लोक कला मंडल में सुरेश वाडेकर की मखमली आवाज ने बांधा समां, सबके लबों पर गूंजे दिल के तराने

 स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया के जन्मदिवस पखवाड़े के तहत ‘इंदिरा स्वरांगन’ में ‘सुर, साज और वाडेकर’
उदयपुर (डॉ. तुक्तक भानावत)।
 राजस्थान की झीलों की नगरी उदयपुर में सोमवार की सुहानी शाम सुरों की मिठास में सराबोर हो गई, जब भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक सुरेश वाडकर ने भारतीय लोक कला मंडल के मंच से अपने कालजयी गीतों की स्वर्णिम गूंज बिखेरी। उन्होंने अपनी मखमली आवाज़ में सुरों का ऐसा संसार रचा कि पूरा सभागार संगीतमय जादू में खो गया। सबके लबों पर दिलों के तराने गूंजे और होठों पर जीवंत मुस्कान खिल उठी।


अतिथियों के साथ कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसमें डॉ. अजय मुर्डिया, डॉ. नीतीज मुर्डिया, डॉ. क्षितिज मुर्डिया, डॉ. एच. एस. भुई, श्रद्धा मुर्डिया, आस्था मुर्डिया और दिनेश कटारिया ने भाग लिया। यूएसएम मेंबर्स ने वक्रतुंड महाकाय गणपति वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। नीतिज ने स्वागत उद्बोधन दिया।

इस अवसर पर सभी कलाकारों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। ‘इंदिरा स्वरांगन’ के तहत आयोजित गीतों भरी शाम ‘सुर, साज और वाडेकर’ ने संगीत प्रेमियों को सुरों के सागर में डुबो दिया। मुख्य आयोजक डॉ. अजय मुर्डिया (इंदिरा इंटरप्राइजेज) और श्रद्धा मुर्डिया (कश्ती फाउंडेशन) ने इस भव्य संगीतमय संध्या में सभी संगीत प्रेमियों का स्वागत किया।
गानों से रोशन हुई दिल की ख्वाहिशें और खुल गए यादों के रोशनदान :
कार्यक्रम का आगाज ‘सत्यम शिवम् सुंदरम‘ से हुआ। ‘सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यों है’ (गमन) ने माहौल को आत्मीयता और भावनात्मकता से भर दिया। इसके बाद जब ‘सूरज न मिले छाँव को’ (घर) गूंजा, तो श्रोताओं की आंखें भावनाओं से छलक उठीं। संगीत प्रेमियों की फरमाइश पर ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ (सदमा) नगमा होठों पर आया तो हर शब्द हवाओं में घुलता और आस पास पंख लगा कर उड़ता हुआ महसूस हुआ। जब सुरेश वाडेकर ने ‘हजार राहें मुडक़े देखीं, कहीं से कोई सदा न आई’ (थोड़ी सी बेवफाई) को अपनी भावपूर्ण आवाज़ में पेश किया, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। बीतें हुए लम्हों की कसक मानों हौले से साथ हो ली। ‘तुमसे मिल के’ (प्यार तूने क्या किया) और ‘हुस्न पहाड़ों का’ (राम तेरी गंगा मैली) ने संगीतमय वातावरण को और भी मधुर बना दिया, मन की बहड़ और मन के पहाड़ों से मानों आनंदित और तृप्त करने वाले संगीत के झरने फूट पड़े।


रागों की मिठास और भक्ति का संगम :
सुरेश वाडेकर की गायकी सिर्फ रोमांटिक गीतों तक सीमित नहीं रही, उन्होंने ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई’ (राम तेरी गंगा मैली) की प्रस्तुति दी तो माहौल आध्यात्मिक हो गया। बदलते परिवेश और आपाधापी भरी जिंदगी में बहुत कुछ पीछे छूट जाने का अहसास और आगे बहुत कुछ पा लेने की जिंद में नया संसार रचने का भाव बेचैनियों को जगा गया। इसके बाद जब उन्होंने ‘भंवरे ने खिलाया फूल’ (सुर संगम) और ‘पतझड़़ सावन, बसं बहार’ (सिंदूर) गाया, तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। लगा मानों गीतों का राजकुंवर मन के भंवरे के खिलाए फूल को मंत्रमुग्ध कर दूर कहीं लंबी सुकून वाली यात्रा पर ले गया।


