उदयपुर। वल्र्ड ब्रेन ट्यूमर डे की शुरुआत सर्वप्रथम जर्मनी से 2007 में हुई थी। यह प्रतिवर्ष 8 जून को विष्वभर में ब्रेन के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।
वल्र्ड ब्रेन ट्यूमर डे पर आयोजित परिचर्चा में पारस जे के हाॅस्पिटल के न्यूरोसर्जन डाॅ. अजीतसिंह ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर का सफल उपचार पूर्णतया संभव है। 70 प्रतिषत ब्रेन ट्यूमर कैंसर के नहीं होते है। ब्रेन ट्यूमर मुख्यतया दो प्रकार के होते है। पहले वे जो ब्रेन के अंदर ही बनते है। दूसरे वे जो किसी दूसरे अंग में बनते है लेकिन धीरे-धीरे ब्रेन में पहुंचते है। इसके प्रमुख लक्षणों में आखों से कम दिखाई देना, सुनाई कम देना या हाथ, पांव आदि का कम काम करना, सिर में दर्द, सुबह उठने पर दर्द का तेज हो जाना, उल्टी आना, दौरे आना, चेहरे में सुनापन आदि शामिल है। इन प्रारंभिक लक्षणों की पहचान करके उसका तुरंत उपचार करवाना चाहिये।
न्यूरोसर्जन डाॅ. अमितेन्दु शेखर ने बताया कि अभी तक ब्रेन ट्यूमर के कोई व्यापक कारण सामने नहीं आये है। कुछ जेनेटिक कारण है जैसे किसी के परिवार में किसी को पहले ब्रेन ट्यूमर हुआ है तो उन्हे होने की संभावना ज्यादा है। रेडियेषन को भी इसका एक कारण माना जाता है इसलिए बिना डाॅक्टर की सलाह के एक्स-रे, सीटी स्केन आदि नहीं करवाने चाहिएं। कई ट्यूमर तो मात्र दवाई से ही ठीक हो जाते है। कइयों का उपचार दूरबीन के द्वारा छोटा चीरा लगाकर किया जाता है। बहुत कम में आॅपरेषन के आवष्यकता पडती है। नई विष्वस्तरीय तकनीक में ट्यूमर का उपचार मरीज को बिना बेहोष किये उससे बातें करते-करते भी कर दिया जाता है। मरीज के उपचार की विधि का निर्णय ट्यूमर देखने के बाद लिया जाता है।
फेसिलिटी डायरेक्टर विष्वजीत कुमार ने बताया कि पारस जे के हाॅस्पिटल में प्रदेष की सबसे अनुभवी न्यरोविषेषज्ञ की टीम उपलब्ध है जिसमें न्यूरोलाॅजिस्ट डाॅ मनीष कुलश्रेष्ठ, इंटरवेषनल न्यरोलाॅजिस्ट डाॅ. तरूण माथुर, डाॅ. अमितेन्दु शेखर एवं डाॅ अजीतसिंह षामिल हैं। यहां न्यूरो-स्पाईन सर्जरी की नियमित सेवाएं 24 घण्टे उपलब्ध है।