श्रीनाथजी की जागीर और मेवाड़ पर व्याख्यान

उदयपुर। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से आयोजित वार्षिक गाइड ओरिएंटेशन प्रोग्राम में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, नाथद्वारा के व्याख्याता डॉ. आशुतोष गुर्जर ने ‘श्रीनाथजी जागीर’ पर व्याख्यान दिया। व्याख्यान में सिटी पेलेस म्यूजि़यम के 60 से अधिक गाइड्स ने भाग लिया।
डॉ. आशुतोष गुर्जर ने पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिरों पर प्रकाश डाला और श्रीनाथजी प्राकट्य वार्ता पर बात करते हुए वल्लभाचार्य और उनकी सेवा प्रणाली पर विस्तृत जानकारी दी। वल्लभाचार्यजी के बाद उनके पुत्र विठ्लनाथजी हुए जिन्होंने गोवर्धननाथजी की राग सेवा, भोग सेवा और शंृगार सेवा आदि को विस्तृत किया। विठ्लनाथजी के सुबोधनी साहित्य में ठाकुरजी वर्षभर के प्रतिदिन के हिसाब से सभी सेवाओं का वर्णन किया जिसका आज तक अनुसरण किया जा रहा है।
डॉ. गुर्जर ने बताया कि गुंसाईजी विठ्लनाथजी ने अपने सातों पुत्रों को ठाकुरजी के सात स्वरूपों की सेवा देकर अलग-अलग स्थानों पर भेज दिया और उनकी नियमित सेवा का वचन लिया। इस प्रकार उनके पुत्रों ने आगे चलकर उसी क्रम में अपनी-अपनी परम्पराओं का निर्वहन किया जो वर्तमान में भी चली आ रही है।

मुगलकाल में जब औरंगजेब ने फरमान जारी किया कि हिन्दूओं के सभी मंदिर ध्वस्त कर दिए जाए। ऐसे में ब्रज के गुंसाई डर गए और वहां से ठाकुरजी के विग्रह को लेकर अन्य सुरक्षित स्थल की तलाश में निकल गए। श्री गोवर्धननाथजी का विग्रह लेकर सेवादार ब्रजवासियों के साथ देश के विभिन्न हिन्दू राजाओं से शरण मांगते हुए मेवाड़ पधारें। औरंगजेब के भय से किसी भी हिन्दू राजा ने उन्हें स्थाई शरण प्रदान करने की हिम्मत नहीं दिखाई। मात्र मेवाड़ के महाराणा राजसिंहजी प्रथम ने उन्हें ससम्मान मेवाड़ पधारने का निमंत्रण दे धर्मरक्षा की। आगे चलकर महाराणाओं ने श्रीनाथजी की सेवा में कई गांवों की जागीरें प्रदान की जिससे श्रीनाथजी की सेवा में किसी प्रकार की कभी कोई कमी नहीं हुई। मेवाड़ के महाराणाओं ने शैव परम्परा सेे होते हुए भी वैष्णव धर्म को पूरा सम्मान दिया। मेवाड़ के महाराणा श्रीनाथजी को समय-समय पर या विशेष उत्सव-त्योहारों पर शृंगार सेवा हेतु कई कीमती आभूषण, भोग सेवा एवं गऊ सेवा हेतु भूमि भेंट करते रहे। श्रीनाथजी की जागीरों का रख-रखाव आज तक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार राजा-महाराजाओं के समय में होता था।
डॉ. गुर्जर ने श्रीनाथजी के प्राचीन इतिहास के साथ ही मुख्य-प्रमुख्य घटनाओं पर भी प्रकाश डाला। श्रीनाथजी की सेवा उसी भाव से आज तक हो रही है जिस प्रकार माता यशोदाजी श्रीकृष्ण की 7 वर्ष की आयु में किया करती थी। श्रीनाथजी की सेवा प्रणालियों में राग की सेवा जिसमें कीर्तन गाये जाते हैं प्रतिदिन के आठों दर्शनों के हिसाब से होती है। डॉ. गुर्जर ने श्रीनाथजी की भोग की सेवा में प्रतिदिन के भोग धराए जाने व्यवस्था और प्रबंध पर प्रकाश डाला। ठाकुरजी को लगभग बारह सौ से भी अधिक तरह के पकवानों को सूचीबद्ध किया गया है जिनका समयानुसार एवं मौसम के अनुसार भोग लगाया जाता है। इसी प्रकार राग सेवा, भोग सेवा और शृंगार सेवा तीनों ही मौसम के अनुसार परिवर्तित कर धारण कराई जाती है।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्रसिंह आउवा ने डॉ. आशुतोष गुर्जर का धन्यवाद करते हुए फाउण्डेशन की ओर से मेवाड़ की पुस्तकें भेंट की।

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