महाराणा संग्रामसिंह प्रथम (राणा सांगा) की 542वीं जयंती

उदयपुर : महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से महाराणा संग्राम सिंह प्रथम की 542वीं जयंती पर सिटी पेलेस स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलित कर पूजा-अर्चना की। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मयंक गुप्ता ने बताया कि मेवाड़ के 50वें एकलिंग दीवान महाराणा संग्रामसिंह प्रथम मध्यकालीन भारत के प्रमुख शासक थे, जिन्हें इतिहास में राणा सांगा के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म वैशाख कृष्ण की नवमी विक्रम सम्वत 1539 (ई.स. 1482) को हुआ था। उनके पिता महाराणा रायमल और माता का नाम रतन कंवर था। उन्होंने बचपन में महाराणा बनने से पूर्व ही एक आँख खो दी थी, महाराणा रायमल के पश्चात् संग्राम सिंह मेवाड़ के महाराणा बने।
महाराणा संग्राम सिंह बचपन से ही वीर एवं बुद्धिमान थे। 1520 ई. में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर को युद्ध में हरा अहमदनगर पर कब्जा कर लिया था। मेवाड़ और मालवा के बीच हुए विवाद के कारण महाराणा ने 1515 ई. में मालवा के सुल्तान से रणथंभौर जीत लिया। 1519 ई. में महाराणा ने गागरोन के पास सुल्तान महमूद को हराया और उसे कैद कर लिया। राणा सांगा ने महमूद को आधा राज्य वापस देकर आजाद कर दिया। महमूद ने 1521 में गागरोन लेने की कोशिश की लेकिन उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ा।
महाराणा ने अपने पराक्रम से मेवाड़ राज्य का विस्तार किया। 1517 ई. में मेवाड़ और दिल्ली की सीमा मिलने लगी जिससे संघर्ष उत्पन्न हुआ। उस समय इब्राहिम लोधी नया सुल्तान बना था। इब्राहिम लोधी के न मानने पर 1517 ई. में महाराणा ने खातोली के युद्ध में इब्राहिम लोदी को शिकस्त दी। 1527 ई. में महाराणा ने बयाना की लड़ाई में बहादुरी का परिचय देते हुए बाबर के झंडे़, रन कंकण (संगीत वाद्ययंत्र जैसे वंकिया (एक लम्बा पीतल का वाद्ययंत्र), ड्रम, झांझ, ढपली, छोटे ढोल आदि) तथा बाबर के लाल कमान तम्बू पर कब्जा कर लिया। बाबर के कई सैनिक मारे गए और कई लड़ाई छोड़कर भाग गए और कुछ को कैद किया गया। महाराणा ने अपने विवेक एवं शौर्य से कई युद्धों में विजयीश्री प्राप्त की।
1527 ई. में पानीपत में बाबर से पुनः युद्ध आरम्भ हुआ। युद्ध के दौरान एक बाण महाराणा के सिर में लगा और वह बेहोश हो गए। राजपूत महाराणा को बेहोशी की दशा में युद्ध क्षेत्र से बाहर बसवा ले गए, औरं उनका उपचार किया गया, चित्तौड़ न लौट बसवा में कुछ आराम के बाद महाराणा ने फिर से युद्ध की तैयारी का आदेश दिया। किन्तु 1528 ई. विक्रम संवत् 1584 में कालपी नामक स्थान पर उनका स्वर्गवास हो गया। विभिन्न संघर्षों में उनके शरीर पर कुल 84 घाव लगे थे। उनकी वीरता, पराक्रम, उच्च सदाचार और राजनैतिक दूरदर्शिता ने उन्हें राजपूताने में सर्वोच्च आसन पर विराजमान कराया।
महाराणा संग्राम सिंह जी आर्थिक स्थिरता का पता उनके शासकाल के दौरान दिए गए भूमि अनुदान से लगाया जा सकता है। कई शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से उनकी उदारता एवं दानशिलता का वर्णन मिलता है। उनके समय में जारी संग्रामशाही सिक्का बहुत लोकप्रिय रहा। अब तक 6 प्रकार के सिक्के उनके पाए जाते है, जिन पर उनके नाम आदि उकेरे हुए है।

Related posts:

ज्ञान अर्जित के लिए दिमाग रूपी पात्र को खाली करना जरूरी : डॉ. गुप्ता

HDFC Bank Empowers MSMEs with Special Knowledge Sessions

सड़क सुरक्षा जागरूकता हेतु हिन्दुस्तान जिंक सम्मानित

भाणावत चेयरमैन व चौधरी सचिव नियुक्त

ड्यू एरिना के साथ जुड़े 1.5 मिलियन गेमर्स

मुनि 108 श्री आर्षकीर्तिजी महाराज ने दिव्यांगों को दिया आशीर्वाद

मुनि सुरेशकुमार का महाप्रज्ञ विहार में चार्तुमास प्रवेश आज

राजस्थान का पुनर्जागरण: विरासत संरक्षण और सतत पर्यटन के लिए एक सुंदर योजना

डॉक्टर्स डे पर डॉक्टर्स सम्मानित

फ्लिपकार्ट कर रहा है भारतीय कारीगरों को सपोर्ट देने के लिए 74वें गणतंत्र दिवस के मौके पर चौथे ‘क्राफ...

रंगोली, स्लोगन एवं पोस्टर प्रतियोगिताओं के विजेता पुरस्कृत

एचडीएफसी बैंक ने ग्रामीण भारत के किसानों के लिए ‘ई-किसान धन’ ऐप लॉन्च किया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *