भागवत कथा मात्र ग्रंथ नहीं, साक्षात प्रभु का विग्रह रूप : संजय शास्त्री

पानेरियों की मादड़ी में श्रीमद् भागवत कथा सम्पन्न
उदयपुर।
पानेरियों की मादड़ी स्थित घूमर गार्डन में पुरुषोत्तम मास के उपलक्ष में चल रही सप्त दिवसीय भागवत कथा का पूर्ण भक्ति भाव, कृष्णमयी वातावरण एवं पूर्णाहुति के साथ समापन हुआ। यजमान श्यामलाल मेनारिया अखिलेश मेनारिया और उज्ज्वल मेनारिया ने बताया कि कथा के अंतिम दिन श्रोताओं ने सुदामा चरित्र, द्वारिका की सब लीलाए, निमी योगेश्वर संवाद, श्रीकृष्ण उद्धव संवाद, भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं का वर्णन, भगवान का स्व धाम गमन और परीक्षित मोक्ष प्राप्ति के प्रसंगों का खूब आनंद लिया। संगीत की सुमधुर धुनों पर श्रोता खूब झूमे और भक्ति नृत्य किये। प्रात: 9 से दोपहर 1 बजे तक चली श्री भागवत कथा के 4 घंटे कैसे और कहां निकल गए श्रोताओं को पता ही नहीं चला। श्रोताओं ने कहा कि कथा सुनते वक्त वे पंडाल में आए थे लेकिन कथा समाप्ति तक उन्हें लगा कि वह कथा पंडाल में नहीं होकर साक्षात द्वारिका और गोकुल में परिभ्रमण कर रहे हैं।
व्यासपीठ पर विराजित कथावाचक पंडित संजय शास्त्री ने जब श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का वर्णन किया तो पांडाल में उपस्थित सभी श्रोताओं की आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। शास्त्रीजी ने बताया कि सुदामा अपनी गरीबी और बदहाली से तंग आकर अपने परम मित्र श्रीकृष्ण से मदद मांगने गये। वहाँ उनकी हालत देखकर द्वारपालों ने उन्हें महल में प्रवेश देने से मना कर दिया। इस बात का जब श्रीकृष्ण को पता चला तो वे स्वयं दौड़े चले आये और सुदामा को गले लगा कर अपने आंसुओं से उनके के पैर धुलवाए।
कथा प्रसंग में जब सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने आते हैं तो वे अपने साथ श्रीकृष्ण को देने के लिए एक पोटली में चावल बांध कर लाते हैं। वह इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गुरु मित्र और भगवान से मिलने जाते हैं तो खाली हाथ नहीं जाते। उसके बाद श्रीकृष्ण सुदामा की पोटली से चावल खा लेते हैं और उन्हें उलाहना देते हैं कि कैसे एक बार बचपन में सुदामा उनके हिस्से के चने खा गए थे। इस तरह खूब आदर सत्कार करके प्रभु सुदामा को विदा कर देते हैं। सुदामा लौटते समय दुखी होता हैं कि श्रीकृष्ण ने उन्हें बिना कुछ दिए ही विदा कर दिया। मगर, जब वे अपने गाँव पहुँचते हैं, तो उन्हें अपनी झोंपड़ी की जगह आलीशान महल मिलता है। इसे देखकर वो भावविभोर हो जाते हैं और श्रीकृष्ण की महिमा गाते हैं।
शास्त्रीजी ने कथा समापन पर कहा कि भागवत कथा मात्र एक ग्रंथ नहीं वह साक्षात प्रभु का विग्रह रूप है। इस कथा में संपूर्ण जीवन का सार है। जो संसार में आया है उसे तो जाना ही है। व्यक्ति का शरीर मरता है आत्मा नहीं। आत्मा अजर अमर है। सुदामा ऐसे विप्र महर्षि थे जिन्होंने साक्षात भगवान को अपने चरणों में झुका दिया। श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता का उदाहरण और कहीं नहीं मिलता। शिक्षा जगत के तो गुरु कई हो सकते है लेकिन दीक्षा गुरु केवल एक ही होते हैं। उनका आदर और सम्मान करना हम सभी का परम कर्तव्य है। इस प्रकार प्रभु ने अपने निज़ धाम को गमन किया और कथा का समापन है।
कथा समापन के पश्चात यज्ञ हुआ और विधिविधान के साथ ही पूर्णाहुति हुई। कथा स्थल से शोभायात्रा के साथ भागवत कथा को शिरोधार्य कर पूर्ण भक्ति भाव के साथ मंदिर ले जाया गया। पूरे मार्ग में जय श्रीकृष्णा, राधे राधे के जयकारों से आसमान गूंजायमान हो गया।

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