिका व्यास ने किया।
आत्मविश्वास से लबरेज दिखे प्रशिक्षणार्थी
बस्सी -सामचोत (सलूम्बर) के कालूलाल मेघवाल का कहना है कि परिवार में हर सदस्य का जन्मदिवस प्रतिवर्ष आता है और इस मौके पर केक काटना आम चलन में है। प्रशिक्षण में केक बनाना सीख गया, अब वह कभी भी बाजार से केक नहीं खरीदेगा बल्कि स्वयं घर पर तैयार करेगा। इसी गांव की रेखा मेघवाल, किरण मेघवाल, कोमल मेघवाल, मंजू, दिव्या, धूली बाई, ललिता देवी के चेहरे भी प्रशिक्षण के बाद आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए।
मोटे अनाज बेकरी उत्पादों से कुपोषण उन्मूलन विषयक प्रशिक्षण लेने वालों में अधिकांश युवक-युवतियों को जैसे व्यवसाय का एक सुनहरा रास्ता मिल गया। 25 से 30 वर्ष के इन प्रतिभागियों का कहना था कि कल तक वे मोटे अनाज के बारे में जानते तक नहीं थे, आज न केवल ज्वार, कांगणी, रागी, चीना, बाजरा आदि मेेें छुपी पोषक तत्वों की खान से रूबरू हुए बल्कि भोजन में इनके इस्तेमाल का सजीव प्रशिक्षण भी प्राप्त किया।
उदयलाल मेघवाल, भूपेन्द्र, निलेश, प्रिया, शीला, दीक्षिता, जसोदा, रमेश आदि ने प्रफुल्लित होकर कहा कि रंगो का त्योहार होली सन्निकट है। चिप्स, पपड़ी आदि की घर-घर में खपत होती है। गांव जाते ही नव व्यवसाय करने को उत्सुक हंै। प्रतिभागियों का कहना था कि त्योहार पर दो पैसे कमाएंगे और प्रशिक्षण में सीखी कला को व्यर्थ नहीं गवाएंगे। युवा प्रशिक्षणार्थियों का यह भी कहना था कि घरों में साल भर अधिकांश महिलाएं आए दिन व्रतोपवास करती है और हमारे देश में वर्षपर्यन्त तीज-त्योहार चलते रहते हंै। ऐसे में मोटे अनाज (श्री अन्न) से बने उत्पाद की खूब मांग रहती है और नए स्टार्ट-अप को भी बल व नई उंचाईयां मिलेंगी।