शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत प्राचीनकाल से ही भारत पूरे विश्व का मार्गदर्शक रहा है। वर्तमान में इन क्षेत्रों में जो इनेगिने शीर्ष नाम हैं उनमें डॉ. चिन्मय पंड्या का कोई सानी नहीं।
उनका सर्वाधिक योगदान हरिद्वार में गायत्री परिवार द्वारा संस्थापित देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति के रूप में है जो समग्रशिक्षा के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालय के रूप में उच्चस्तरीय नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के प्रकाशस्तंभ का मानक संस्थान है।
उल्लेखनीय है कि गायत्री परिवार की स्थापना अध्यात्म मनीषी योगी पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) ने की थी जिसके पूरे विश्व में हजारों वैश्विक केन्द्र से जुड़े 10 करोड़ से भी अधिक सदस्य हैं।
डॉ. चिन्मय पंड्या ने भारत में चिकित्सा-अध्ययन के बाद अमेरिका में प्रशिक्षण लिया। वहां उन्होंने रॉयल कॉलेज ऑफ साइकेट्रिस्ट्स की सदस्यता प्राप्त की। लंदन में ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के रैंकों के माध्यम से मेंटल हेल्थ ट्रस्ट में एसोसिएट स्पेशलिस्ट का पद हासिल किया। वहां अल्चीमर रोग के कारण मनोभ्रंश के झटके पर ध्यान केंद्रित करते हुए, कई मानसिक विकारों से ग्रस्त रोगियों का प्रबंधन करते 2010 में भारत लौट आए।
भारतीय योगसंघ के उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने योग, ध्यान, तनाव प्रबंधन और दार्शनिक प्रयासों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। वे योग, संस्कृति और अध्यात्म के अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव के अध्यक्ष हैं। उन्होंने पानी के विलवणीकरण के मुद्दों पर दो सौ से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजन किये।
डॉ. पंड्या आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी मंत्रालय की सलाहकार परिषद तथा नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन की पाठ्यक्रम पुनर्गठन समिति के सम्मानित सदस्य हैं। कैम्ब्रिज और वर्जीनिया विश्वविद्यालय के निदेशक, एशिया के एकमात्र बाल्टिक संस्कृति और अध्ययनकेंद्र तथा दक्षिण एशियाई शांति और सुलह संस्थान के अध्यक्ष होने के साथ ही भारत के ऋषिहुड विश्वविद्यालय के संस्थापक संरक्षक भी हैं।
उन्होंने विश्वस्तरीय अनेक संगोष्ठियों को संबोधित किया और वियना में संयुक्तराष्ट्र मुख्यालय, कैम्ब्रिज, लातविया और शिकागो विश्वविद्यालयों में भारत की सबरंगी संस्कृतिनिधि पर यादगार व्याख्यान देकर अपनी यशस्वी भूमिका दी। वे एक ऐसे मेधावी पुरूष हैं जिन्होंने लैम्बेथ पैलेस, रॉयल मेथोडिस्ट हॉल, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, भारतीय सैन्य अकादमी, भाभा परमाणु अनुसंधान के परमाणु ईंधन निगम, टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान और भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठनों मेें भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का योगदान देते भारतीयता की विरासती वैभव को वैश्विक प्रतिश्ठा दिलाई।
डॉ. चिन्मय पंड्या पहले भारतीय हैं जो अध्यात्म के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नोबेल पुरस्कार के समकक्ष टेम्पल्टन पुरस्कार की ज्यूरी के मेंबर हैं। वे भारतीय संस्कृति को वर्तमान की तमाम समस्याओं के समाधान के रूप में देखते हैं। भारतीय वेशभूषा धोती-कुर्ते व खड़ाउ धारण किये वे बेहद विनम्र स्वभाव के सुजन हैं।
दो वर्ष पूर्व डॉ. पंड्या ने इथोपिया में आयोजित यूनेस्को के सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया फलस्वरूप योग को वैश्विक धरोहर का दर्जा मिला। इसी वर्ष वियना में हुए संयुक्तराष्ट्र धर्मसम्मेलन में पाकिस्तानी धर्मगुरूओं ने उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता दिया। उनकी अबतक की जीवनयात्रा को देखकर सभी आश्वस्त हैं कि भविष्य में वे कामयाबी के कई बड़े कीर्तिमानों से भारतीय गुण-गौरव को सहस्त्ररंगी शिलालेखीय रेखांकन देंगे।
शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति में विश्वव्यापी पहचान लिये डॉ. चिन्मय पंड्या
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