आदि महोत्सव कोटड़ा: कला के आंगन पर दिखा जनजाति संस्कृति का अनूठा संगम

ढोल-मृदंग की थाप के साथ झूमी झांझर की झनकार
घुंघरु की छनकार के साथ थिरकते कलाकारों ने किया मंत्रमुग्ध
उदयपुर।
जिला प्रशासन, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान एवं पर्यटन विभाग के तत्वावधान में जिले के सुदूर आदिवासी अंचल कोटड़ा ब्लॉक में आयोजित ‘आदि महोत्सव 2022 कोटड़ा’ के दूसरे दिन कला के आंगन पर देशभर की जनजाति संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिला। उदयपुर संभाग के जनजाति कलाकारों के साथ भारत के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने ढोल-मृदंग की थाप के साथ झांझर की झनकार और घुघरू की छनकार के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। दूसरे दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ गरासिया जनजाति के वालर नृत्य के साथ हुआ। इसके बाद चांग, सौंगी, नटूवा, सिंगारी, राठवा, घुमरा, सहरिया, गवरी, ढोल कुंडी सहित लोक नृत्यों ने सभी को आकर्षित किया। वाद्ययंत्रों की लहरियों संग थिकरते कलाकारों का दर्शकों ने तालियां बजाकर उत्साहवर्द्धन किया। कार्यक्रम देखने आए देशी-विदेशी मेहमान लोक कलाकारों को प्रस्तुतियों को अपने मोबाइल व कैमरे में कैद करते दिखाई दिए।


 आदि महोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को जनजाति कलाकारों की परफोर्मेंस देखने के लिए पर्यटकों और स्थानीय लोगों की इतनी भीड़ पड़ी कि पैर रखने की जगह तक नहीं बची। यहां तक कि उत्साह से लबरेज ग्रामीण महिलाएं मंच के आगे तक जा बैठी और परफोर्मेंस का आनंद लिया। इधर कलाकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियों से सभी का मन मोह लिया। पांडाल में लगातार तालियों की गूंज सुनाई दी और लोगों ने हाथ ऊपर उठा कर कलाकारों का अभिवादन किया।
उदयपुर जिले के स्थानीय कलाकारों के अलावा विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकारों ने गैर, होली गैर, चांग, वालर, सोंगी मुखोवटे, नटुवा, सिंगारी, गुटुंब बाजा, भंवरा गीत, राठवा, घुमरा, गैर घुमरा, मावलिया, ढोल कुण्डी आदि की प्रस्तुति दी जिसने दर्शकों को खूब आनंदित किया। इसके अलावा मंच से कबीर गीत ‘क्या लेकर आया है बंदे, क्या लेकर जाएगा…दो दिन की दुनिया है, दो दिन का मेला’ भी प्रस्तुत किया गया जिसे सुन लोग भी यह गीत गुनगुनाने लगे। इस गीत के पूरा होने के बाद भी कई मिनटों तक तालियां बजती ही रही।


खेरवाड़ा निवासी अमृतलाल मीणा की टीम ने आजादी के आंदोलन के समय गाए गए जनजाति गीत प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि आजादी के आंदोलन में आदिवासी भी पीछे नहीं थे और आदिवासी इलाकों में भी देशभक्ति गीत गाए गए। उन्होंने साइमन कमीशन को भगाने के लिए उस समय आदिवासी समुदाय द्वारा गाया गया गीत ‘भूरिया जाजे थारे वाले देस’ की प्रस्तुति दी जिस पर पांडाल में मौजूद लोगों ने भारत माता की जय के नारे लगाए। दूसरे दिन प्रस्तुतियों का समापन कोटडा के स्थानीय ढोल कुंडी नृत्य से हुआ।
कार्यक्रमों के समापन के बाद स्थानीय ग्रामीण जन खुद को थिरकने से रोक नहीं सके एवं बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण जन मंच और मंच के नीचे मौजूद स्पेस में पहुंच गए यहां सभी एक साथ नृत्य करने लगे और यह सिलसिला करीब 1 घंटे तक चलता रहा। जिला कलेक्टर के ग्रामीणों का ऐसा अंबार और उत्साह देखकर अभिभूत हो गए। यही नहीं मंच पर कलेक्टर के साथ सेल्फी लेने के लिए भी हुजूम उमड़ा रहा। आदि महोत्सव की सफलता देख जिला कलेक्टर भी गद्गद् हो गए क्योंकि खुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि जिस महोत्सव की कल्पना उन्होंने की है वह इतने प्रकार के रंग लेगा।
जिला कलेक्टर ताराचंद मीणा ने कहा कि आमजन, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और पर्यटक, कलाकारों और स्थानीय अधिकारियों-कर्मचारियों के समन्वित प्रयासों से यह अभूतपूर्व आयोजन सफल रहा। राज्य सरकार की मंशाओं के अनुरूप ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह आयोजन प्रारंभ किया गया है और भविष्य में भी इसे जारी रखा जाएगा। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सेव द गर्ल चाइल्ड की ब्रांड एंबसेडर डॉ. दिव्यानी कटारा ने इस दूरस्थ ग्रामीण अंचल में देश के नामी-गिरामी कलाकारों की मनोहारी प्रस्तुतियों को स्थानीय कलाकारों के लिए प्रोत्साहनदायी बताया और कहा कि इससे आदिवासी कलाकारों को नई ऊर्जा प्राप्त हुई है।  

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