उदयपुर (डॉ. तुक्तक भानावत) : दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर द्वारा ‘‘उन्नत भारी जल रिएक्टर’’ पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर के सभागार में हुआ। समारोह के प्रारम्भ में संस्था के अध्यक्ष इंजी पुरुषोत्तम पालीवाल ने सभी अतिथियों का स्वागत कर उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखते हुए बताया AHWR द्वारा विकसित एक नवीन परमाणु रिएक्टर ऐसा डिजाइन है जिसका उद्देश्य थोरियम के उपयोग से विद्युत उत्पादन करना है। यह 300 मेगावाट विद्युत की क्षमता वाला ऊर्ध्वाधर प्रेशर ट्यूब प्रकार का रिएक्टर है जो उबलते हल्के पानी से ठंडा और भारी पानी से नियंत्रित होता है। इसमें कई निष्क्रिय सुरक्षा विशेषताएँ शामिल हैं एसडब्ल्यूआर एक प्रकार का परमाणु रिएक्टर है जो मॉडरेटर और शीतलक के रूप में भारी पानी का उपयोग करता है। वे पारंपरिक हल्के जल रिएक्टरों की तुलना में कई फायदे प्रदान करते हैं, जिनमें बेहतर सुरक्षा उच्च दक्षता और कम अपशिष्ट शामिल हैं।
इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर के मानद सचिव इंजीनियर पीयूष जावेरिया ने बताया कि इस कार्यक्रम में इस महत्वपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी की नवीनतम प्रगति और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करने के लिए प्रमुख विशेषज्ञों शोधकर्ताओं और उद्योग के पेशेवरों को द्वारा अपने सारगर्भित विचार रखे गये सेमिनार में विभिन्न विषयों पर प्रस्तुतियाँ और चर्चाएं हुईं, जिनमें प्रौद्योगिकी की वर्तमान स्थिति और इसके संभावित लाभ और सुरक्षा में हालिया अनुसंधान और विकास भविष्य की ऊर्जा मांगों को पूरा करने में एसडब्ल्यूआर की भूमिका एसडब्ल्यूआर की तैनाती में चुनौतियां और अवसर शामिल हैं।
सेमिनार के मुख्य अतिथि अतिथि डॉ (प्रोफेसर)पृथ्वी यादव प्रेसिडेंट, एवं कुलपति, सर पदमपत सिंघानिया विश्वविद्यालय उदयपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि भारत में परमाणु ऊर्जा के इतिहास में8,000 मेगावाट का आंकड़ा भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले होमी भाभा द्वारा की गई भविष्यवाणी को संदर्भित करता है, जिन्होंने कहा था कि भारत 1980 तक परमाणु ऊर्जा से 8,000 मेगावाट बिजली पैदा करेगा हालांकि यह लक्ष्य कभी हासिल नहीं हुआ और यह अनुमानित लक्ष्य से काफी कम रहा और इसे समय समय पर संशोधित किया गया है।उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री विकसित भारत संकल्प के लिए वैज्ञानिकको को अपने अनुभव से इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना योगदान देने का आवाहन किया।
सेमिनार के विशिष्ट अतिथि इंजी महेंद्र कुमार चौहान अध्यक्ष राजस्थान स्टेट सेंटर, द इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया जयपुर ने बताया कि विद्वान वक्ता भारी जल रिएक्टरों के विषय पर अपने विचार रखेगें। उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें अपना लक्ष्य नौकरी खोजने वाले के रूप में नहीं बल्कि स्वयं का र्स्टाट अप कर दूसरों को नौकरी देने में सक्षम होना चाहिए ।
सेमिनार के मुख्य वक्ता डॉ धर्मेन्द्र कुमार जैन, व्याख्याता, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज, कोटा एवं काउंसिल सदस्य आईईआई कोलकाता ने बताया कि एडवांस हैवी वाटर रिएक्टर अगली पीढ़ी के परमाणु रिएक्टर डिजाइन को संदर्भित करता है जिसमें मुख्य रूप से कम समृद्ध यूरेनियम ईंधन का उपयोग होता है। यह भारत में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र बीएआरसी द्वारा विकसित किया गया है। परमाणु ऊर्जा के वर्तमान विकास महान प्रगतियों में से एक है। भारत उन्नत भारी जल रिएक्टर के साथ रिएक्टर बन रहे हैं जिसमें ईंधन के हिस्से के रूप में थोरियम का उपयोग करता है, जो इसके दो भागों में से एक है प्लूटोनियम या कम समृद्ध यूरेनियम के साथ संयोजन में ईंधन चक्र विकल्प व व्यावसायिक स्तर पर ऊर्जा का उत्पादन करता है। उन्होंने बताया कि उन्नत भारी जल रिएक्टर AHWR वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए थोरियम के बड़े पैमाने पर उपयोग को प्रदर्शित करने के लिए डिजाइन और विकसित किया गया है। ।AHWR एक 300 मेगावाट इलेक्ट्रिक वर्टिकल प्रेशर ट्यूब टाइप, उबलते हल्के पानी से ठंडा भारी पानी मॉडरेटर रिएक्टर है। इसमें कई निष्क्रिय सुरक्षा सुविधा और अंतर्निहित सुरक्षा विशेषताएँ शामिल हैं जिनमें कई फर्स्ट ऑफ़ ए काइंड सिस्टम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त AHWR प्रक्रिया भाप और अपशिष्ट ऊष्मा का उपयोग करके विलवणीकरण जल का उत्पादन होता है। ऊर्जा संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए थोरियम का उपयोग आवश्यक है क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर यूरेनियम की तुलना में तीन से चार गुना अधिक प्रचुर मात्रा में है। भारतीय परमाणु कार्यक्रम के संदर्भ में थोरियम का एक प्रमुख स्थान है, ब्राजील में थोरियम का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है।सतत विकास के लिए AHWR वह है जो भविष्य की पीढ़ियों को अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है। यह समाजों का आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विकास है जो ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों को कम किए बिना अधिक स्वास्थ्य आराम सुनिश्चित करता है। इस उद्देश्य के लिए मनुष्य और प्रकृति के बीच हर तरह के संबंध पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए होने चाहिए। यह आम तौर पर माना जाता है कि दीर्घावधि में परमाणु ऊर्जा विश्व ऊर्जा मांग के एक बड़े हिस्से को पूरा करने के लिए एकमात्र टिकाऊ विकल्प है।
इस सेमिनार के अतिथि वक्ता इंजी सुरेश चंद्र गांधी, पूर्व वैज्ञानिक अधिकारी, परमाणु ऊर्जा विभाग एनपीसीआईएल ने बताया कि परमाणु ऊर्जा दो तरीकों से प्राप्त की जा सकती है एक फ्यूजन रिएक्टर। ये अभी भी अनुसंधान चरण में हैं। एक बार जब संलयन रिएक्टर व्यवहार्य हो जाएगा तो यह सूर्य की तरह ऊर्जा का असीमित स्रोत होगा, दूसरा विखंडन रिएक्टर- परमाणु विखंडन एक प्रक्रिया है जो तब होती है जब एक न्यूट्रॉन एक परमाणु से टकराता है, इसे विभाजित करता है और गर्मी और विकिरण के रूप में ऊर्जा जारी करता है। टूटा हुआ नाभिक अतिरिक्त न्यूट्रॉन छोड़ता है, जिससे अधिक नाभिक विभाजित हो सकते हैं जिससे एक श्रृंखला प्रतिक्रिया बन सकती है। भारत के घरेलू जीवाश्म ईंधन संसाधन सीमित हैं और भविष्य में जीवाश्म ईंधन का आयात अधिक महंगा और कम टिकाऊ हो सकता है। परमाणु ऊर्जा एक दीर्घावधि प्रदान करती है उन्होंने भारतीय परमाणु कार्यक्रम के समक्ष चुनौतियों पर अपने विचार रखते हुए बताया कि भारत के पास यूरेनियम परमाणु ईंधन की प्रचुर प्राकृतिक उपलब्धता नहीं है।