उदयपुर के बड़बड़ेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे विश्व के पहले 54 कुण्डीय मां बगलामुखी आराधना महायज्ञ
108 तरह की सामग्री की दी जा रही आहुतियां
उदयपुर। मेवाड़ भक्ति और शक्ति की धरा के रूप में पहचान रखता है। आज भी मेवाड़ में भक्ति साधना और शक्ति उपासना के लिए अनुष्ठानों का दौर जारी रहता है। मेवाड़ में जितनी कृष्ण भक्ति की महिमा है उतनी ही मातृशक्ति की आराधना की भी। कृष्ण धाम के साथ मेवाड़ देवी उपासना के स्थानों का भी धनी है। सावन में यदि कृष्ण और शिव भक्ति का वातावरण रहता है तो आश्विन मास की नवरात्रि में देवी उपासना का ज्वार छाया रहता है। इसी क्रम में जहां एक ओर मेवाड़ के मातृशक्ति स्थलों पर रेलमपेल मची हुई है, तो दूसरी ओर इस साल उदयपुर में मां बगलामुखी की आराधना भी की जा रही है। उदयपुर ही नहीं विश्व में ऐसा पहला अवसर है जब मां बगलामुखी की आराधना के लिए दस दिवसीय 54 कुण्डीय महायज्ञ का अनुष्ठान हो रहा है और उदयपुर के लिए यह ऐतिहासिक है। अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में हो रहे इस महानुष्ठान से ऐसा दृश्य बन पड़ा है मानो किसी गुरुकुल में आचार्यों के सान्न्ध्यि में सैकड़ों साधक साधना कर रहे हों। कुल 108 तरह की सामग्री से दी जा रही हजारों आहुतियों से यहां का वातावरण आध्यात्मिकता से सुवासित हो गया है।
यह महानुष्ठान उदयपुर शहर के दक्षिणी कोने में अरावली की पहाड़ियों के मध्य विराजित बड़बड़ेश्वर महादेव मंदिर परिसर में हो रहा है जो बीते तीन माह से एक तीर्थक्षेत्र बन गया है। निरंजनी अखाड़ा के मढ़ी मनमुकुंद दिगम्बर खुशाल भारती महाराज के सान्निध्य में चल रहे सनातनी चातुर्मास में विभिन्न आयोजनों के क्रम में नवरात्रि में मां बगलामुखी अनुष्ठान हो रहा है। झारखण्ड से पधारे मां बगलामुखी के साधक कोलाचार्य माई बाबा के नेतृत्व में काशी से पधारे आचार्य कालीचरण, स्थानीय आचार्य रजनीकांत आमेटा, पं. कमल किशोर शर्मा के साथ देशभर से आए डेढ़ सौ आचार्य शास्त्रोक्त विधि से महायज्ञ सम्पन्न करा रहे हैं।
54 कुण्डों पर जजमान जोड़े मंत्रोच्चार के साथ आहुतियां अर्पित कर रहे हैं। सुबह 8 बजे से 2 बजे तक के क्रम में कई श्रद्धालु महायज्ञ के दर्शन के लिए भी पहुंच रहे हैं। महायज्ञ के तीसरे दिन मंगलवार को बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंचीं और उन्होंने यज्ञशाला की परिक्रमा की। बताया गया है कि यज्ञशाला की परिक्रमा का भी उतना ही महत्व है जितना यज्ञ में बैठने का। कोलाचार्य माई बाबा ने बताया कि यदि कोई महायज्ञ का हिस्सा नहीं बन सकता है तो वह जहां है वहीं बैठकर मन में मां बगलामुखी का ध्यान धारण कर उनके मंत्र ‘ओम ह्लीम नमः’ का जाप कर सकते हैं। मंगलवार को जजमान जोड़ों ने आचार्यवृंदों का सामूहिक वंदन भी किया।
मीडिया संयोजक मनोज जोशी ने बताया कि विश्व शांति, भारतवर्ष की सुख-समृद्धि-शक्ति, सामाजिक समरसता की कामना से सर्वकामना सिद्धिदात्री मां बगलामुखी की आराधना की जा रही है। अलग-अलग तरह की कामना के लिए अलग-अलग आकार के कुण्ड पर हवन का महत्व बताया गया है। इस महायज्ञ में भी चतुष्कुण्ड, त्रिकोण कुण्ड, योनिकुण्ड, अर्द्धचंद्र कुण्ड, षटकोण कुण्ड, अष्टदल कमल कुण्ड, सूर्य कुण्ड, पूर्ण चंद्र कुण्ड शामिल हैं। मुख्य जजमान की जिम्मेदारी किशन राठी (हरियाणा) निभा रहे हैं। शहर और आसपास के कई गणमान्य इस महायज्ञ में जजमान बने हैं। महायज्ञ में बैठने वाले सभी जजमान कठोर नियमों का भी पालन कर रहे हैं। एक समय फलाहार, एक समय सात्विक आहार, ब्रह्मचर्य सहित क्षौरकर्म से भी दूर हैं। यज्ञमण्डप में पूर्णतः भारतीय परिधान वाले ही प्रवेश कर सकते हैं। महायज्ञ में बैठने वाले नियमानुसार पीतवर्णी परिधान धारण कर रहे हैं।
सर्व समाज सनातनी चातुर्मास समिति के सचिव महेश चाष्टा ने बताया कि इस महायज्ञ अनुष्ठान की पूर्णाहुति में काशी सुमेरू पीठ के जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद सरस्वती का सान्निध्य रहेगा। वे 22 अक्टूबर सायंकाल उदयपुर पधारेंगे। अगले दो दिन 23 व 24 अक्टूबर को वे यज्ञशाला में आशीर्वाद प्रदान करेंगे। 24 अक्टूबर को पूर्णाहुति उनके सान्निध्य में होगी। पूर्णाहुति पर अपराजिता व शमी का विशेष पूजन भी होगा।
इस बीच, चातुर्मास परिसर में ही दोपहर बाद देवी भागवत पुराण कथा चल रही है। नवरात्रि स्थापना के साथ ही शुरू हुई देवी भागवत पुराण कथा पंच पुराणों में से एक है। यह कथा आचार्य कमल किशोर बनारस वाले कर रहे हैं। कथा के मुख्य जजमान रामसिंह खेतावत (अहमदाबाद) सहित कई गणमान्य कथा श्रवण का लाभ ले रहे हैं।