उदयपुर। मंत्र की शक्ति अमाप्य है। निष्काम भाव से विधि सहित किया जाने वाला जप पराशक्तियों की सिद्धि प्रदान करती है। मंत्र साधक के पास तीन मुख्य शक्तियाँ होती है – आत्मशक्ति, मंत्रशक्ति, इष्ट शक्ति। मन की शक्तियों का उत्थान और संरक्षण जप से होता है। मन के चैतन्यमय होते ही मंत्र में अपार सिद्धियों का सार्मथ्य हो जाता है। जप के तीन प्रकार हैं, मानसिक, उपांशू और वाचिक। साधना की दृष्टि से उपांशू जप सर्वश्रेष्ठ होता है। स्थान दिशा समय का ध्यान रहे तो मंत्र सिद्धियों को लेकर दस्तक देता है। यह बात आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासनश्री मुनि सुरेशकुमार ने पर्युषण पर्व के छठे दिन धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा जिस मंत्र का इष्ट पुरुष देव हो उसे पुरुष मंत्र कहते हैं। जिसके इष्ट देवी हो वह स्त्री मंत्र, और जिसके अंत में नम: लगे वह नपुंसक मंत्र होते हैं। दुर्बल मन को सबल बनाना, रोगी मत को स्वस्थ करना, तेजस शरीर की सक्रियता और आभामंडल का शोधत्न मंत्र साधना का लक्ष्य है। आज के इस दौर में जब ईष्र्या, घृणा, द्वेष चरम पर है ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को अपने इष्ट मंत्र के रक्षा कवच का निर्माण करना चाहिए।
मुनि सम्बोधकुमार ‘मेधांश’ ने महावीर की अध्यात्म यात्रा पर प्रकाश डालते हुए नामकरण, संस्कार, व बचपन के रोमांचक प्रसंगों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हम दु:खी इसलिए नहीं है कि हम अभावों में हैं बल्कि इसलिए कि हमारे पास जो है हम उससे सतुष्ट नहीं हैं। सुख और दु:ख मन की यायावरी है, जो मिला, जैसा मिला उसमे खुशी ढूंढना शुरू करे तो जीवन स्वर्ग हो उठता है। सब कुछ हर दिन एक जैसा नहीं हो सकता। जन जिन्दगी में कुछ टेढ़ा/ मेढा चल रहा हो तो तो समझ ले कि जिन्दगी चल रही है। इसीजी की मशीन में टेढ़ी-मेढ़ी लाइनों का मतलब जीवन और लाइनों का सीधा होना जीवन की समाप्ति है। शेर जब एक कदम पीछे जाए तो यह तय है कि उसे छलांग भरनी है जिन्दगी का भी यही सिद्धांत है।
मंत्र साधना से पराशक्तियां सिद्ध होती हैं : मुनि सुरेशकुमार
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