माता महालक्ष्मी का प्राकट्योत्सव रविवार को, अर्धरात्रि की महाआरती होगी प्रमुख आस्था और आकर्षण का केन्द्र
उदयपुर। उदयपुर की पावन भूमि पर सैकड़ों वर्षों से माता श्री महालक्ष्मी का दिव्य प्रकाश संपूर्ण मेवाड़वासियों के हृदय में अटूट श्रद्धा का दीप जलाता आ रहा है। महाराणा जगत सिंह के कालखंड में स्थापित यह प्राचीन धरोहर आज भी अनगिनत भक्तों के लिए विश्वास, समर्पण और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनमोल केंद्र बनी हुई है। श्री श्रीमाली जाति सम्पत्ति व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा संचालित यह मंदिर उदयपुर के अन्दरूनी शहर भट्टियानी चौहट्टा में स्थित हैं। माता महालक्ष्मी का यह मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ माता लक्ष्मी की अनुपम प्रतिमा हाथी पर विराजमान हैं, जो दिव्यता और भव्यता का अनुपम संगम प्रस्तुत करती है। यहीं नहीं इस मंदिर का महत्व इसलिये भी बढ जाता हैं क्योंकि इसका निर्माण जगदीश मंदिर के निर्माण के समय बचे हुए पत्थरों से किया गया था।
रविवार को को माता महालक्ष्मी का भव्य प्राकट्योत्सव का आयोजन किया जाएगा, जो न केवल धार्मिक परंपरा का निर्वहन होगा, बल्कि समस्त समाज में एकता, भक्ति और आध्यात्मिक प्रेरणा का संदेश भी फैलाएगा। प्राकट्योत्सव कार्यक्रम सुबह प्रातः 4 बजे पंचामृत स्नान और अभिषेक से प्रारंभ होगा। माता महालक्ष्मी का विशेष सोने-चांदी के आभूषण से श्रृंगार कर उनके दिव्य रूप का पूजन किया जाएगा। मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों, विद्युत सज्जा एवं दीपमालाओं से पूर्ण रूप से सजाया जाएगा, जिससे संपूर्ण परिसर भक्तिमय वातावरण में परिवर्तित हो जाएगा। सुबह 10 बजे विधिवत यज्ञ-हवन का आयोजन होगा, जिसमें पाँच जोड़े विशेष आहुति अर्पित करेंगे। इस पवित्र यज्ञ के माध्यम से समस्त लोक कल्याण और माता की विशेष कृपा की प्रार्थना की जाएगी। संध्या 4:30 बजे यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात सुंदरकांड पाठ का आयोजन होगा, जहाँ श्रद्धालु गूंजते मंत्रों के साथ माता महालक्ष्मी की स्तुति में लीन होंगे।
इस पावन पर्व का मुख्य आकर्षण मध्यरात्रि 12 बजे संपन्न होने वाली महाआरती होगी। माता महालक्ष्मी की महिमा गान करती यह आरती, प्रत्येक भक्त के हृदय में असीम शांति, शक्ति और समृद्धि का संचार करेगी। श्रद्धालु माता के दिव्य दर्शन करके पुण्यलाभ अर्जित करेंगे। इसके उपरांत समस्त भक्तों को प्रसाद स्वरूप महाप्रसाद वितरित किया जाएगा।
ट्रस्ट के अध्यक्ष भगवतीलाल दशोत्तर ने बताया कि यह पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता एवं परंपरागत संस्कारों का अनुपम प्रतीक है। ट्रस्टी जतिन श्रीमाली ने बताया कि माताजी श्री महालक्ष्मीजी श्रीमाली समाज की कुलदेवी हैं। ट्रस्ट द्वारा मंदिर का सुचारू संचालन करते हुए परंपराओं को सहेजा जा रहा है। इसके साथ-साथ नित्य पूजा-अर्चना और पर्व उत्सवों के माध्यम से इसे आधुनिक युग से भी जोड़कर चलाया जा रहा है। श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु समुचित व्यवस्था की गई है, ताकि वे पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
महाराणा जगत सिंह काल से संजोई आस्था: हाथी पर विराजमान अनूठी प्रतिमा और जगदीश मंदिर के बचे पत्थरों से मंदिर का निर्माण
