हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की ऐतिहासिक विजय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ

उदयपुर। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के ट्रस्टी डॉ लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ के नेतृत्व में फाउण्डेशन की ओर से दो दिवसीय हल्दीघाटी एक अध्ययन विषयक संगोष्ठी का शुभारंभ सिटी पेलेस में हुआ।
इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य शोध परक नवीन तथ्यों को उजागर करना और उन्हें प्रकाशित कर सामने लाना है। संगोष्ठी का शुभारंभ हल्दीघाटी को समर्पित पं. नरेन्द्र मिश्र की ओजस्वी कविता से किया गया । मेवाड़ के इतिहासकार डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित ने मेवाड़ के अप्रकाशित ग्रंथों में शक्ति सिंह व हल्दीघाटी युद्ध’ पर अपना पत्र वाचन किया। जिसमें आपने युद्ध में शक्तिसिंह के योगदान पर प्रकाश डाला।
भीलवाड़ा के संगम विश्वविद्यालय के डॉ रजनीश शर्मा ने संस्कृत साहित्य के आलोक में हल्दीघाटी महासमर’ पर पत्र वाचन करते हुए महाराणा प्रताप के महान व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यदि उनकी नीतियां और आदर्श इतने श्रेष्ठ थे कि उन्हें हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत भाषा के साथ-साथ कई प्रादेशिक भाषाओं में भी प्रताप को पूर्ण सम्मान दिया गया। हल्दीघाटी विजय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि अमरसार पुस्तक में भी हल्दीघाटी पर साफ साफ ‘मलेच्छ’ विजय लिखा है। जो प्रताप की विजय को दर्शाती है।
डॉ श्रीकृष्ण जुगनू ने अपने पत्र ‘हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की नीतियाँ’ पर वाचन करते हुए मेवाड़ में उस दौर के 55 वर्षों के विकास क्रम पर सविस्तार प्रकाश डालते हुए मेवाड़ की समृद्धि प्रताप के मानवाधिकार संकटग्रस्त राज्य में विवेकपूर्ण रणनीति और प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग आदि पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के डॉ अभिमन्यु सिंह आढ़ा ने अपने पत्र वाचन में अकबर कालीन लेखकों एवं लेखन के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया यदि युद्ध में मानसिंह की हार न हुई होती तो दिल्ली दरबार में मानसिंह कछावा का मानवर्द्धन होता ना कि ड्योढ़ी बंद|
उदयपुर के इतिहासकार डॉ चन्द्रशेखर शर्मा ने हल्दीघाटी में राणा की विजयी पर प्रकाश डालते हुए तथ्य प्रस्तुत किये और बताया कि हल्दीघाटी युद्ध से प्रेरणा ले कई छोटे-छोटे राष्ट्रों ने भी बड़े-बड़े सम्पन्न राष्ट्रों के सामने साहस का परिचय दिया। शर्मा ने प्रताप की युद्ध नीतियों पर विचार रखते हुए संगोष्ठी में सभी का ध्यान आकर्षित किया ।
भोजनकाल के बाद कवि श्रेणीदान चारण ने हल्दीघाटी पर मार्मिक काव्य पाठ प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । पटियाला से पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. मोहम्मद इदरीस ने अकबर कालीन फारसी स्त्रोतों में हल्दीघाटी पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। ।
पहले दिन के अंत में उत्तर प्रदेश से आए इतिहासकार डॉ संजय सिंह ने रामायण के आधार पर राम और प्रताप के जीवन में घटित कई घटनाओं को समान बताते हुए कहा कि महाराणा उदयसिंह की रानी धीर कँवर की भूमिका कैकयी के समान थी, राम वन में रहे तो प्रताप भी महलों का सुख छोड़ मेवाड़ के जंगलों में रहे। आगे डॉ. सिंह ने बताया यदि हल्दीघाटी में मानसिंह विजय हुआ होता तो युद्ध के बाद मेवाड़ में अकबर पुनः सैनिक अभियान न चलाता । इससे साफ सिद्ध होता है कि विजयी प्रताप की थी ना कि अकबर के सैनापति मानसिंह की ।
संगोष्ठी के शुभारंभ में फाउण्डेशन की ओर से मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्रसिंह आउवा ने सभी का स्वागत – अभिवादन किया तो स्वाति जैन ने संगोष्ठी का संचालन किया।

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