पहली बार त्रिशंकु विधानसभा के कारण लगा
-डॉ. तुक्तक भानावत-
राजस्थान ने 60 साल के राजनैतिककाल में जहां 14 मुख्यमंत्री दिये वहीं जनता को चार बार राष्ट्रपति शासन से रू-ब-रू होना पड़ा। राज्य में विधानसभा के चौथे आम चुनाव 1967 में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने के कारण 13 मार्च 1967 से 26 अप्रैल 1967 तक पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। इन 44 दिनों के राष्ट्रपति शासन में विधानसभा निलंबित रही। विधानसभा भंग नहीं की गई। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति शासन में निर्वाचित सरकार नहीं रहकर कार्यपालिका की समस्त शक्तियां राज्यपाल को प्राप्त हो जाती है।
इस राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रदेश में डॉ. सम्पूर्णानंद राज्यपाल थे। राज्य का शासन सूत्र संभालने में राज्यपाल की सहायता के लिए केन्द्र सरकार ने भारतीय सिविल सेवा के दो वरिष्ठ अधिकारियों सदानंद वामन और आर. प्रसाद को राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त कर जयपुर भेजा। इस समय राज्य में के. पी. यू. मेमन मुख्य सचिव थे। इस राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान ही 15 अप्रैल 1967 को राज्यपाल डॉ. सम्पूर्णानंद का कार्यकाल समाप्त हो गया। नये राज्यपाल सरदार हुकुमसिंह ने 16 अप्रैल 1967 को अपना कार्यभार संभाला। राष्ट्रपति शासन की अवधि में प्रतिपक्ष के कुछ विधायक टूट कर कांग्रेस में शामिल हो गये। इस पर मोहनलाल सुखाडिय़ा ने नये राज्यपाल के समक्ष अपना बहुमत साबित किया और 26 अप्रैल 1967 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस प्रकार 26 अप्रैल 1967 को 44 दिन में राष्ट्रपति शासन समाप्त हुआ।
मार्च 1977 में केन्द्र में प्रथम बार बनी गैर कांग्रेस सरकार के आते ही हरिदेव जोशी की सरकार बर्खास्त कर दी गई। तत्पश्चात 29 अप्रैल 1977 को राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ जो 22 जून 1977 तक रहा। इस अवधि में दो राज्यपाल रहे। तत्कालीन राज्यपाल जोगेन्द्र सिंह ने अपने पद से 14 फरवरी 1977 को त्यागपत्र दे दिया। उनके स्थान पर तात्कालीक व्यवस्था के लिए मुख्य न्यायाधीश वेदपाल त्यागी ने 15 फरवरी से 11 मई 1977 तक कार्यभार संभाला। बारह मई 1977 को रघुकुल तिलक राज्य के राज्यपाल बनकर आये। उनकी सलाह के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दो सलाहकारों को नियुक्त किया गया। इस अवधि में आर.डी थापर राज्य के मुख्य सचिव थे।
जनवरी 1980 में लोकसभा के मध्यावधि चुनावों के पश्चात केन्द्र में पुन: सत्तारूढ़ होने वाली कांग्रेस सरकार ने 17 फरवरी 1980 को भैरोसिंह शेखावत सरकार को बर्खास्त कर विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जो 5 जून 1980 तक रहा। इस समय रघुकुल तिलक राज्यपाल थे। इस शासनकाल में राज्यपाल की सहायता के लिए राज्य के ही दो अवकाशप्राप्त मुख्य सचिव एस.एल. खुराना तथा मोहन मुखर्जी को सलाहकार नियुक्त किया। गोपालकृष्ण भनोत उस समय मुख्य सचिव थे।
दिसम्बर 1992 को अयोध्या में घटी घटनाओं के पश्चात केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित पांच संगठनों की गतिविधियों पर प्रभावी रोक लगाने में राज्य सरकार के विफल रहने की राज्यपाल की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार ने 15 दिसम्बर 1992 को भैरोसिंह शेखावत सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया तथा उसी दिन विधानसभा भंग कर दी। यह राष्ट्रपति शासन 3 दिसम्बर 1993 तक जारी रहा। इस अवधि में डॉ. एम. चन्ना रेड्ïडी एवं धनिकलाल मंडल राज्यपाल (कार्यवाहक) रहे। इस समय राज्य में दो मुख्य सचिव टी.वी. रमणन तथा गोविन्द मिश्रा रहे। इस शासनकाल में केन्द्र सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्य सचिव वी.बी.एल. माथुर, पूर्व गृह आयुक्त एल.एन. गुप्ता एवं राज्य अन्वेषण ब्यूरो के पूर्व महानिदेशक ओ.पी. टंडन को राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया। बारह जुलाई 1993 को एल.एन. गुप्ता ने निजी कारणों से त्यागपत्र दे दिया। इनके स्थान पर 29 अगस्त 1993 को आ.जे. मजीठिया को राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया। इस प्रकार राजस्थान में सबसे पहले सबसे कम दिन मात्र 44 दिन का राष्ट्रपति शासन रहा और सबसे अधिक 354 दिन का रहा। मध्य के दोनों शासन 53 एवं 110 दिन की अवधि के रहे।
राजस्थान में चार बार लगा राष्ट्रपति शासन
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