उदयपुर : सहकारी सिद्धांतों पर किसानों द्वारा बनाए गए 4 संगठनों की 70,000 महिलाओं सहित 1.70 लाख दुग्ध किसानों ने आज राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से राज्य सरकार की रु 5 प्रति लीटर नकद सहायता योजना में शामिल करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की।
“योजना में हमें न सम्मिलित करने से पैदा हुई असमानता हमारे लिए गंभीर कठिनाइयाँ पैदा कर सकती है और हमारे हजारों सदस्यों की आजीविका को भी मार सकती है”,” एक साझा बयान में इन दुग्ध किसान संगठनों की अध्यक्षा श्रीमती ममता चौधरी, पायस डेयरी, जयपुर, श्रीमती मंजीत कौर, सखी डेयरी, अलवर, श्रीमती कन्या, आशा डेयरी, उदयपुर एवं श्रीमती अंजू केवट, उजाला डेयरी, कोटा ने कहा।
राजस्थान के दुग्ध उत्पादकों के कल्याण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के हेतु, “मुख्यमंत्री दुग्ध संबल योजना” की घोषणा वित्त वर्ष 19-20 राज्य के बजट में की गई थी, जिसके तहत राज्य सरकार ने सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों में दूध पशुपालकों को आपूर्ति के लिए रु 2 प्रति लीटर का अनुदान घोषित किया था। हाल ही में पेश वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में दूध पर इस सब्सिडी को रु 2 प्रति लीटर से बढ़ाकर रु 5 प्रति लीटर करने की घोषणा की गई है।
चारों संगठन डेयरी किसानों द्वारा अपने स्वयं के धन को शेयर पूंजी के रूप में निवेश करके स्थापित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि ये चार किसान संगठन संयुक्त रूप से अपने सदस्यों से हर दिन 10 लाख किलोग्राम से अधिक दूध एकत्र करते हैं, जिसका भुगतान महीने में तीन चक्रों में सीधे उनके बैंक खातों में किया जाता है।
पहले संगठन का परिचालन दस साल पहले किया गया था और अब तक इन चार संगठनों ने मिलकर सदस्यों को दूध की कीमत, नकद प्रोत्साहन और लाभांश के रूप में कुल रु 8,732 करोड़ का भुगतान किया है।
एक नीति के रूप में, इनमें से कोई भी संगठन किसी ऐसे व्यक्ति से दूध एकत्र नहीं करता है जो संगठन का सदस्य/शेयरधारक नहीं है। इन चारों संस्थाओं का संचालन संबंधित संस्थाओं के सदस्यों द्वारा चुने गए निदेशक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो दूध देने वाले होते हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की 23 मार्च, 2012 की एडवाइजरी (सर्कुलर नंबर L-12011/1/2012-I&P) में कहा गया है कि उत्पादक कंपनियां सहकारी सिद्धांतों की संस्थागत ताकत को कंपनी और एक सहकारी समिति के लचीलेपन, स्वायत्तता और पारदर्शिता के साथ जोड़ती हैं। इसे देखते हुए, केंद्र सरकार ने राज्यों को सलाह दी कि वे सहकारी समितियों के समान किसानों द्वारा गठित ऐसे संगठनों को रियायतें/लाभ देने पर विचार करें।