दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर ने मनाया विश्व पर्यावरण दिवस

उदयपुर : दि इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। प्रारम्भ में संस्था के अध्यक्ष इंजी पुरुषोत्तम पालीवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि हर वर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम हमें हमारे पर्यावरण को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिए जागरूक करती है और एक सतत स्वच्छ एवं हरित भविष्य की ओर प्रेरित करती है। प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक संकट बन चुका है जो न केवल हमारे जल स्रोतों वनों और मिट्टी को प्रभावित कर रहा है बल्कि मानव स्वास्थ्य और जैवविविधता के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा नदियों झीलों और महासागरों में पहुंचता है जिससे जलीय जीवों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान होता है इसलिए हम सब की जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण को संतुलित रखें। उन्होंने नागरिकों, उद्योग संस्थानों और सरकारी निकायों से आग्रह किया कि वे सिंगल यूज़ प्लास्टिक का प्रयोग बंद कर पुनः प्रयोग पुनर्चक्रण और जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन को अपनाएं।
इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया उदयपुर लोकल सेंटर के मानद सचिव इंजीनियर पीयूष जावेरिया ने बताया कि सरकार द्वारा कई पहले जैसे स्वच्छ भारत मिशन, प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान और हर स्वच्छता जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनका उद्देश्य है लोगों को जागरूक बनाना और प्लास्टिक कचरे के प्रभाव को कम करना। इस पर्यावरण दिवस पर हम सभी संकल्प लें कि हम अपने दैनिक जीवन में ऐसे विकल्प अपनाएं जो प्रकृति के अनुकूल हों और प्लास्टिक प्रदूषण से हमारी धरती को बचाने में मददगार साबित हों।
मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता डॉ एन सी जैन पूर्व पीसीसी, राजस्थान एवं संस्थापक संग्राम होलिस्टिक इको. वेलनेस मूवमेंट ने बताया कि आज हमारा ध्यान भावी पीढ़ियों के लिए और ऐसी जीवनशैलियाँ जो प्रकृति के साथ स्वस्थ,खुशहाल और सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने को शामिल करती हैं पर होना चाहिए जो पर्यावरण के बचाव के बिना संभव नहीं है। प्रकृति के बिना अध्यात्म अधूरा लगता है, अध्यात्म के बिना प्रकृति पनप नहीं सकती है लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिए पहले से जल जमीन में विकराल रूप ले चुके पर्यावरणीय संकट का सामना मुख्य चुनौती है। उन्होंने प्लासटक को तीन आर यथा रीयूज, रिड्यूस और रिसाइकिल के स्थान पर रिफयूज करने आ आवाहन किया और उसे लागू करने के लिए अभियान की तरह लेना होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि मन्दिर का पुजारी यह कहे कि मंदिर में प्लास्टिक लाना पाप हैं तो इसके उपयोग में कमी हो सकती है और संचय किसी भी धर्म में वज्रित है सभी धर्मों में यह कहा जाता है कि सब यहीं छूट जाएगा फिर भी अपने सुख के लिए हम पदार्थों का संचय करते हैं जिससे हम पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है जिसकी पूर्ति के लिए हमे कई जतन करने होंगे। उन्होंने कहा कि मानवता को बचाये रखने के लिए इंजीनियरिंग को सामाजिक इंजीनियरिंग के साथ जोड़ना चाहिए। यदि हमने पर्यावरण का संरक्षण नहीं किया तो एक दिन मानव जाति के अस्तितव पर भारी खतरा होगाा। इस ग्रह पर उपस्थित सभी जलचर, थलचर जीव जन्तु का उसकी उपस्थिति के हिसाब से पर्यावरण पर उसका हिस्सा होना चाहिए। प्रकृति हम से कुछ मांग नहीं रही है अपितु हमें निरन्तर दे रही है इसके बचाव के लिए हमें जीरो कार्बन फुट प्रिंट पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता हेै।
वक्ता डॉ संगीता चौधरी एसोसिएट प्रोफेसर गीतांजलि इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्निकल स्टडीज ने बताया कि वर्तमान में विश्व प्लास्टिक कचरे की विशाल मात्रा के उचित प्रबंधन और संसाधन पुनर्प्राप्ति की चुनौती का सामना कर रहा है। प्लास्टिक कचरे के इस विशाल ढेर के पीछे प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए तकनीकी कौशल की कमी, पुनर्चक्रण और पुनर्प्राप्ति के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचा विकास, नियमों और विनियमों के बारे में जागरूकता की कमी इत्यादि प्रमुख कारक हैं। प्लास्टिक कचरे को जब जैविक या गीले कचरे के साथ मिलाया जाता है तो उसे रिसायकल करना लगभग असंभव हो जाता है। उचित पृथक्करण के बिना प्लास्टिक सार्वजनिक स्थानों और जलमार्गों में जमा हो जाता है और माइक्रोप्लास्टिक में टूटकर पारिस्थितिकी तंत्र महासागर और अंततः खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है। प्लास्टिक पर्यावरण में हानिकारक रसायन मिट्टी जल निकायों और तलछट में घुलकर पौधों जानवरों और सूक्ष्मजीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से विभिन्न प्रजातियों को सीधे तौर पर खतरा है खास तौर पर समुद्री और तटीय वातावरण में रहने वाली प्रजातियों को। समुद्री पक्षी, समुद्री स्तनधारी और मछली जैसे समुद्री जानवर प्लास्टिक के मलबे में फंस सकते हैं या इसे भोजन समझ सकते हैं जिससे चोट लग सकती है जिससे समुद्री जीवों का दम घुट सकता है, प्रजनन क्षमता कम हो सकती है और अंततः जनसंख्या में गिरावट आ सकती है। इन प्रजातियों के खत्म होने से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो सकता है और जैव विविधता में कमी आ सकती है। इंजी पीयूष जावेरिया ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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