ब्रेस्ट कैंसर के देर से डायनगोसिस होने वाले केसेस बढ़ रहे हैं क्योंकि राजस्थान में केवल 4.8% महिलाओं ने ब्रेस्ट एग्जामिनिएशन कराया है

ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूकता प्रदेश में बहुत कम है

स्कूलों और कॉलेजों में सामुदायिक शिक्षा कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकती है

उदयपुर : राजस्थान में हर साल लगभग 1 लाख कैंसर मरीजों का डायग्नोसिस किया जाता है। इनमें से लगभग आधे कैंसर के केस मुंह, ब्रेस्ट, यूटरस और फेफड़ों के कैंसर हैं। जब कुल कैंसर मरीजों की संख्या को ध्यान में रखा जाता है, तो यह भी पता चला है कि महिलाए पुरुषों से ज्यादा पीड़ित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर के केसेस की संख्या बढ़ रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थानी महिलाओं में से केवल 4.8 प्रतिशत ने ही अपने जीवन में कभी ब्रेस्ट की जांच करवाई है। भारत में ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता का स्तर कम है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में कुछ जागरूकता कैम्प लगाये जाते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के कैम्प लगभग न के बराबर हैं।

कोविड-19 के समय में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की हालत बिगड़ती चली गयी। लॉकडाउन के दौरान कई महिलाओं के ब्रेस्ट कैंसर का  पता नहीं चला। जिनका पहले से इलाज चल रहा था, आवाजाही में दिक्कतों के कारण उनका इलाज आगे नहीं बढ़ पाया।

डॉ. रोहित रेबेलो अनंता मेडिकल कॉलेज ने कहा, “कई ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों को महामारी के दौरान कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओ इन समस्याओ से ज्यादा दो चार होना पड़ा। उनमें से ज्यादातर फॉलो-अप के लिए हॉस्पिटल में आने से कतराती थी। और कई लोगों को हॉस्पिटल पहुंचने में मुश्किल होती थी क्योंकि राज्य की अधिकांश परिवहन सुविधाएं बंद थीं। कोविड ने अनावश्यक रूप से बीमारी को बदतर बना दिया।”

उन्होंने आगे कहा, “ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम जल्दी पता लगाने से शुरू होती है। इसे पूरा करने का सबसे आसान तरीका आत्मनिरीक्षण है। एक महिला इसका उपयोग अपने ब्रेस्ट की स्थिति का आकलन करने के लिए कर सकती है और गांठ मौजूद हैं या नहीं, यह वे आत्मनिरीक्षण से पता कर सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि कॉलेज उम्र की महिलाएं इसे लोकप्रिय बनाने के लिए इस प्रक्रिया के बारे में जानें। शुरूआती स्टेज में डायग्नोसिस होना लगभग हमेशा एक बेहतर होता है, क्योंकि जल्दी पता चलने से मरने से बचने की संभावना बढ़ जाती है। स्कूलों और कॉलेजों में सामुदायिक शिक्षा के माध्यम से ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है। ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता कक्षा 12 की लड़कियों से शुरू होनी चाहिए और आगे की शिक्षा कॉलेज स्तर पर दी जानी चाहिए।”

अगर ब्रेस्ट  में गांठ पाई जाती है, तो उसके बाद डॉक्टर के पास जाना चाहिए ताकि इसका उचित डायग्नोसिस किया जा सके। ऐसा भी हो सकता है कि यह गाँठ ब्रेस्ट कैंसर का संकेत नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए यह फाइब्रोएडीनोमा हो सकता है, जोकि एक सौम्य गांठ के रूप में है जो युवा लोगों में  ज्यादा देखने को मिलता है। कभी-कभी युवा महिलाओं को सौम्य निप्पल डिस्चार्ज का अनुभव होता है जो ब्रेस्ट कैंसर का लक्षण जैसा होता है लेकिन यह ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता है। नतीजतन यह महत्वपूर्ण है कि ब्रेस्ट कैंसर फैसिलिटी में उचित डायग्नोसिस किया जाए।

अध्ययनों के अनुसार ग्रामीण महिलाओं की तुलना में शहरी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर से मृत्यु दर ज्यादा है। वर्तमान में देश भर में कई क्लीनिकल टेस्ट हो रहे हैं। जीबीएच कैंसर हॉस्पिटल, उदयपुर के मेडिकल ओन्कोलोजी- डिपार्टमेंट हेड तथा डायरेक्टर डॉ. रोहित रेबेलो इस तरह के मरीजों के लिए उदयपुर में क्लिनिकल ट्रायल आयोजित कर रहे हैं, जो एडजुवेंट कीमोथेरेपी प्राप्त करने के छह महीने के भीतर या पैलिएटिव वाले कीमोथेरेपी की पहली पंक्ति के बाद मेटास्टेटिक कार्सिनोमा ब्रेस्ट से पीड़ित मरीजों के लिए है। इन ट्रायल्स में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों के लिए नए रिसर्च और इलाज मुहैया कराने की क्षमता है।  इसमें यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि क्लीनिकलस  अध्ययन में नामांकित मरीजों के लिए महंगी दवाएं मुफ्त उपलब्ध हों।

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