वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है : जितेंद्र मेहता

उदयपुर : वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से नष्ट हो रहा है। विशेष रूप से वर्षावन, घास के मैदान और आद्र भूमि तेजी से लुप्त हो रहे हैं। अमेजॉन के वर्षा वन जिन्हें ‘ पृथ्वी का फेफड़ा ‘भी कहा जाता है तेजी से खत्म होने की और बढ़ रहा है। ये विचार आदिनाथ सीनियर सेकेंडरी स्कूल हिरन मगरी सेक्टर ११ में अर्थ डे पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अलर्ट संस्था के अध्यक्ष एवं पर्यावरणविद जितेंद्र मेहता ने व्यक्त किए ।
जितेंद्र मेहता ने कहा कि जंगलों की कटाई के कारण न केवल वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं बल्कि इससे कार्बनडाइऑक्साइड अवशोषण की क्षमता भी प्रभावित हो रही है। जानवरों के अवैध शिकार और वनों के अत्यधिक उपयोग से कई प्रजातियों के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है। पृथ्वी को बचाने के लिए किया जा रहे हैं प्रयास पर्याप्त नहीं है और समय रहते आमजन और सरकारों को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
विद्यालय की प्राचार्य डॉ. रितु भटनागर ने अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया और कार्यक्रम की जानकारी दी। मुख्य अतिथि इसरो के वैज्ञानिक एवं समाजसेवी डॉ. सुरेंद्र पोखरना ने कहा कि पृथ्वी को मां की तरह सम्मान दिया जाना चाहिए तथा संसाधनों का दोहन प्रकृति को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है जल, वायु, मिट्टी सभी प्रदूषित होते जा रहे हैं। प्रकृति के मूल स्वरूप को समझने के लिए विज्ञान धर्म और अध्यात्म को समझना होगा और इस परिवर्तन से बचने के लिए हमें तुरंत कार्रवाई करनी पड़ेगी, ताकि अपने आने वाली पीढियां को इस गंभीर विनाश से बचा सके। संचालन श्रीमती नीलम रामानुज ने किया। अवसर पर विद्यालय के 200 से अधिक छात्र छात्राएं एवं शिक्षक उपस्थित थे।

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