‘रॉयल टेक्सटाइल्स ऑफ मेवाड़’ पुस्तक का विमोचन

उदयपुर। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्दसिंह मेवाड़ ने रॉयल टेक्सटाइल्स ऑफ मेवाड़ पुस्तक का विमोचन किया। इस अवसर पर सह-लेखिका ज्योति जसोल, फाउण्डेशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्रसिंह आउवा तथा उप-सचिव मयंक गुप्ता उपस्थित रहे।
पुस्तक में मेवाड़ राज्य परिवार द्वारा उपयोग में लिये गये शाही वस्त्रों, पोशाकों आदि की महत्वपूर्ण जानकारियां, चित्र आदि संग्रहित हैं। प्राचीन समय में इन वस्त्रों एवं परिधानों को ’सोने के मापने की इकाई प्रति तोला’ के अनुसार की जाती थी, जो काफी कीमती होते थे। मेवाड़ के महाराणाओं के समय लिखे जाने वाले बहिड़ों के अनुसार ये कपड़े बनारस से ऑर्डर किये जाते थे। परिधानों में महिला पोशाकों में ओढ़ना, घाघरा, कुर्ती, कांचली का पहनावा होता था जिन पर करचोवी कढ़ाई (कशीदा) में गिजाई, ढबका, नक्शी, बाकड़ी, कटोरी, रेशम के धागे, बीटल पंखों के टुकड़े, डंका आदि के निर्माण के साथ पोशाक की बॉर्डर पर बेल, मोर, पुष्प आदि की आकृतियों से सुसज्जित किये जाते थे।
मर्दाना परिधानों में अचकन, कुर्ता, कमरबंद, धोती, शॉल, पाग-पगडि़यां आदि को सूचीबद्ध किया गया है। इन वस्त्रों पर कीमती रेशमी धागों से कशीदों में कई तरह की सुन्दर व मनमोहक आकृतियां व बोर्डर बने हुए है। इनमें त्योहारिक पोशाकों के साथ ही साधारण पहनावें में उपयुक्त पोशाकों का वर्णन प्रस्तुत है। इसी तरह कुँवर-कुँवरानियों, राजकुमारियों व बच्चों की पोशाकों, जुती, मोजडियां आदि का सचित्र वर्णन प्रस्तुत है। राजपरिवार में काम में ली जाने वाली कई पोशाकों के साथ खेले जाने वाली पच्चीसी, शतरंज के अलावा बिछात, पर्दे, बेड शीट, कवर आदि मखमल व रेशमी कपड़े के बने हैं जिन पर रेशमी धागों व कशीदों से आकर्षित करने वाली अनेक कलाकृतियां उकेरी गई है। राजपरिवार के सदस्यों के साथ-साथ राजमहलों के हाथी-घोड़ा, बग्गियों, पालकियों, डोलियों के लिये काम में आने वाले या पहनाए जाने वाले वस्त्रों पर भी कई तरह के मन-भावन काम किये गये है। मंदिरों में ठाकुरजी को धारण करवाए जाने वाले वस्त्रों एवं मंदिर में लगने वाले पर्दों, पिछवाइयों के कार्यों का सचित्र वर्णन पुस्तक में प्रस्तुत है।
विमोचन अवसर पर अरविन्दसिंह मेवाड़ ने बताया कि रॉयल टेक्सटाइल्स ऑफ मेवाड़ पुस्तक में प्रदर्शित परिधान व वस्त्र मेवाड़ की जीवंत विरासत का एक अहम हिस्सा है, जिनमें से कई सिटी पैलेस संग्रहालय, उदयपुर के जनाना महल स्थित गोकुल गैलेरी में प्रदर्शित व संग्रहित हैं। अपनी माताश्री राजमाता साहिबा सुशीला कुमारीजी को पुस्तक समर्पित करते हुए मेवाड ने बताया कि यह मेरे लिए सौभाग्य और सम्मान का विषय है कि मेरी दिवंगत माता ने मेवाड़ की इस पारिवारिक विरासत को भावी पीढ़ी के लिए सावधानीपूर्वक संरक्षित और संभाल कर रखा। श्रीजी ने पुस्तक के प्राक्कथन में अपने बचपन के स्मरणों का उल्लेख प्रस्तुत किया है।
पुस्तक की सम्पादक व लेखिका रोज़मेरी क्रिल तथा सह लेखकों में ज्योति जसोल, अनामिका पाठक व स्मितासिंह ने लम्बे समय तक कठिन परिश्रम कर इसे सूचीबद्ध करते हुए पुस्तक स्वरुप प्रदान किया। यह पुस्तक अनुसंधानकर्ताओं, विद्यार्थियों, जिज्ञासुओं आदि के लिए अति महत्त्वपूर्ण साबित होगी। जाने माने फोटोग्राफर नील ग्रीनट्री ने संग्रह से बहुत की शानदार तस्वीरें खींची हैं, जिन्हें पुस्तक में दर्शित किया गया है। साथ ही पद्मश्री सम्मान से सम्मानित राहुल जैन ने इस परियोजना के संबंध में अपने बहुमूल्य सुझाव प्रस्तुत किये है।

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