उदयपुर। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन की ओर से मेवाड़ के 53वें एकलिंग दीवान महाराणा उदयसिंहजी की 501वीं जयंती मनाई गई। महाराणा उदयसिंहजी का जन्म वि.सं. 1578, भाद्रपद शुल्क एकादशी (ई.सं. 1521) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित रायआंगन में मंत्रोच्चारण के साथ उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर दीप प्रज्वलित किया गया। सिटी पेलेस भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों के लिए चित्र सहित ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्रसिंह आउवा ने बताया कि देश के स्वामीभक्ति के इतिहास में पन्नाधाय का सम्माननीय स्थान है। उदयसिंहजी महाराणा संग्रामसिंह के एकमात्र जीवित पुत्र थे और उनके प्राणों की रक्षा करके ही मेवाड़ राज्य को अक्षुण्ण रखा जा सकता था। इस स्थिति को मेवाड़ के सरदारों व प्रजा ने भलीभांति समझ लिया था। इसके अतिरिक्त मेवाड़ की भोगौलिक व सामरिक स्थिति भी अन्य राज्यों के मेवाड़ पर आक्रमण का कारण थी। गुजरात व मालवा जाने वाले व्यापारिक मार्ग में चित्तौड़ केन्द्र था। अतः मार्ग पर अधिकार करने के लिये मेवाड़ पर आक्रमण अवष्यंभावी था।
इसी स्थिति को ध्यान में रखकर महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने मेवाड़ की युद्ध प्रणाली व सैन्य-नीति में व्यापक परिवर्तन किसे। सर्वप्रथम, सन् 1553 ई. में उदयपुर की स्थापना करके अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया क्योंकि उदयपुर गिर्वा की पहाडि़यों में स्थित है। अतः संकट के समय इसे राजधानी के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। दूसरा, मैदानी युद्ध के स्थान पर पहाड़ों का उपयोग करके छापामार युद्धप्रणाली के विकास का श्रेय भी महाराणा उदयसिंह को जाता है। इस युद्ध प्रणाली का प्रयोग कालांतर में मेवाड़ के अन्य महाराणाओं द्वारा भी किया गया। इसी सैन्य नीति का एक महत्वपूर्ण भाग था राज्य के साथ-साथ उसके संघर्ष को दीर्घजीवी रखने के लिये युद्ध में महाराणा व उनके परिवार को सुरक्षित रखना। इसी नीति के कारण सन् 1567-68 ई. में चित्तौड़ पर मुगल आक्रमण के समय मेवाड़ के सरदारों ने महाराणा उदयसिंह द्वितीय व उनके परिवार को युद्धस्थल से सुरक्षित बाहर निकाल दिया व स्वयं लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नगर की स्थापना करके राजमहल का निर्माण प्रारम्भ करवाया जिसमें रायआंगण, नीका की चौपाड़, रावला (वर्तमान में कोठार) आदि का निर्माण करवाया। उदयपुर की सुरक्षा, सिंचाई व जलप्रदाय करने के उद्देश्य से उदयसागर का निर्माण करवाया। महाराणा के शासनकाल में उदयश्याम मंदिर, उनकी झाली रानी के द्वारा चित्तोड़ में झाली बावड़ी का निर्माण करवाया गया।