हमारी संस्कृति सूर्य के उदय के प्रतीक पूर्व से शुरू होती है अस्त के प्रतीक पश्चिम से नहीं इसलिए अभिवादन हैलो से नहीं, बल्कि खम्मा घणी, प्रणाम, नमस्कार से करिए : लक्ष्यराजसिंह मेवाड़

उदयपुर : ऐतिहासिक राम-रावण मेले का समापन औऱ विभूतियों का सम्मान समारोह रविवार को मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के मुख्य आतिथ्य में बोहेड़ा में हुआ। लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ ने कहा कि प्राचीनकाल से एक-एक मेवाड़वासी धर्म और संस्कृति के संरक्षण में अपनी महती भूमिका निभाता आ रहा है। धर्म और संस्कृति के संरक्षण में इस वीर भूमि मेवाड़ और प्रभु एकलिंगनाथजी की असीम कृपा रही है कि किसी भी मेवाड़ी के हृदय से मेवाड़ रत्तीभर भी इधर-उधर नहीं होता।

सम्मानित मेवाड़वासियों से मेरा यही आग्रह है कि हमारी भावी पीढ़ी में भी धर्म और संस्कृति के संरक्षण के भाव पैदा करना हम सबका कर्तव्य है, जिसके निर्वहन के लिए हमें आगे आना होगा। मैं अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश जैसी किसी भी भाषा का विरोध नहीं करता, लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता कि हमारी भावी पीढ़ी मेवाड़ी को भूलकर किसी भी दूसरी भाषा को सीखे। पिछले कुछ वर्षों में मैंने एक अजीव बदलाव देखा है कि जब हम कहीं जाते हैं तो अभिवादन में लोग वेलकम-वेलकम बोलते हैं। किसी के भी मोबाइल की घंटी बजती है तो लोग बोलते हैं-हैलो-हैलो। जबकि हमारी संस्कृति इससे कई गुणा ज्यादा समृद्ध है। हमारी संस्कृति हैलो की नहीं, बल्कि खम्मा घणी, प्रणाम, नमस्कार की है। हमारी संस्कृति उस पश्चिम से शुरू नहीं होती जहां सूर्य अस्त होता। हमारी संस्कृति उस पूर्व से शुरू होती है जहां से सूर्य उदय होता है। मेरा आग्रह है कि हमारे बच्चों की पहली भाषा हमारी मातृ भाषा मेवाड़ी ही हो। फिर अन्य भाषाएं सीखें, क्योंकि भाषाएं जोड़ने का काम करती हैं, तोड़ने का नहीं। बावजी चतरसिंहजी ने 18 कालजयी ग्रन्थों की रचना मेवाड़ी में की। वर्तमान परिपेक्ष्य में भी हमारी भावी पीढ़ी को बावजी चतरसिंहजी द्वारा रचित इन मेवाड़ी गंथों से रूबरू कराने की आवश्यकता है।

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