शास्त्रीय और आधुनिकता का अनूठा मिश्रण :
उनकी प्रस्तुति में शास्त्रीय संगीत की मधुरता भी देखने को मिली। जैसे ही ‘मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रहे’ (प्यासा सावन) की कोमल धुनें गूंजीं, तो सुरों के मेघ उमड़-घुमड़ कर मन मयूर को नृत्य करवाने लग गए। प्रेम का संदेस बरसाने लगे। जब आरी आई, ‘ओ रब्बा कोई तो बताए, प्यार होता है क्या’ (साजन) और ‘और इस दिल में क्या रखा है’ (आईना) के गीतों की आई तो हर दिल झूम उठा। दर्द को गीतों का स्पर्श मिलते ही मनभावन सुरों के अहसास में स्मृतियों के गुलदस्तों में लगे फूल महकने लगे।
श्रोताओं का अभूतपूर्व उत्साह :
अपने प्रिय सुरेश वाडेकर को सुनने के लिए कार्यक्रम की शुरूआत से पहले ही श्रोताओं ने लोक कला मंडल का प्रांगण खचाखच भर दिया। हर गीत के साथ तालियों की गडग़ड़ाहट ने माहौल को और अधिक जीवंत बना दिया। सुरेश वाडेकर ने जब अपना सर्वप्रिय गीत ‘चप्पा चप्पा चरखा चले’ (माचिस) पेश किया, तो हर कोई झूमने लग गया। युवाओं की टोलियों ने भंगड़ा लेते हुए कंधे उचकाए तो कुछ ने फ्री स्टाइल में नृत्य का आनंद लिया। इसके अलावा ‘सपनों में मिलती है’ (सत्य), ‘रात के ढाई बजे’ (खुद्दार) और ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ (चांदनी) जैसे गीतों ने कार्यक्रम को और भी यादगार बना दिया।
संगीत प्रेमियों के लिए यादगार संध्या :
कार्यक्रम संयोजक दिनेश कटारिया ने बताया कि यह संगीतमय आयोजन स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया के जन्मदिवस पखवाड़े के तहत किया गया। उन्होंने कहा कि सुरेश वाडकर की प्रस्तुति ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।
संगीत की अविस्मरणीय यात्रा :
यह संध्या उदयपुर के संगीत प्रेमियों के लिए एक यादगार लम्हा बन गई, जहां सुर, साज और आवाज़ का ऐसा संगम हुआ, जिसने हर दिल में संगीत की गहरी छाप छोड़ दी। सुरेश वाडेकर की अनूठी गायकी की मिठास से उदयपुर की फिजाओं में संगीत की एक मधुर अनुगूंज देर रात तक गूंजती रही, जिसे श्रोता लंबे समय तक याद रखेंगे।
प्रख्यात निर्देशक विक्रम भट्ट आज उदयपुर में :
कार्यक्रम संयोजक दिनेश कटारिया ने बताया कि 26 मार्च को भारतीय लोक कला मंडल में शाम 7 बजे प्रख्यात निर्देशक विक्रम भट्ट द्वारा ‘भट्ट म्युजिक विरासत’ प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें विक्रम भट्ट व उनके दादा विजय भट्ट की फिल्मों के नगमों को बॉलीवुड के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा।

Related posts:

सांई तिरूपति विवि मे अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया

मोहल्ला नूरनगरी कमेटी के चुनाव में मो. रईस खान सदर और मो. जमील सेक्रेटरी

जाग्रत हनुमानजी को धराया जाएगा छप्पन भोग

पत्रकार डॉ. संदीप पुरोहित को मिलेगा पं. मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय अलंकरण

Hindustan Zinc celebrates International Week of Deaf people by embracing Inclusive Initiatives

अमेजन ने किया अपनी पैंट्री सर्विस का विस्तार, भारत में 300 से अधिक शहरों में उपलब्ध हुई सेवा

फील्ड क्लब कार्निवल : एपीएल-7 ने एक रन से जीता मुकाबला

भामाशाह की ऐतिहासिक भूमिका आज भी प्रासंगिक

दिव्यांग सामूहिक लग्न की व्यवस्थाएं पूर्ण

HDFC Bank Parivartan supports social sector start-ups  with Rs 19.6 crore grants

पारस जे. के. हॉस्पिटल में नि:शुल्क बहुआयामी चिकित्सा शिविर का आयोजन आज से

उदयपुर में खाद्य सुरक्षा योजना में चयनित परिवारों को फूड पैकेट वितरित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *