संवत्सरी आत्म-समीक्षा का पर्व

उदयपुर। जैन समाज के लिए संवत्सरी का महान पर्व महास्नान का पर्व है। यह महाकुंभ स्नान है। अंत:करण की व्याधियों और मनोकायिक बीमारियों की शुद्धि के लिए चिकित्सा का पर्व है। स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए तथा भाविष्य की प्रतिबद्धता के लिए कार्य-सिद्धि का पर्व है। शुद्धि, चिकित्सा और सिद्धि का पर्व है। ये विचार महाप्रज्ञ विहार में तेरापंथ धर्मसंघ की सुविज्ञा साध्वी शासनश्री मधुबालाजी ने व्यक्त किये।
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, उदयपुर के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अर्जुन खोखावत ने बताया कि उपस्थित तपस्वियों के बीच साधवीश्री ने कहा कि सामाजिक संपर्कों में जाने वाले हर व्यक्ति में प्रियता और अप्रियता का भाव न आए, यह कम संभव है। संवत्सरी क्षमा के आदान-प्रदान का पर्व है। क्षमा का अर्थ सहिष्णुता है। यदि सहिष्णुता की शक्ति का विकास नहीं होता तो आदमी क्षमा करके भी क्षमा का लाभ नहीं उठा पाता। साध्वीश्री ने कहा कि मानव उत्सव पे्रमी है। सामाजिक उत्सव और पर्व आनंद देते हैं। जहां आत्मरंजन है, वहां आनंद ही उत्सव है।
इस अवसर पर परंपरा बोध के साथ आत्म-शोधन के अनेक उपाय सामने आते हैं। संवर, संयम, जप, ध्यान, स्वाध्याय आदि के साथ आत्ममंथन आगे बढ़ता है। श्रद्धा-भक्ति का बल इसे वेग देता है। राग-द्वेष की गांठें खुलती हैं। प्राणी मात्र के साथ मैत्री का अनुभव हेता है। परम ज्ञान, परम विजय, परम शक्ति, परम आनंद अस्तित्व से अभिव्यक्ति में आ जाता है। इस भूमिका तक पहुंचने का एक ही माध्यम महापर्व संवत्सरी है। साध्वीश्री ने कहा कि आज के दिन हम अपना आत्मशोधन करें। सबसे क्षमायाचना करें, अपने आत्म को पवित्र बनायें।

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