उदयपुर। शासनश्री मुनि सुरेशकुमार ने पर्युषण पर्व के चौथे दिन वाणी संयम दिवस पर कहा कि डेढ़ इंच की जुबान में हड्डी नहीं होती लेकिन हड्डियां तोडऩे की ताकत रखती है। कम बोलने वाले कभी फंसते नहीं। कम बोलें, मीठा बोलें। कड़वे बोलने वालों के रसगुल्ले भी नहीं बिकते और मीठे बोलने वालो के करेले भी बिक जाते हैं। योगियों की योग सिद्धियों का पहला कदम है मौन। जो मौन का निरंतर अभ्यास करता है वह अपने मन की ग्रंथियों का विमोचन कर लेता है। वाणी को वीणा बनाए तो संबंधों में चासनी घुल जाती है। इंसान को चाहिए कि वे तोल मोल कर बोलें। जुबान फिसली कि रिश्तें भी फिसल जाते हैं। मौन में अद्भुत शक्ति है। प्रतिदिन एक घंटे की आराधना करने वालों को अपार सिद्धियां मिलती हैं।
मुनि सम्बोधकुमार ‘मेधांश’ ने भगवान महावीर के पूर्वजन्म से राती त्रिशला के गर्भ की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि व्यवहार तय करता है कि हम दिल में उतरेंगे या दिल से उतर जायेंगे। प्रभावित करने वाले अलग दुनिया से नहीं आते। वे अलग ढंग से प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को कार की नहीं संस्कार की जरूरत होती है। हमारा सबसे अच्छा निवेश बच्चों में अपना दिया गया समय है। जो अभिभावक अपने बच्चो के दोस्त नहीं हो सकते वे एक दिन उनके दुश्मन हो जाते हैं। महावीर ने गर्भ में संकल्प लिया कि जब तक माता-पिता सृष्टि में रहेंगे तब तक दीक्षा नहीं लूंगा। इस दौर के बच्चे प्रेक्टिकल हो रहे है। अपने अंश को सही और गलत के बीच फर्क करना सिखाएं फिर उनका मन कभी खुदखुशी करने के बारे में नहीं सोचेगा।
सभा मंत्री विनोद कच्छारा ने बताया कि रात्रिकालीन कार्यक्रम के तहत मुनि सम्बोधकुमार ने ‘रहस्य सायो का’ विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि प्रेतात्माएं शूक्ष्म शरीर होती हैं। हम अपने मन को ताकतवर नहीं बना लेते कोई शक्ति हमें प्रभावित नहीं कर सकती। भूत कर्म के कारण, या अपनी आधी-अधुरी इच्छा के कारण इस सृष्टि में अपने मकसद ढूंढते हैं!