44वां निशुल्क आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा शिविर 4 से

उदयपुर। आयुर्वेद विभाग उदयपुर के तत्वावधान तथा आरोग्य समिति राजकीय आदर्श आयुर्वेद औषधालय सिन्धी बाजार के सहयोग से एक विशेष पंचकर्म चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जा रहा है। यह शिविर विभाग का 44वां शिविर होगा, जो पूर्णतः निःशुल्क रहेगा। शिविर 4 से 8 अगस्त 2025 तक प्रातः 9 से दोपहर 1 बजे तक राजकीय आदर्श आयुर्वेद औषधालय, सिन्धी बाजार, उदयपुर में आयोजित किया जाएगा। शिविर में रोगियों को वात रोगों की चिकित्सा हेतु बस्ति कर्म उपलब्ध कराया जाएगा। विशेष रूप से 7 अगस्त को अग्निकर्म चिकित्सा का आयोजन किया जाएगा, जो पुराने जटिल वातजन्य, स्नायविक व अस्थि विकारों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है।
आयुर्वेद के पंचकर्म उपचारों में बस्ति कर्म को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। यह चिकित्सा प्रणाली शरीर के वात दोष को शमन करने में अत्यंत प्रभावी है। बस्ति का शाब्दिक अर्थ है—‘धारण करना’ अर्थात् औषधिय द्रव्यों को एक विशेष विधि से शरीर में प्रविष्ट करना, जिससे आंतरिक दोषों का शुद्धिकरण होता है। यह चिकित्सा पद्धति अन्य किसी भी पद्धति से अधिक प्रभावशील रूप से शरीर की वातजन्य विकृतियों जैसे—गठिया, आमवात, साइटिका, कमर दर्द, जोड़ दर्द, हिप या घुटनों में जकड़न, वातवाहिनी नसों में खिंचाव, स्नायु विकार, पक्षाघात आदि में आश्चर्यजनक लाभ देती है।
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार, वर्षा ऋतु में वात दोष का प्राकृतिक रूप से प्रकोप होता है। इस मौसम में भूमि की ऊष्णता और आकाश से जलवृष्टि के कारण वात तत्व शरीर में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न करता है। विशेषकर वे लोग जो कमजोर पाचन शक्ति, नींद की अनियमितता, बैठकर काम करने की जीवनशैली, असंतुलित खानपान अथवा पुराने दर्दों से पीड़ित हैं, उनके लिए यह ऋतु रोगों को आमंत्रित करने वाली होती है।
आयुर्वेद में स्पष्ट उल्लेख है कि वर्षा ऋतु में बस्ति कर्म करना वात को नियंत्रित करने के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। इस ऋतु में औषधिय बस्ति शरीर की शुद्धि के साथ-साथ स्नायविक प्रणाली को बल देती है, तथा शरीर में संचित दोषों को निष्कासित कर शरीर को रोग मुक्त और ऊर्जावान बनाती है।
शिविर में निम्न सेवाएँ निःशुल्क रूप से प्रदान की जाएंगी:

  1. रोगी की प्रारंभिक जांच – नाड़ी, जीभ, मल-मूत्र, रक्तचाप, मानसिक स्थिति आदि के माध्यम से रोगी की प्रकृति और दोषों का निर्धारण किया जाएगा।
  2. विशेषज्ञ परामर्श – डॉ. शोभालाल औदिच्य के निर्देशन में अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सकों की टीम द्वारा व्यक्तिगत परामर्श।
  3. बस्ति चिकित्सा – दोष, प्रकृति, रोग और शरीर बल के आधार पर औषधीय बस्ति प्रदान की जाएगी।
  4. अग्निकर्म चिकित्सा – 7 अगस्त को चयनित रोगियों को डॉ वीरेंद्र सिंह हाडा द्वारा विशेष अग्निकर्म चिकित्सा दी जाएगी।
  5. आहार-विहार परामर्श – आयुर्वेद अनुसार वात शांत करने वाले आहार, जीवनशैली और दिनचर्या की व्यक्तिगत मार्गदर्शिका दी जाएगी।
  6. महिला रोगियों के लिए पृथक परामर्श – महिला चिकित्सकों की विशेष व्यवस्था।
  7. पुनः परीक्षण – उपचार उपरांत रोगियों की प्रगति की जांच।
    शिविर में प्रवेश केवल पंजीकरण के आधार पर होगा। गंभीर या संक्रामक रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए पृथक व्यवस्था रहेगी। गर्भवती महिलाएँ, अत्यधिक कमजोर रोगी तथा रक्तस्राव संबंधित विकारों से पीड़ित रोगी बस्ति चिकित्सा के लिए उपयुक्त नहीं माने जाएंगे। प्रत्येक रोगी को चिकित्सा से पूर्व आवश्यक जानकारी और अनुमति पत्र प्राप्त कराना अनिवार्य होगा।
    डॉ. शोभालाल औदिच्य ने बताया कि आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा केवल रोग निवारण नहीं, बल्कि शरीर के पुनरुत्थान की संपूर्ण व्यवस्था है। वर्षा ऋतु में बस्ति कर्म के माध्यम से न केवल पुराने वात रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है, बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी सशक्त किया जा सकता है। यह चिकित्सा आयुर्वेद का सार है और हर नागरिक को इसका लाभ उठाना चाहिए। सिन्धी बाजार में पंचकर्म चिकित्सा लेने देश ही नहीं विदेश से भी आते है रोगी।

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