श्रीजी प्रभु का महा ज्येष्ठाभिषेक स्नान

श्रीजी प्रभु ने अरोगा सवा लाख आम का भोग
नाथद्वारा : पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर स्नान यात्रा के उत्सव पर श्रीजी प्रभु एवं लाडले लाल प्रभु को सुगंधित अधिवासित यमुना जल से तिलकायतश्री एवं विशाल बावा व लाल बावा द्वारा स्वर्ण जड़ीत शंख से ज्येष्ठाभिषेक स्नान कराया गया।
स्नान यात्रा के अवसर पर श्रीजी प्रभु को मँगला दर्शन के क्रम के पश्चात ठाकुरजी को धोती उपरना धरा कर ज्येष्ठाभिषेक स्नान कराया गया। ठाकुरजी के ये अलौकिक दर्शन लगभग ढाई घंटे हुए जिसमें वैष्णवजन एवं दर्शनार्थियो का अपार जन सैलाब उमडा। तत्पश्चात वैष्णव जनों को श्रीजी प्रभु के स्नान के जल का कमल चौक में वितरण किया गया। स्नान के दर्शन पश्चात प्रभु को शृंगार धराकर सवा लाख आम का भोग अरोगाया गया व राजभोग के दर्शन में वेष्णव जन व दर्शनार्थियो को आम के भोग का वितरण किया गया।


स्नान यात्रा के शुभ अवसर पर स्नान यात्रा के महत्व को बताते हुए विशाल बावा’ ने कहा कि स्नान यात्रा शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को जेष्ठा नक्षत्र होने पर प्रभु को सूर्योदय से पूर्व शीतल जल से पुरुष सूक्त के मंत्रोच्चार सहित विशेष दैविक स्नान करवाया जाता है। प्रभु के स्नान हेतु विशेष जल तैयार करने की विधि को अधिवासन कहा जाता है।
अधिवासन विशेष पद्धति प्रभु के स्नान हेतु तैयार किया जाने वाला जल भी अपने आप में विशेष होता है एवं इस जल को स्नानयात्रा उत्सव से एक दिन पूर्व ही मंदिर की भीतर की बावड़ी से भरा जाता है। जिसके उपरांत इस जल का श्रीजी की डोल तिवारी के दक्षिणी भाग में रखकर विधिवत पूजन किया जाता है जिस दौरान जल में कदंब कमल गुलाब जूही रायवेली मोगरा की कली तुलसी निवार की कली आदि आठ प्रकार के पुष्प पधराए जाते है एवं संग में केसर चंदन जमुना जल पधारकर रात भर जल को शीतल कर प्रातः प्रभु को ज्येष्ठाभिषेक स्नान करवाया जाता है। जल का अधिवासन बाल स्वरूप प्रभु के रक्षार्थ किया जाता है। अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है: श्री भगवत:‌ पुरुषोत्तमस्य श्च् स्नानया‌‌त्रोत्सवार्थ ज्येष्ठाभिषेक जलाधिवासं अहं करिष्ये। ज्येष्ठाभिषेक के दिन यह भी मान्यता है कि इसी दिन प्रभु का ब्रज के युवराज के रूप में अभिषेक किया गया था अतः इस दिन प्रभु को स्वामिनीजी के भावरूप शंख से स्नान करवाया जाता है।
सवा लाख आम का भोग एवं भक्ति सिद्धांत में ज्येष्ठाभिषेक के दिन प्रभु को सवा लाख आम का भोग धराया जाता है एवं आम के अतिरिक्त प्रभु को विशेष रूप से बीज चिरौंजी के लड्डू, अंकुरि, शक्कर के बूरे के साथ चटक आदि का विशेष भोग लगाया जाता है। बीज के लड्डू पुष्टि जीव में भक्ति के बीज के भाव से माने जाते है। अंकुरि उसी बीज के अंकुरित होने के भाव से माने जाते है, प्रभु की सेवा में आने वाले विविध पुष्प उसी भक्ति बीज से उत्पन्न वृक्ष के पुष्प माने जाते है एवं आम का फल उसी भक्ति वृक्ष के मधुर फल का रूप है।

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