संगीत के रंग, सुरों की महफिल : ‘भट्ट म्यूजिक विरासत’ में बिखरा ऑल टाइम सुपरहिट सुरों का जादू

– स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया के जन्मदिवस पखवाड़े के तहत इंदिरा स्वरांगन में शानदार प्रस्तुतियों ने मन मोहा
उदयपुर (डॉ. तुक्तक भानावत)।
भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर में बुधवार को सजी गीतों भरी सुरमयी शाम ने समां बांध दिया। प्रख्यात निर्देशक विक्रम भट्ट ने विशेष संगीतमय प्रस्तुति ‘भट्ट म्यूजिक विरासत’ के पेशकश में स्वर्णिम और यादगार बना दिया। इंदिरा स्वरांगन के तहत स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया के जन्मदिवस पखवाड़े के तहत हुए आयोजन में डायरेक्टर विक्रम भट्ट के दादाजी महान निर्देशक विजय भट्ट की फिल्मों से लेकर खुद भट्ट की फिल्मों तक के सफर के कालजयी गीतों के नजराने दिए तो मानों पूरे संगीत संसार का परचम दिलों पर फहरा दिया।

दीप प्रज्वलन अतिथियों के साथ डॉ. अजय मुर्डिया, नीतिज मुर्डिया, क्षितिज मुर्डिया, श्रद्धा मुर्डिया, आस्था मुर्डिया, दिनेश कटारिया ने किया। कश्ती फाउंडेशन की डायरेक्टर श्रद्धा मुर्डिया ने स्वागत भाषण दिया। विज्ञान समिति भवन के संस्थापक डॉ. के. एल. कोठारी ने अपने उद्बोधन में आयोजन को संगीतमय धरोहर बताते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया। इसके बाद स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया को समर्पित एक विशेष वीडियो प्रजेंटेशन ने दर्शकों को उनकी यादों से सराबोर करते हुए भावुक कर दिया।


कार्यक्रम संयोजक दिनेश कटारिया ने बताया कि यह आयोजन सिर्फ संगीत का सम्मान नहीं, बल्कि स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया के प्रति एक संगीतमय श्रद्धांजलि भी है। संचालन रश्मित कौर ने किया। अतिथियों के अभिनंदन के बाद स्वागत भाषण यूएसएम के प्रेसिडेंट डॉ. एच. एस. भुई ने देते हुए आत्मीय स्वागत किया। इसके बाद डॉ. अजय मुर्डिया ने अपनी जीवन संगीनी स्वर्गीय इंदिरा मुर्डिया की यादों को साझा करते हुए उनके संगीत प्रेम और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी स्मृतियों को ताजा किया। उन्होंने बताया कि इंदिराजी को संगीत से गहरा अनुराग था, इसी कारण हर वर्ष इस भव्य संगीतमय आयोजन की परंपरा को आगे बढ़ाया जाता है। उन्होंने फिल्म ‘तुमको मेरी कसम’ पर चर्चा करते हुए इसे उनके जीवन का एक भावनात्मक दस्तावेज बताया।


इसके बाद मंच पर आते ही प्रख्यात डायरेक्टर विक्रम भट्ट ने विजय भट्ट की यादों को ताजा करते हुए उनकी फिल्मों के सदाबहार गीतों का जिक्र छेड़ा व जैसे ही ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा’ (बैजू बावरा, 1952) गूंजा, तो हर किसी को भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग की अनुभूति हुई। अब्दुल्ल शेख और शोमा तंद्रा ने विक्रम भट्ट की पेशकश वाले गीतों को सुरमयी आवाज देते हुए ‘ये हरियाली और ये रास्ता’ (हरियाली और रास्ता, 1962) सुनाया तो मखमली धुनें प्रकृति की मधुरता को शब्दों में ढाले हुए दिल में उतर गई। ‘मैं तो एक ख्वाब हूँ’ गीत (हिमालय की गोद में, 1965) मंच से बहा, तो माहौल में दिव्यता छा गई। ‘तेरी खुशबू में लिखे खत’ (अर्थ, 1982) गाने में हर किसी की आंखों में बीते दिनों की यादें तैरने लगीं। जब नाम फिल्म का गाना, ‘तू कल चला जाएगा तो मैं क्या करूंगा’ आया तो हर दिल को एक अधूरी कसक से भर दिया।
इसके बाद संगीत प्रेमियों ने फरमाइश की झड़ी लगा दी जिस पर काश फिल्म के ‘ओ यारा’ और ऐतबार के ऑल टाइम हिट गाने ‘किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है’ गूंजा तो मानों संगीत का खजाना ही खुल गया। पूरा सभागार प्रेम की मधुर भावनाओं में डूब गया।

