पत्रकार लवलीन में सामाजिक आक्रोश की ज्वाला धधकती थी : प्रो. सुदेश बत्रा

संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘’ऐसे तो नहीं जाना था लवलीन’’ का लोकार्पण

जयपुर। पिंकसिटी प्रेस क्लब में प्रखर पत्रकार-साहित्यकार दिवंगत लवलीन की स्मृति में उनके मित्रों की ओर से आयोजन किया गया और उनके साथ संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘’ ऐसे तो नहीं जाना था लवलीन’’ का लोकार्पण किया गया।इस अवसर पर राजस्थान विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. सुदेश बत्रा मुख्य अतिथि रही और प्रगतिशील लेखक संघ राजस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने अध्यक्षता की।

मुख्य अतिथि प्रो. सुदेश बत्रा ने लवलीन को याद करते हुए मुझे लगता है कि वह दहकता हुआ पलाश थी। उसमें विद्रोह की ज्वाला थी। उसके भीतर अपने सामने उपास्थित हालातों को नहीं बदल पाने की कसक थीं। उसके भीतर आक्रोश की ज्वाला धधकती थी। उसके विशिष्ट व्यक्तित्व में कई विरोधाभास और विसंगतियां थीं जिसे वह अपने अवसाद में निरन्तर लेखन से भरती थीं। वह अध्ययनशील थीं। वह विभिन्न विधाओं या विषयों पर लिखती थी किन्तु उसकी भाषा बहुत दमदार होती थी।वह तनावों और बेचैनी के बावजूद लिखती क्योंकि लेखन उसके जीवन का अटूट हिस्सा था उसका मानना था कि लेखन कार्य उसी को करना चाहिए जिसमें शोध कार्य की प्रवृति और सूक्ष्म अवलोकन की क्षमता हो। इसीलिए उसका लिखा आज भी प्रासंगिक है।उस जैसी भाषा की सशक्तता और लेखन क्षमता विरले ही देखने को मिलती है। वह बहुत संवेदनशील थी। उसने सारे बंधनों और वर्जनाओं को पार कर लिया था।

कार्यक्रम के अध्यक्ष फारूक आफरीदी ने कहा कि लवलीन ना सिर्फ प्रखर पत्रकार और साहित्यकार थी बल्कि वे एक्टिविस्ट थी जिसने समाज में व्याप्त विद्रूपताओं और विडंबनाओं को उजागर किया और उनसे संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उनका लिखा सम्पूर्ण साहित्य इसका साक्षी है। उनके लिखे और अप्रकाशित साहित्य का दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है ताकि नयी पीढ़ी उसका अध्ययन कर प्रेरणा प्राप्त कर सके। कई बार हमारे जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब हमारे अच्छेऔर करीबी मित्र अवसाद या किसी विशेष बीमारी या तकलीफ में आ जाते हैं और हम उन्हें ना तो उबारने हैं और ना ही मददगार बनते हैं और अंततः उन्हें खो देते हैं। लवलीन ऐसी ही ज़िंदादिल पत्रकार और एक जुनून वाली लेखिका थी। उसके पास समाज को बदलने,दलित, वंचित , पीड़ित और प्रताड़ित समाज की आवाज उठाने का जज्बा था। उनकी कविताओं,कहानियों और रिपोर्ताज़ में पीड़ित और प्रताड़ित समाज का दर्द था ।
विविधा से जुड़ी मंजु शर्मा ने कहा कि लवलीन ने मित्रता के मायने समझाए। वह खुले मन की थी और सामंती प्रवृतियों और शोषण की विरोधी थी । वह जुझारू प्रवृति की थी । उसने सन्गीत संगीत सीखा, नाटक सीखा, पत्रकार से लेखक बनी । वह लेखन में जेंडर भेद करने के खिलाफ थी । वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी होने के बावजूद अवसाद में रही। यदि मित्रों के सुख दु:ख में भागीदार रहें तो इस स्थिति से निकाला जा सकता है। ‘’ऐसे तो नहीं जाना था लवलीन’’ के माध्यम से उनके समय और अनुभवों को साझा किया गया है।

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रोफेसर और कथाकार सत्यनारायण ने उनके संस्मरणों को साझा करते हुए बताया कि वह अपने काम के प्रति अत्यन्त निष्ठावान, उत्तरदायी और लगनशील थी। उसे लगता था कि बहुत अधिक काम है और समय बहुत कम है। मैंने उसे बावली चिड़िया की संज्ञा दे डाली थी। उसे लगता था कि वह कैसे समाज में जी रही है। उसके सारे लेखन को संजोकर रखने की जरूरत है। उन्होंने आदिवासियों पर बहुत महत्वपूर्ण उपन्यास लिखा जिसे तलाश कर प्रकाशित किया जाना चाहिए। वह रचनाकार के स्तर पर बहुत बैचेन रहती थी। हमेशा कुछ नया करने में प्रवृत्त रहती थी।

प्रारम्भ में मंजु शर्मा ने कहा कि लवलीन ने मित्रता के मायने समझाए। वह खुले मन और जुझारू प्रवृति की थी। सामंती प्रवृतियों और शोषण की विरोधी थी। उसने संगीत और नाटक सीखा,पत्रकार से लेखक बनी । उसे महिला और पुरूष लेखन में जेंडर भेद करना पसंद नहीं था। वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी फिर भी अवसाद में रही। उसे इस स्थिति से निकाला जा सकता था। हमें अपने मित्रोंऔर प्रियजनों से निरन्तर मिलते रहना चाहिए। इसीलिए लवलीन की स्मृतियों पर आधारित पुस्तक ‘’ऐसे तो नहीं जाना था लवलीन’’ का प्रकाशन किया गया है। प्रमुख एक्टिविस्ट ममता जेटली ने कहाकि उन्होने महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों और बलात्कारों की घटनाओं को लेकर पुरजोर शब्दों में आवाज उठाई। सुपरिचित कवयित्री अजंता देव ने भी अपने अनुभव साझा किए । प्रोफेसर सीमंतिनी ने आदिवासियों के संघर्ष पर लिखी लवलीन की कहानी के अंशों का पाठ किया। वरिष्ठ पत्रकार सुनीता चतुर्वेदी ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।अर्चना श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का संयोजन किया ।

इस अवसर पर प्रमुख साहित्यकार,पत्रकार,रंगकर्मी,महिला संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े पदाधिकारी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। इनमें डॉ.सत्य नारायण व्यास,डॉ.दुर्गाप्रसाद अग्रवाल,डॉ.राजाराम भादू,डॉ.विशाल विक्रम सिंह,प्रलेस अध्यक्ष,गोविन्द माथुर,हरीश करमचंदानी,निशा सिद्धू, एम.आई.जाहिर,उमा,तसनीम खान,कविता कर्माकर(असम),उषा दशोरा, जीनस कंवर,मुखर कविता,एक और अंतरीप पत्रिका के प्रधान सम्पादक एडवोकेट प्रेम कृष्ण शर्मा आदि उपस्थित थे।

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