ईंधन आपूर्ति के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता है और प्रौद्योगिकी के लिए वैश्विक परमाणु राज्यों पर निर्भरता परमाणु रिएक्टर तकनीक के लिए फ्रांस, रूस जैसे देशों पर निर्भरता है। 3 चरण के परमाणु कार्यक्रम के लिए मुख्य कच्चा माल थोरियम है और यह भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास और भविष्य को रेखांकित करते हुए बताया कि परमाणु कार्यक्रम ही एकमात्र तरीका है जिससे भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए वास्तव में आत्मनिर्भर बन सकता है। भारत के पास उपलब्ध थोरियम भंडारों जो तीन चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक है। हम तीन चरणीय रिएक्टर तकनीक के साथ साथ थोरियम की आपूर्ति अन्य देशों को कर सकते हैं, जिससे हम भविष्य में सभी प्रकार के उद्योगों को बिजली देने में सक्षम होंगे, जो हमारे विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाने और बहुत सारे रोजगार और आर्थिक विकास पैदा करने के हमारे लक्ष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा जिससे समाज के सभी वर्गों को आर्थिक लाभ होगा।
इस सेमिनार के अतिथि वक्ता इंजी केके शर्मा पूर्व वैज्ञानिक अधिकारी, परमाणु ऊर्जा विभाग एनपीसीआईएल ने बताया कि रिएक्टर प्रणाली में मुख्य रूप ये रिएक्टर ब्लॉक,बेलनाकार बर्तन,कूलेंट चैनल, असेंबली, ईंधन प्रबंधन एवं भंडारण प्रणाली, ईंधन स्थानांतरण प्रणाली ईंधन भंडारण पात्र होता है।उन्हानें कूलेंट चैनल असेम्बली को वर्णित करते हुए बताया कि प्रेशर ट्यूब कैलेंड्रिया ट्यूब के अंदर स्थित होती है सीटी और पीटी के बीच का कुंडलाकार अंतर सीओ 2 से भरा होता है जो गर्म शीतल और ठंडे मॉडरेटर के बीच थर्मल इन्सुलेशन के रूप में कार्य करता है जिसमें फीडर स्वर्ण ऊर्जावान सील कपलिंग द्वारा एंडण्फिटिंग से जुड़ा हुआ है। शीतल ईंधन असेंबली के माध्यम से शीतल चैनल में प्रवेश करता है और गर्म शीतल भाप पानी के मिश्रण के रूप में बाहर बहता है।उन्होने बताया कि AHWR मुख्य ताप परिवहन प्रणाली में स्टीम ड्रम, डाउनकमर, इनलेट हेडर, फीडर, कूलेंट चैनल और राइजर पाइप शामिल हैं। सामान्य संचालन के दौरान, सबकूल्ड जल स्टीम ड्रम से डाउनकमर के माध्यम से रिएक्टर इनलेट हेडर में प्रवाहित होता है। रिएक्टर इनलेट हेडर से फीडर पाइप सबकूल्ड जल को रिएक्टर कूलेंट चैनलों में ले जाते हैं। जैसे ही सबकूल्ड जल कूलेंट चैनलों से ऊपर उठता है यह गर्म होता है। कोर इनलेट से कुछ दूरी पर चैनल से गुजरने के रास्ते में यह उबलने लगता है और पानी और भाप का मिश्रण चैनलों को छोड़ देता है। भाप ड्रम, भाप और पानी गुरुत्वाकर्षण द्वारा अलग हो जाते हैं। सूखी भाप टरबाइन में प्रवाहित होती है और सबकूल्ड फीड जल की एक समान मात्रा प्रणाली ड्रम में प्रवेश करती है इससे चक्र पूरा हो जाता है। AHWR मे यह किसी भी पंप की सहायता के बिना प्राकृतिक परिसंचरण द्वारा प्राप्त किया जाता है ,इस तरह से AHWRसे हम बिजली भी बनाएंगे और मीठा पानी बना कर पानी भी पिलाएंगें ।
इस सेमिनार के अतिथि वक्ता इंजी करण सिंह सिंघवी, पूर्व वैज्ञानिक अधिकारी एचडब्ल्यूपी,परमाणु ऊर्जा विभाग ने बताया कि होमी जहांगीर भाभा भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी जिन्होने देश में भारी जल उत्पादन का सपना देखा था।