90 के दशक के रोमांस वाले गीत ‘घूंघट की आड़ से दिलबर का’ ने सबके दिलों को फिर जवां अल्हड़पन से भर दिया। ‘मेरा दिल का पता’ के बाद गुलाम फिल्म के ‘जादू है तेरा ही जादू’ और ‘आती क्या खंडाला’ ने संगीत प्रेमियों को अल्हड़ मस्ती में रंगने का भरपूर मौका दिया। संगीतमय ऊर्जा के बाद रहस्यमयी प्रेम और दर्द भरे नगमों ने संगीत सर्जरी करने में कसर नहीं छोड़ी। ‘कितनी बेचैन होकर’ और ‘मोहब्बत हो ना जाए’ गूंजा, तो हर दिल में हलचल मच गई।
इस संगीतमय यात्रा को आगे बढ़ाते हुए राज फिल्म के नगमों की प्रस्तुति ने धूम मचा दी। ‘जो भी कसमें खाई थी हमने,,,,क्या तुम्हें याद है’ और ‘आपके प्यार में हम संवरने लगे’ के तारानों ने होठों पर राज कर लिया। नई सदी के संगीत में ‘आ पास आ’ और ‘जानिया’ ने युवाओं में नई ऊर्जा जाग उठी। ‘उसका ही बना’ (1920 इविल रिटन्र्स, 2012) और ‘दीवाना कर रहा है’ (राज़ 3,) ने दिलों को छू लिया।


यूएसएम ने भी दी यादगार नगमों की प्रस्तुति :
इस संगीत संध्या को और भी यादगार बना दिया अल्टीमेट सोल ऑफ म्यूजिक (यूएसएम) के सदस्यों ने। रेणु भाटिया, उर्वशी सिंघवी और रानी भूई ने सुरीले स्वरों से समां बांध दिया। उर्वशी सिंघवी ने ‘तुमको देखा तो ये खयाल आया’ (साथ साथ, 1982) गाया, तो श्रोताओं के दिलों में रोमांटिक धडक़नें तेज हो गईं। रानी भूई ने ‘चले जाना जरा ठहरो’ (मजबूर, 1974) गाकर मोहब्बत की मासूमियत को सुरों में ढाल दिया। दिनेश कटारिया ने ‘मैं तो एक ख्वाब हूं’ (हिमालय पुत्र, 1997) गाकर दिलों के तार झंकृत कर दिए। वहीं रेणु भाटिया ने ‘जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं’ (मेहबूबा, 1976) गाकर सबको भावुक कर दिया। धन्यवाद डॉ. भुई ने ज्ञापित किया।
रंग बदलते सुरों का जादू :
कार्यक्रम की शुरूआत में ही दर्शकों को हाथों पर पहनने वाले विशेष एलईडी बैंड्स दिए गए, जो गानों की धुन के साथ अपनी रोशनी बदलते रहे। अद्भुत तकनीकी और संगीतमय संगम को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।

Related posts:

बाल संस्कारशाला का शुभारंभ

21वीं नेशनल पैरा-स्विमिंग कॉम्पिटिशन उदयपुर में 25 से 27 मार्च को

चारवी की डॉक्टर बनने की ख्वाहिश

Hindustan Zinc organizes Calf Rally at Malikheda Village in Dariba

1002 नये रोगियों के साथ कोरोना पॉजिटिवों की संख्या 42204 पहुंची

पंचकर्म चिकित्सा शिविर में रोगियों को मिल रही राहत, आयुर्वेद के प्रति बढ़ रहा विश्वास

युवा राष्ट्र निर्माण में मेहनत और लगन से अपना योगदान सुनिश्चित करें: अरूण मिश्रा

निःशुल्क चिकित्सा शिविर में 800 मरीजों का उपचार

विश्व प्रसिद्ध फतहसागर झील ओवरफ्लो, चार गेट खोले

बालगीत लेखन प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

प्रो. चूंडावत का अभिनंदन

फील्ड क्लब की जमीन 93 सालों से हमारे पास है, सरकार ने हमे इस पर लोन दिया, हमारी भूमि पर सोसायटी ने इ...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *