राजस्थान विद्यापीठ – 85 वां स्थापना दिवस हर्षोल्लास से मनाया

साक्षरता, बेहतर शिक्षा तथा मूल्य बोध के लिए विद्यापीठ की स्थापना  – प्रो. सारंगदेवोत

समाज निर्माण का जिम्मा शिक्षा पर – प्रो. बलवंत राय जॉनी

उदयपुर । जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के 85 वे  स्थापना दिवस पर शनिवार को डबोक परिसर में कृषि भवन – स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर साईंसेंस के सभागार में विद्यापीठ के सभी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में हर्षोल्लास से मनाया गया। प्रारंभ में कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय जॉनी, प्रो. कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुल प्रमुख बी.एल. गुर्जर, पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, रजिस्ट्रार डॉ. हेमशंकर दाधीच ने मॉ सरस्वती तस्वीर पर माल्यार्पण, दीप प्रज्जवलन एवं संस्था का झण्डारोहण व जनुभाई की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर समारोह का शुभारंभ किया।

प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि महाराणा भूपाल सिंह की प्रेरणा से जनुभाई ने 21 अगस्त, 1937 को साक्षरता, बेहतर शिक्षा तथा मूल्य बोध के लिए विद्यापीठ की स्थापना  की। उन्होने कहा कि मुल्य आधारित तथा मानवीय मूल्य षिक्षा होगी तो सभ्यता व संस्कृति बचेगी, पर्यावरण की शिक्षा होगी तो जंगल, जमीन बचेगे, व्यक्तित्व निर्माण तथा भारतीय दृष्टिकोण की षिक्षा से चरित्र निर्माण होगा।  वर्तमान शिक्षा की बात करते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि आज सरकार द्वारा कम्युनिटी बेस व रोजगारोन्मुखी शिक्षा की बात कर रही है जनुभाई इसी को ध्यान में रखते हुए 84 वर्ष पुर्व ग्रामीण एवं वंचित वर्ग को शिक्षा की मुख्य धारा से जोडने के उदद्ष्य से ग्रामीण क्षेत्रों में कम्युनिटी सेन्टरो की स्थापना की और दिन में काम करने वालो को षिक्षा के जोडने के लिए श्रमजीवी महाविद्यालय की स्थापना की। उन्होने शिक्षा स्वतंत्रता को लोकतंत्र के लिए आवश्यक बताया। अच्छे समाज की निर्माण की जिम्मेदारी शिक्षा के कंधों पर है। वह शिक्षा खुद के लिए न होकर समाज के सर्वहारा वर्ग के लिए हो ठीक उसी तरह मूल्यपरक शिक्षा भी देश व समाज को आगे बढ़ाने की आज की जरूरत है।

प्रमुख अतिथि कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय जानी ने कार्यकर्ताओं को संस्थान के 85वें स्थापना दिवस की बधाई देते हुए कार्यकर्ताओं को नवीन 7वां वेतनमान देने की घोषणा की जिससे सभी कार्यकर्ताओं में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी। उन्होने कहा कि  आज पूरे देश में आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, पंडित नागर ने आजादी के पूर्व ही शिक्षा को लेकर मेवाड के सुदूर व ग्रामीण अंचल में खेतीहर, मजदूर व वंचित वर्ग में शिक्षा की अलख लगाने के उद्देश्य से आजादी के 10 वर्ष पूर्व संस्थान की स्थापना करना उनकी दूरगामी सोच का परिणाम है। अच्छे समाज के निर्माण की जिम्मेदारी शिक्षा के कंधों पर है। उन्होने कहा कि हमारी पुरानी भारतीय संस्कृति, सभ्यता, मूल्य एवं परम्परा को सहेजने की वर्तमान में आवश्यकता है। नवाचार अपनाने और शोध की संख्या में बढोत्तरी करने की बात कही। उन्होनंे कहा कि हमारे इस आदिवसी अंचल में शोध के जितने अवसर है उतने ही विषय भी। आवश्यकता इस बात की है कि इन जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में अधिक से अधिक हो ताकि उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए खासे प्रयास भी किए जा सके। इन शोध कार्यों का लाभ निश्चित तौर पर इन गरीब और आदिवासी लोगों को मिल सकेंगा।

कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि जनुभाई 1957 से 62 तक मावली विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे , वे  हमेशा जनतंत्र को बढा देने के पक्षधर थे और विद्यापीठ में भीे जनतंत्र को बढावा दिया। राष्ट्र की शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में विद्यापीठ अपनी भूमिका को सक्रिय बनाये हुए है। विद्यापीठ समग्र ग्रामीण समुदाय के उत्थान के लिए कार्य कर रही है जो कि संस्थापक जनुभाई का सपना था। पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा ने कहा कि जनुभाई ने एक छोटी सी सोच के साथ एक पौधा लगाया था जिसने आज वक्ष वृक्ष का रूप ले लिया है। पंडित नागर ने शोषित, पीडित, दिन दुखी एवं निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षित करने की अलख जगाई ताकि वे लोग शीक्षित हो कर समाज की मुख्य धारा से जुड सके। रजिस्ट्रार डॉ. हेमशंकर दाधीच ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि  स्वतंत्रता आंदोलन के समय जहॉ एक ओर महात्मा गांधी, पंडित मनद मोहन मालवीय, सुभाष चंद बोस, तिलक व सरदार पटेल देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे तो वही मेवाड में पंडित नागर ने शिक्षा का शंखनाद किया। बनारस से शिक्षा प्राप्त कर जनुभाई ने समाज ऋण चुकाने के लिए मेवाड में शिक्षा का संकल्प लिया। संचालन डॉ.़ रचना राठौड ने किया जबकि आभार दिया। समारोह में डीन डायरेक्टर सहित शहर के गणमान्य नागरिक व विद्यापीठ के समस्त कार्यकर्ता उपस्थित  थे।

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