पं. चतुरलाल की स्मृति में ‘स्मृतियां’ कार्यक्रम कल

युवा संगीतज्ञ श्रुति और प्रांशु चतुरलाल ‘रेगिस्तान’ से देंगे जीवन में सकारात्मकता का संदेश

उदयपुर। उदयपुर में जन्मे प्रख्यात तबला वादक पं. चतुरलाल की स्मृति में पं. चतुरलाल मेमोरियल सोसायटी, नई दिल्ली द्वारा हिन्दुस्तान जिंक के सहयोग से 5 मार्च को भारतीय लोककला मण्डल में शाम 7 बजे ‘स्मृतियां’ कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा।
पं. चतुरलाल के पुत्र चरनजीत ने बताया कि कार्यक्रम में युवा संगीतज्ञ और कलाकार श्रुति और प्रांशु चतुरलाल की नवीन प्रस्तुति इस बार ‘स्मृतियां’ में संगीतप्रेमियों के मन को मोह लेगी। रेगिस्तान के तहत् राजस्थानी लोकसंगीत और पर्कशन की जुगलबंदी का उद्धेश्य जीवन में सकारात्मकता का संदेश देते हुए खुशी, प्रेम, हंसी और सद्भावना को अपनाने के लिये प्रेरित करना है। ‘रेगिस्तान’ की प्रस्तुति पर्कशन पर प्रांशु चतुरलाल, राजस्थानी लोकसंगीत पर सवाई खान, सारंगी और कीबोर्ड पर लोक ताल लतीफ खान देंगे। दूसरी प्रस्तुति में लोकगायिका मालिनी अवस्थी और पं. रोनू मजूमदार की बांसूरी पर पहलीबार होने वाली जुगलबंदी श्रोताओं का मंत्रमुग्ध कर देगी। कार्यक्रम के सह-प्रायोजक राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स लि., पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लि., पावरग्रिड कॉर्पोरेशन लि., भारतीय लोककला मंडल, होटल रमाडा एवं होटल प्राइड हैं।
संगीत हो या कोई भी क्षेत्र साधना से सफलता संभव : प्रांशु चतुरलाल


तबला वादन में देश के युवा कलाकार पं चतुरलाल के सुपौत्र प्रांशु चतुरलाल का मानना है कि संगीत हो या कोई भी क्षेत्र साधना से सफलता संभव है। प्रख्यात तबला वादक प. चतुरलाल की स्मृति में आयोजित होने वाले ‘स्मृतियां’ कार्यक्रम में प्रस्तुति देने आए प्रांशु चतुरलाल ने बताया कि वे बचपन से ही संगीत के माहौल में पलेबढ़े हैं। अपने पिता पं. चरनजीत चतुरलाल से गुरू के रूप में तबला वादन की शिक्षा हासिल की। प्रांशु ने कहा कि यदि आपको किसी भी क्षेत्र में सफलता हांसिल करनी है तो उसके लिये मेहनत में कोई बहाना नहीं है। समय के साथ आएं संगीत के बदलाव पर उनका मानना है कि अब गुरू को यह समझना है कि शिष्य जिस परिदृश्य से है उसी अनुरूप अब उसे संगीत की लगन लगे, क्योंकि वर्तमान में हर कोई व्यक्ति जल्दबाजी में कम मेहनत कर शीघ्रताशीघ्र सफलता पाना चाहता है।
प्रांशु ने डिजिटलाइजेशन को समय की आवश्यकता बताते हुए कहा कि दूरदर्शन और रेडियो के दौर से लेकर अब ओटीटी प्लेटफार्म तक सब कुछ बदला है लेकिन संगीत नहीं। युवा पीढ़ी अब वल्र्ड म्यूजिक की तरफ आकर्षित हो रही है जिसे हमें समझना होगा। हर देश के संगीत की अपनी खूशबू और अपना रंग है जिसे समय के अनुरूप अब नये प्रयोगों से सबके लिये प्रिय बनाया जा सकता है जो कि समय की आवश्यकता है। बॉलीवुड संगीत में नये प्रयोगों और थोड़े से बदलाव से आज भी अच्छे गीत और संगीत को लोग पसंद करते है। भारत का संगीत ईश्वर का संगीत है जिसे हर युग में हर देश में सुना जा रहा है। जल्द ही ऐसा समय आएगा जब पहले की तरह ही देश का हर बच्चा-बच्चा शास्त्रीय संगीत को सुनना पसंद करेगा। प्रांशु ने पर्कशन पर अपने नवाचार रेगीस्तान के बारे में बताया कि राजस्थान के लोक संगीत के साथ इस प्रयोग को सुनने वाले बहुत पसंद करेंगे। रेगिस्तान में उन्होंने राजस्थान के प्रसिद्ध मांगणियार सवाई खान और लतीफ खान के साथ जुगलबंदी की है।
राजस्थान के लोकसंगीत और लोकवाद्यों को बचाने में सरकार आगे आए : लतीफ-सवाई खां


पारंपरिक लोकसंगीत और लोकवाद्य पीढिय़ों से लंगा और मांगणियार की आजिविका का साधन है। इसे बचाने के लिये सरकार लोककला केंद्र और संगीत विद्यालय की शुरूआत करें। यह कहना है राजस्थान के सुप्रसिद्ध मांगणियार कलाकार लतीफ खां और सवाई खां का। प.चतुर लाल स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुति देने आए पद्मश्री शाकर खां के पोते और दोहिते लतीफ और सवाई खां ने कहा कि लोकसंगीत हमारे खून और रगों में बसता है जिसे हम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे है। लोकसंगीत कभी लुप्त नही होगा, जिसे हम समय के साथ फ्यूजन की प्रस्तुति से लोगों के दिलों में हमेशा जिन्दा रखे हुए हैं।
लोकसंगीत और वाद्य जन्म से लेकर मरण तक हर मौके पर अपनी विशेष प्रस्तुती रखते है। शादी-ब्याह से लेकर प्रकृति के हर अवसर के गीत संगीत से हम लोगों का मनोरंजन करते हैं। सरकार मांगणियार और लंगा जाति के बच्चों के लिये शिक्षा के साथ-साथ संगीत को आगे बढ़ाने की पहल करें तो इस धरोहर का सरंक्षण हो सकेगा। आज कमायचा, सुरमण्डल, सुरनाई और नड़ जैसे कई वाद्य हैं जो लुप्त होने के कगार पर हैं क्योंकि इसे बनाने वाले कलाकार अब बहुत कम रह गये है। मांगणियार का कोई भी गीत कहीं भी लिखा हुआ नही है। इसे हमने सुन-सुन कर ही सीखा है। राजस्थान में जजमानी प्रथा ने लोकसंगीत को आज भी जीवित रखा है। लतीफ और सवाई खां ने कहा कि समय के साथ अब कम होते कॉसंर्ट कार्यक्रमों से लोकसंगीत को आधुनिक तरीके से प्रस्तुत कर इसे युवाओं के लिये आकर्षण बनाने के लिये फ्यूजन और धुनों को बना इसमें नवाचार कर रहे है।

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