परमाणु ऊर्जा उत्पादन के बढ़ते लक्ष्यों के साथ भारी जल उत्पादन की आवश्यकता भी बढ़ गई है। भारत ने अपने भारी जल कार्यक्रम के लिए दो अलग अलग प्रौद्योगिकियों पर आधारित दो-आयामी दृष्टिकोण अपनाया यथा अमोनिया,हाइड्रोजन विनिमय, हालांकि विदेश से प्राप्त किया गया था परिपक्व नहीं हुआ था और इसे काम करने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता थी। पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित हाइड्रोजन सल्फाइड जल विनिमय के लिए अनुसंधान एवं विकास सहित लंबी अवधि तक निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है।उन्होने भारी जल विनिर्माण प्रोसेस को डाइग्रम से समझाया और तीन चरणीय भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम यथा स्टेज प्रथम PHWR दूसरा FBR तीसरा थोरियम आधारित रिएक्टर पर अपने विचार रखे।
इस सेमिनार के अतिथि वक्ता इंजी प्रेम कुमार शर्मा, पूर्व उप मुख्य अभियंता आरआर साइट डीएई ने विश्व में परमाणु ऊर्जा संयंत्र का चित्रण किया और बताया कि वर्तमान में 31 देशों में 440 परमाणु ऊर्जा संयंत्र संचालित हैं और कुल स्थापित क्षमता 390 गीगावॉट है।भारत में वर्तमान में 25 परमाणु ऊर्जा संयंत्र संचालित हैं।दुनिया में 60 परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माणाधीन हैं।फ्रांस की कुल बिजली उत्पादन में 78प्रतिशत परमाणु हिस्सेदारी है। उन्होंने बताया कि भारत में बिजली की 56.4 प्रतिशत आपूर्ति जीवाश्म ईंधन से 30.7 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा सेए 11.1 प्रतिशत हाइड्रो पावर से तथा 1.8 प्रतिशत परमाणु शक्ति से होती है।और हम दुनिया के शीर्ष तीन बिजली उत्पादक देशों में शामिल हैं।कुल स्थापित क्षमता 4,57,000 मेगावाट है। एनपीपी की स्थापित क्षमता 8080 मेगावाट है और देश में कुल बिजली उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी करीब 2 प्रतिशत है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा पहलू बताया कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र को कड़े परमाणु सुरक्षा मानकों के साथ डिजाइन, निर्माण, कमीशन और संचालित किया जाता है। यह हर समय सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन सुनिश्चित करता है यहां तक कि दुर्घटना की स्थिति में भी। संयंत्र,कर्मियों और पबलिक जोखिम को कम करने के लिए तकनीकी विनिर्देश और नीति के मार्गदर्शन में संयंत्र को सामान्य संचालन में बहाल करने के लिए समय पर सुधारात्मक उपाय होते रहते हैं। समय समय पर मॉक ड्रिल किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि कि अगर कभी दुर्घटना होती है तो राहत और बचाव कार्य में लगी विभिन्न एजेंसियां, स्टाफ कर्मी आपस में कितना बेहतर समन्वय स्थापित कर पाती हैं उन्होंने बताया कि बॉयलर का स्थान और कोर कूलिंग के लिए रिएक्टर की तुलना में पर्याप्त उच्च ऊंचाई पर डिजाइन किया जाता हैं और रखरखाव के लिए परीक्षण के बाद रिएक्टर भवन विकिरण क्षेत्र के अनुसार दुर्गम और प्रतिबंधित क्षेत्र होते हैं। आपातकाल से निपटने के लिए आवश्यक उपाय करने के लिए सार्वजनिक अधिकारियों सहित साइट पर साइट के बाहर विभिन्न समूहों के बीच लोगों सुविधाओं और प्रभावी समन्वय किया जाता है। इस सेमिनार के संयोजक इंजी. एम पी जैन ने इस सेमिनार करने का उद्देश्य एक ही प्लेटफार्म पर विषय के पारांगत विद्वान लाना है और दो तकनीकी सत्रों में प्रजेण्ट किये जाने वाले विषयों के बारे में बताया और बताया कि उनके सेवाकाल में हैवी वाटर रिएक्टर के लिए उन्नत सेफ्टी फीचर्स का डिजाइन किया। समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया,उदयपुर लोकल सेंटर के मानद सचिव इंजी पीयूष जावेरिया ने किया।