राजस्थान में 32.50 लाख टन सरसों उत्पादन का अनुमान

प्रदेश में सरसों उत्पादन में वृद्धि के लिए 100 मॉडल फॉम्र्स शुरू
उदयपुर। खाद्य तेल निर्माताओं के शीर्ष संगठन सोलेवेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन ऑफ इण्डिया एवं सॉलिडरीडाड संस्था की ओर से बताया गया कि राजस्थान में इस बार सरसों की उपज में वृद्धि दर्ज करते हुए 32.50 लाख टन होने की संभावना है। गत वर्ष फसल यह 32.00 लाख टन ही थी।
एसईए रेपसीड मस्टर्ड प्रमोशन काउन्सिल के चेयमैन विजय डाटा ने बताया कि देश में खा़द्य तेलों की बढ़ती मांग की वजह से देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता को देखते हुए सरसों के 100 मॉडल फॉम्स कोटा और बूंदी जिले में शुरू किए गए जहां किसानों को खाद बीज एवं तकनीकी जानकारी के रूप में सहायता प्रदान की गई। वहीं बूंदी के नैनवा में तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और विस्तार सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से फील्ड रिसोर्स सेंटर की स्थापना की गई है जहां किसान आकर सरसों की बुवाई से लेकर कटाई तक तकनीकी सहायता लेते हैं। किसानों को समय-समय पर मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। इन मॉडल फॉम्र्स में अन्य सामान्य खेतों के मुकाबले 23 प्रतिशत अधिक उत्पादन दर्ज किया गया।

संस्थान के कार्यकारी निदेशक डी.वी. मेहता ने बताया कि एसोसिएशन राष्ट्रीय स्तर पर तेल तिलहन उद्योग की शीर्ष संस्था है तथा किसानों एवं सरकार को समय-समय पर राय प्रदान करती है। उन्होंने फसल उत्पादन के आंकड़े पेश करते हुए बताया कि गत वर्ष जहां राजस्थान में 32.00 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ वहीं इस वर्ष फसल बढ़ कर 32.50 लाख टन होने का अनुमान है। देश के प्रमुख प्रदेशों भी उत्पादन में 2.80 लाख टन अधिक उत्पादन होने का अनुमान है। गत वर्ष यह 75 लाख टन आंका गया था जो इस फसल में बढ़ कर 77.80 लाख टन होने की आशा है।

विजय डाटा ने बताया कि सरसों का उत्पादन कितना होता है इस बारे में विगत 15 वर्षों से यह संस्था कार्यरत है जिसके लिए 6-7 टीमें देशभर के विभिन्न जिलों में भेजी गई। इसके अलावा सेटेलाइट डिजीटल माध्यम से सरसों उत्पादन का अनुमान लगाने का कार्य देश की दो प्रतिष्ठित संस्थाओं नेशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज (एनसीएमएल) और एग्री बाजार को सौंपा गया था। इन दोनों सस्थाओं ने अपने प्रजेन्टेशन के माध्यम से पूरे देश में चयनित प्रदेशों के सरसों उत्पादन के आंकड़े दिए। संस्थानों के प्रतिनिधियों ने बताया कि पूरे विश्व में इसी तकनीक से उत्पादन के अनुमान लगाए जाते हैं।
एनसीएमएल के वाइस प्रेसिडेन्ट अरुण भल्ला ने संस्थान द्वारा विकसित की जा रही मोबाइल एप्प एवं मौसम के आंकड़े जुटाने के कार्यों की जानकारी दी। स्टार एग्री बाजार टेक्नोलॉजी लि. के हेड ऑफ बिजनेस अतुल चूरा ने देश में सरसों उत्पाद के वर्तमान परिदृश्य को प्रेजेन्टेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया।

सॉलिडरीडाड नेटवर्क एशिया के महाप्रबन्धक डॉ. सुरेश मोटवानी ने कहा कि सॉलिडारिडाड द्वारा एसईए के साथ मिलकर किए गए संयुक्त प्रयासों से उत्पादन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ बेहतर बुनियादी सुविधाओं और लाभकारी बाजारों तक पहुंच के लिए किसानों को अत्याधुनिक तकनीकों और कृषि सम्बन्धित प्रथाओं तक पहुंच मिल सकी है। हम रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय सरसों मॉडल खेतों के लिए भारत सरकार द्वारा संस्थान से निरंतर सहयोग और समर्थन के लिए तत्पर हैं। हम इस तरह की पहल के बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। एसएई के ऑयलसीड डेवलपमेंट काउन्सिल के चेयरमैन हरेश व्यास ने भी विचार व्यक्त किए।
बाद में प्रश्नोत्तर काल आयोजित किया गया जिसमें पत्रकारों के सवालों के जवाब मंच पर उपस्थित विशेषज्ञों ने दिए। साथ ही बताया गया कि वर्तमान मॉडल फॉम्र्स की सफलता को देखते हुए निकट भविष्य में इस प्रकार के 100 मॉडल फॉम्स और शुरू किए जाने की योजना है। द सॉल्वेन्ट एक्सट्रेटर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी.वी. मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

उल्लेखनीय है कि खाद्य तेल निर्माताओं के शीर्ष संगठन सोलेवेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन ऑफ इण्डिया एवं सॉलिडरीडाड संस्था सरसों की फसल में उत्पादन बाधाओं को दूर करने और आयात पर निर्भरता कम करने के उद्देश्यों के साथ मस्टर्ड मॉडल फार्म परियोजना पर क्रियान्वयन कर रही है, मिशन मस्टर्ड का लक्ष्य रेपसीड-मस्टर्ड का उत्पादन वर्ष 200 लाख टन प्राप्त करने का है। जिसके तहत किसानों द्वारा वैज्ञानिक प्रणालियों और बेहतर प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर जोर दिया जाएगा ताकि उपज के अन्तर को कम करने किया जा सके। यह भारतीय सरसों किसानों को प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक सरसों का उत्पादन करने में सहायक होगा, जिससे देश में सरसों की खेती और खाद्य तेल उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकेगा।
भारत दुनिया में खाद्य तेलों के सबसे बड़े आयातक के रूप में उभरा है। खाद्य तेलों की घरेलू खपत 2018-19 में लगभग 230 लाख टन के स्तर को छू गई है, जो बढ़ती आबादी और प्रति व्यक्ति आय के साथ और बढऩे की संभावना है। वर्तमान में, भारत में लगभग 80 लाख टन (2018-19) खाद्य तेल का उत्पादन होता है। उत्पादन और खपत के बीच के अन्तर को लगभग 150 लाख टन खाद्य तेल (2018-19) के आयात के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। आयातित खाद्य तेल पर राष्ट्र की निर्भरता चिंता का विषय है और इस चुनौती का समाधान करने के लिए, भारत को महत्वपूर्ण फसलों यानी सरसों सहित अन्य तिलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के तरीकों पर गौर करने की जरूरत है।
भारत में सरसों का लगभग एक तिहाई खाद्य तेल प्राथमिक स्रोतों के माध्यम से उत्पादित होता है, जो इसे देश की प्रमुख खाद्य तिलहनी फसल बनाता है। खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए यह सबसे अधिक आशाजनक तिलहन फसल है। इसके अलावा, फसल उत्पादन की कम लागत और सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता के साथ उच्च रिटर्न प्रदान करती है। यह बारिश वाले क्षेत्रों में किसानों की आजीविका सुरक्षा के लिए बहुत महत्व रखता है। फसल ने पूर्व में महत्वपूर्ण वृद्धि हासिल की है, हालांकि देश में उत्पादकता का स्तर अभी भी कम है, जिसे बेहतर उत्पादन टेक्नोलॉजीस, साइप्टिफिक प्रैक्टिसेज के लिए प्रभावी हस्तांतरण और बुनियादी सुविधाओं का समर्थन सुनिश्चित करके पूरा किया जा सकता है।
इस संदर्भ में, द सॉल्वेन्ट एक्टसर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया और सॉलिडरीडाड ने बूंदी और राजस्थान के कोटा जिले में मस्टर्ड मॉडल फॉर्म परियोजना लागू करने की पहल की है, जो किसानों को अच्छी कृषि सम्बन्धित प्रथाओं के प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों की उत्पादकता और आय को बढ़ावा देने और बेहतर बीज प्राप्ति के लिए उन्नत बीज किस्मों और आदानों के साथ-साथ बाजार में सम्पर्क की उपलब्धता करवाने के लिए है।

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