उदयपुर। महाप्रज्ञ विहार में भगवान ऋषभ के वर्षीतप पुनीत प्रसंग पर अक्षय तृतीया महोत्सव को सम्बोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासनश्री मुनि सुरेशकुमार ‘हरनावा’ ने कहा कि दृढ़ संकल्पी ही मौसम और परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं के बावजूद वर्षभर तक एक दिन तप और एकदिन आहार की सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन बड़ी सहजता से तय कर लेते हैं। एक दिन की तपस्या भी दिन में तारे दिखा देता है, तो वर्षीतप महान संकल्प की सिद्धि है। भगवान ऋषभ ने अपने प्रपोत्र श्रेयांषकुमार के हाथों से इक्षुरस का पारणा किया। आज भी यही परंपरा बदस्तूर जारी है।
मुनि संबोधकुमार ‘मेघांश’ ने कहा कि अक्षय तृतीया सीखने का अवसर है। भगवान ऋषभ के वर्षीतप से कार्मिक एकाउंट, इक्षु से सीखें कि घट्ठों में मिठास नहीं होती, कलश सी ठंडक देने की आदत रखेें। मुनि प्रवर ने कहा कि एक शपथ हो वर्षीतप का – मेरी वजह से किसी को चोट ना पहुंचे, तो हम महातपस्वी हो जाते हंै।
मुनि पदमकुमार ने कहा कि अक्षय तृतीया मतलब वह दिन जो अखंड है। जैनधर्म के प्रमुख तीन उत्सवों में आज एक प्रमुख उत्सव है। सभी के जीवन में संयम के प्रयोग चले यही मन की मंगल कामनायें। मुख्य वक्ता डॉ. देव कोठारी ने कहा कि अशि, मषि, कृषि की स्थापना कर भगवान ऋषभ ने एक नवीन समाज का प्रणयन किया। वर्तमान समाज भगवान ऋषभ के प्रबंध की झलक है। जैनधर्म सबसे आदि और वैज्ञानिक धर्म है। वर्षीतप करना असाधारण संकल्प की ही परिणति है।
तेरापंथ महिला मंडल व ज्ञानशाला का प्रशिक्षिकावृन्द के समूहगान से शुरू हुए कार्यक्रम में तेरापंथ सभाध्यक्ष अर्जुन खोखावत, तेयुप अध्यक्ष मनोज लोढ़ा, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती सीमा पोरवाल, कमल नाहट, श्रीमती शांता नाहटा, श्रीमती माया कुंभट ने भावपूर्ण विचारों से वर्षीतप तपस्वियों का वर्धापन किया। मंच संचालन सभामंत्री विनोद कच्छारा ने किया।
तीन वर्षीतप तपस्वियों का वर्धापन :
कार्यक्रम में 71 वर्षीय श्रीमती शांता नाहटा के 16वें, 77 वर्षीय श्रीमती कमल चौधरी के 13वें वर्षीतप तथा मनोहर धुपिया (सूरत) के 12वें एकासन का वर्धापन किया गया।