कहीं हमेशा के लिए गुम न हो जाए हमारी गोरैया

डॉ. कमलेश शर्मा

कुछ वर्षां पहले तक सुबह आंख खुलने के साथ ही हर व्यक्ति को नन्हीं चिड़िया की चहचहाहट सुनाई देती थी परंतु आज यह चहचहाचट और चिड़िया गुम सी हो गई है। हमारे घर आंगन को अपनी चहचहाहट से जीवंत बनाने वाली हमारे परिवार की सदस्य नन्हीं चिड़िया का अस्तित्व आज खतरे में है। यह किसी देश-प्रदेश की समस्या नहीं अपितु समूचे विश्व के लिए चिंतनीय बिंदु है और यही वजह है कि आज हमें विश्व गोरैया दिवस मनाने और इसके संरक्षण व संवर्धन विषय पर चिंतन की आवश्यकता आन पड़ी है।
हर कोई जानता है कि एक ऐसा समय था जब पूरे दिन हमारे घरों में नन्हीं गोरैया की चीं-चीं सुनाई पड़ती थी, दादी-नानी और मम्मी अपनी लोरी में बच्चों को इनकी चहचहाहट सुनाकर बहलाती थी। यह भी धारणा थी कि जो नवजात देर से बोलना प्रारंभ करते हैं तो उन्हें चिड़िया का जूठा पानी पिलाया जाए। वह दौर था जब कवियों की कविताओं का विषय चिड़िया होती थी पर आज यह सब कुछ चिड़ियाओं की भांति गुम सा है।

ख्यात पर्यावरण वैज्ञानिक व सेवानिवृत्त वन अधिकारी डॉ. सतीश शर्मा के अनुसार भारत में गोरैया की 13 प्रजातियां ज्ञात है जो 4 वंशों से संबंधित हैं। इनमें हमारे देश में पैसर वंश की 6, पिर्गिलौडा वंश की 4, प्रोटोनिया वंश की 2 और मोंटी फ्रिंजिल्ला वंश की 1 प्रजाति ज्ञात है। इनमें कुछ स्थानीय तो कुछ प्रवासी हैं। गोरैया जुलाहा यानि वीवर वर्ग की सदस्य है। आमतौर पर अन्य प्रजातियों के पक्षियों के घोंसलें पर छत नहीं होती है परंतु गोरैया अपने घौसलें को छत से ढकती है।  
पक्षी विशेषज्ञ विनय दवे के अनुसार गोरैया का प्रमुख आहार कीट-पतंगे हैं ऐसे में फसलों पर लगने वाले कीट-पतंगों को खाकर फसलों की उन कीट-पतंगों से बचाती है। इसी कारण इसे किसान मित्र भी कहा जाता है। कीट-पतंगों को अपने भोजन रूप में ग्रहण कर लेने से एक तरफ किसानों की फसल रसायनों के दुष्प्रभाव से भी बच जाती है दूसरी तरफ मानव जाति एवं अन्य प्राणि भी रसायनों के दुष्प्रभावों से सुरक्षित हो जाते है।  
नन्हीं चिड़िया गोरैया की संख्या में गिरावट का प्रमुख कारण उसके घौंसला बनाने की जगह की कमी ही दिखाई देती है। हाउस स्पैरो का हाउस में प्रवेश ही प्रतिबंधित सा हो गया है। आमतौर पर गोरैया अपना घोंसला कच्चे मकानों, खपरैल, तस्वीरों के पीछे, रोशनदानों आदि जगह बनाती है परंतु ये स्थान अब आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। पक्के मकानों  और डोर क्लोजर के कारण गोरैया का हमारे घरों के अंदर प्रवेश बंद हो चुका है। आधुनिक मकानों में एयरकण्डीशनर के उपयोग के कारण न तो रोशनदान और न ही खुली खिड़कियां का निर्माण होता है जिससे इस चिड़िया को घोंसला बनाने का पर्याप्त स्थान नहीं मिलता। बढ़ते औद्योगिकरण के कारण आज हर जगह कंक्रीट के जंगल उग आए हैं ऐसे में इस नन्हीं चिड़िया को अपने घोंसले बनाने के लिए जगह ही नहीं मिल पा रही है। दूसरी तरफ कीटनाशक से युक्त चुग्गा खाने और मोबाइल टावरों व अन्य इलेक्ट्रॉनिक एवं संचार साधनों से निकले विकिरणों के दुष्प्रभावों से गोरैया की संख्या में गिरावट आई है।  
विशेषज्ञों के अनुसार पक्के मकानों में छज्जों के नीचे कृत्रिम घोंसले लगाकर गोरैया को उसका घौसला दिया जा सकता है वहीं सुरक्षित स्थान एवं ऊंचाई पर परिंडे बांधकर तथा उत्तम गुणवत्ता युक्त अनाज उपलब्ध कराकर दाने-पानी की व्यवस्था की जा सकती है। इसके साथ ही गोरैया को अपनी वंशवृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के लिए हमें आमजन को जागरूक करना होगा तभी हमारे घर-आंगन की शान गोरैया गुम होने के स्थान पर फिर से हमारे चीं-चीं करती नजर आएगी।  

Related posts:

मेवाड़ क्षत्रिय महासभा की क्षत्रिय समाज को टिकट वितरण में उचित प्रतिनिधित्व की मांग
निहार शांति पाठशाला फनवाला ने सना को शिक्षा का रास्ता दिखाया
MKM Football Tournament Concludes its 44thEdition in #ZincCity in a nail-biting finale - Doon Star F...
तामीर सोसायटी के 28वें अवार्ड समारोह में 29 विभूतियां सम्मानित
वेदांता ने ट्रांसजेंडरों के लिए अपनाई अनूठी समावेशन नीति
स्मार्ट स्कीम्स का स्मार्ट प्रचार
इंडिया स्टोनमार्ट में टाटा हिताची के मज़बूत और शक्तिशाली हाइड्रॉलिक एक्सकेवेटरों की प्रदर्शनी
डॉ. लक्ष्यराज सिंह की महाराष्ट्र सीएम एकनाथ शिंदे से मुलाकात 
उदयपुर जिला कलक्टर मीणा को राज्यपाल ने किया सम्मानित
JCB India inaugurates a new dealership facility for Rajesh Motors in Udaipur, Rajasthan
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ ने घोषित किया 788 करोड़ का बोनस
अनिल अग्रवाल फाउंडेशन द्वारा ग्रामीण भारत को सशक्त करने के लिए 5,000 करोड़ रुपयों के निवेश का संकल्प

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *