जो आदत है वही पर्याप्त है : मुनि संबोधकुमार ‘मेधांश’

उदयपुर। कछुए की लंबी उम्र खतरों का अंदाजा होते ही खुद को समेटने की खूबसूरत आदत के कारण है। मैं इसके बिना नहीं रह सकता, जब यह शब्द हमारी जिंदगी में शामिल हो जाए तो यह तय है कि हम अपनी खुशियों को स्वयं छीन रहे हैं। ये विचार ध्यान साधक शासनश्री मुनि सुरेशकुमार के सहवर्ती मुनि संबोधकुमार ‘मेधांश’ ने अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा निर्देशित तेरापंथ महिला मंडल उदयपुर के बैनर तले भिक्षु दर्शन, आदिनाथ नगर में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये। मुनिश्री ने कहा रोज गिनती करें, हमारे आसपास ऐसी कितनी चीजें हैं जो गैर जरूरी है। छोडऩे की ताकत जुटाए। पकड़ मजबूत होगी तो जीवन बोझिल हो उठेगा। हल्के रहने के लिए जरूरी है कि किसी भी चीज को अपनी कमजोरी ना बनने दें। अगर कोई कमजोरी बनने लगे तो फौरन उसे नशा बनने से पहले ही जड़ से उखाड़ कर फेंक दे। मुनि प्रवर ने कहा कि मन कहता है कि सेहत अच्छी नहीं है तो क्या हुआ खा ही लें। चैतन्य कहता है नहीं यह सही नहीं है। तब हम समर में होते हैं। मन से हार मान लिया तो हम हार जाते हैं। जीवन की जंग में जीत उन्हीं की होती है जो जानते हैं कि अपनेआप को और अपनी भावनाओं को कैसे समेटना हैं।
तेरापंथ महिला मंडल के समूह गान, प्रेरणा गीत से शुरू हुए कार्यक्रम में मंडल की अध्यक्षा श्रीमती सीमा पोरवाल ने सभी का स्वागत किया। आभार मंत्री श्रीमती दीपिका मारू ने जताया। संचालन मंडल उपाध्यक्ष श्रीमती सीमा बाबेल ने किया।

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