उदयपुर : विजया दशमी पर्व पर मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य महाराज कुमार डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपने सुपुत्र भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ के साथ ऐतिहासिक अस्त्र-शस्त्रों का विधि-विधान के साथ पूजन किया। डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने शनिवार को महाराणा उदय सिंह द्वितीय (ई.स. 1537-1572) के कार्यकाल में निर्मित ‘सलेहखाना’ (शस्त्रागार) में परम्परानुसार मंत्रोचारण के साथ अस्त्र-शस्त्रों का पूजन किया। डॉ. लक्ष्यराज सिंह ने अपने पुत्र हरितराज सिंह को महाराणा सांगा, महाराणा राज सिंह, प्रात: स्मरणीय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सहित अन्य प्रतापी महाराणाओं के अस्त्र-शस्त्रों के ऐतिहासिक महत्व से रू-ब-रू कराया। मेवाड़ के पूर्व राजवंश के ऐतिहासिक अस्त्र-शस्त्र पूजन में ऐतिहासिक 7 तलवारें, एक ढाल, एक भाला, 2 बंदूक, 2 कटार और धनुष-तीर को विराजित किया गया। मेवाड़ की ये तलवारें फौलादी लोहे से निर्मित हैं। फौलाद निर्मित तलवारों का मेवाड़ विशेष केन्द्र रहा है। मेवाड़ के महाराणा जब भी किसी उत्सव या आयोजन में शामिल होने के लिए जाते थे तो वे विशेष तौर पर तैयार तलवार को साथ में रखते थे। इन अलंकृत तलवारों को तैयार करने में यहां के कारीगरों को विशेष दक्षता प्राप्त थी। इनके मूठ पर सोने के तार का, वर्क का, कुंदन का, मीनाकारी व रत्नजड़ित एवं कौरबन्दी आदि का कौशल देखने को मिलता है। युद्ध में रक्षा के लिए योद्धा के हाथ में ढाल रखी जाती थी, ढाल पर स्वर्ण कारीगरी बहुत ही अद्भूत है। मेवाड़ के भाले और कटार पर उच्च शिल्प कौशल भी अद्वितीय है। शस्त्र पूजन में शामिल दोनों बंदूकों पर सोने की तार का कोफ्तगीरी का काम है, जो सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण अस्त्र-शस्त्र में शुमार है। महाराणा प्रताप की सेना में मेवाड़ के आदिवासियों की धनुष और तीर के साथ पहली प्राथमिकता रही थी। पूजन में एक धनुष और लोहे का तीर इस पूजा में रखा गया।
मेवाड़ वंश में सूर्यवंशी परम्परानुसार आश्विन शुक्ल दशमी को विजया दशमी पर्व का अस्त्र-शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र के नौ दिन शक्ति की पूजा के बाद दशहरे पर ‘शस्त्र पूजन’ की परम्परा रही है। इस पर्व पर महाराणा ‘शमी वृक्ष’ के पूजनार्थ लवाज़मे के साथ पधारते आ रहे हैं। कालान्तर में मेवाड़ राज्य में इस त्योहार का महत्व बढ़ता गया। दशहरे पर महाराणा शोभा यात्रा के साथ हाथी पोल बाहर पधार ‘शमी पूजन’ करते और पूजन के बाद राजमहल पधारते। महाराणाओं ने अपने-अपने शासनकाल में समय की आवश्यकतानुसार अलग-अलग सैनिक बल गठित किए थे। पूजन में सज्जन इंफेन्ट्री, मेवाड़ लान्सर्स और निशान के ध्वज को भी सम्मिलित किया गया। महाराणा सज्जन सिंह जी के कार्यकाल (ई.स. 1874-1884) में ‘सज्जन इंफेन्ट्री’ का गठन किया गया था, जिसे 1942 में इण्डियन स्टेट्स फोर्स की बी-वर्ग की इकाई के रूप में और 1942 में पुनः स्टेट सर्विस यूनिट की तरह आधी बटालियन में पुनर्गठित किया गया था। मेवाड़ लान्सर्स को महाराणा फतह सिंह जी के कार्यकाल (ई.स. 1884-1930) में गठित किया गया। वर्तमान में यह बल भारतीय सेना में भारतीय राज्य बल के भाग की इकाई ’ए’ के रूप में कार्यरत है। निशान का ध्वज जिस पर सूर्य और मेवाड़ी कटार की छवि बनी है।