उदयपुर। भारत में खेती की जाने वाली तकरीबन 40 फीसदी मिट्टी में जि़ंक की कमी होती है, यानि कुल मिलाकर 60 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन में जि़ंक की कमी है। जिंक की कमी विकासशील देशों में फसलों में बीमारियों का 5वां मुख्य कारण है। इस समस्या के समाधान के लिए इंटरनेशनल जि़ंक एसोसिएशन और हिंदुस्तान जि़ंक लिमिटेड ने फसल उत्पादकता और मिट्टी के स्वास्थ्य पर जि़ंक के प्रभावों के अध्ययन के लिए अपनी तरह की पहली पायलट परियोजना की घोषणा की। इसके लिए उदयपुर में महाराणा प्रताप युनिवर्सिटी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए हैं। इस पायलट परियोजना के द्वारा किसानों को जि़ंक उर्वरक के फायदों के बारे में जानकारी दी जाएगी।
समझौता ज्ञापन के तहत महाराणा प्रताप युनिवर्सिटी में ‘भोजन एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए फसलों में जि़ंक के उपयोग’ पर एक चर्चा का आयोजन किया। इस चर्चा का उद्देश्य जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता, मिट्टी के स्वास्थ्य और मक्का-गेंहू की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जि़ंक के उपयोग के तरीकों और इसके प्रभावों का अध्ययन करना, खेतों में प्रदर्शन और क्षमता निर्माण के माध्यम से किसानों को जि़ंक उर्वरक के उपयोग के बारे में जागरुक बनाना था। परियोजना के तहत युनिवर्सिटी तकरीबन 100 किसानों को जिंक के उपयोग द्वारा उत्पादकता बढ़ाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगी। इसकी शुरूआत गेंहू की फसल से की जाएगी। अगले सीजऩ में मक्के की फसल पर ध्यान दिया जाएगा।
हिन्दुस्तान जिंक के सीईओ अरूण मिश्रा ने कहा कि जिंक एक मुख्य माइक्रोन्यूट्रिएन्ट है जो हमारे शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है। खासतौर महामारी के दौर में इसका महत्व और भी बढ़ गया है लेकिन भारत के लिए चिंताजनक वास्तविकता यह है कि खेती में काम आने वाली तकरीबन 40 फीसदी मिट्टी में जिंक की कमी है, जिसके चलते फसलों में और हमारे आहार में भी जिंक की कमी हो जाती है। ऐसे में जिंक से युक्त खाद्य पदार्थ उगाना और इनका सेवन करना समय की मांग है। इसके मद्देनजऱ खाद्य पदार्थों को जिंक के साथ फोर्टिफिकेशन करना ज़रूरी है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए हिंदुस्तान जिंक ने इंटरनेशनल जिंक एसोसिएशन और महाराणा प्रताप युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तह राजस्थान के उदयपुर में जिंक से युक्त फसलों के उत्पादन पर काम किया जाएगा और आने वाले समय में भारत अपनी फसलों के साथ पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकेगा। इस पायलट परियोजना के तहत फसलों की उत्पादकता, मिट्टी के स्वास्थ्य तथा मक्का-गेंहू की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जि़ंक के उपयोग के आधुनिक तरीकों पर अध्ययन किया जाएगा ताकि हमारे भोजन में जिंक पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहे।
आईजैडए के एक्जक्टिव डायरेक्टर डॉ. एंड्रयु ग्रीन ने कहा कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए न सिर्फ उत्पादकता बढ़ाना ज़रूरी है, बल्कि फसलों की गुणवत्ता में सुधार लाना भी महत्वपूर्ण है। मिट्टी में जि़ंक की कमी के कारण फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है, साथ ही अनाज के दानों में भी जि़ंक की कमी रह जाती है जिसका बुरा प्रभाव मनुष्य और जानवरों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसे में सिंचाई से लेकर बुवाई और कटाई तक इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। इंटरनेशनल जि़ंक एसोसिएशन के अनुसार इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए पर्यावरण एवं स्थायित्व प्रोग्रामों की आवश्यकता है और एसोसिएशन अपने वैज्ञानिक प्रयासों के साथ इस दिशा में प्रतिबद्ध है।
समझौता ज्ञापन पर एमपीयूएटी के वाईस चंासलर डॉ. एन. एस. राठौड़, आईजैडए के एक्जक्टिव डायरेक्टर डॉ. एंड्रयु ग्रीन, जिंक की चीफ मार्केटिंग ऑफिसर अमृता सिंह, एमपीयूएटी के डायरेक्टर रीसर्च डॉ. एस.के. शर्मा, असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. देवेन्द्र जैन, आरसीए के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. गजानन्द जाट की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए। इन दिग्गजों ने फसल उत्पादन में जि़ंक के उपयोग और किसानों को जि़ंक उर्वरक के बारे में जागरुक बनाने के महत्व पर चर्चा की।
इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. सैमित्रा दास, डायरेक्टर, साउथ एशिया, जि़ंक न्युट्रिएन्ट इनीशिएटिव, आईज़ैडए ने कहा कि किसानों एवं संबंधित हितधारकों को इस विषय पर जागरुक बनाना इस समस्या के समाधान का सबसे अच्छा तरीका है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में अनाज उगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 50 फीसदी मिट्टी में जिंक की कमी है, जिसके कारण फसलों में भी जि़ंक और पोषण की कमी रह जाती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए हमने नए एवं आधुनिक उत्पादों/ तकनीकों के प्रस्तावित अध्ययन के लिए सामरिक बहु-आयामी दृष्टिकोण की योजना बनाई है।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नरेन्द्रसिंह राठौड़ ने कहा कि दक्षिणी राजस्थान के लिए यह परियोजना बहुत महत्वपूर्ण है। यहां पर 50 प्रतिशत से अधिक मिट्टी जि़ंक की कमी से ग्रसित है। इस परियोजना के माध्यम से जिंक पर अनुसंधान के द्वारा नई तकनीक के विकास में फायदा मिलेगा तथा अधिक से अधिक जिंक की कमी को दूर करने का अवसर प्राप्त होगा।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय,अनुसंधान निदेशालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस. के. शर्मा ने कहा कि इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से यहां के वैज्ञानिकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जिंक अनुसंधान पर चल रहे नवीन प्रयोगों की जानकारी मिलेगी तथा इस जानकारी को दक्षिणी राजस्थान की कृषि जलवायु दशाओं में किसानों तक पहुंचाने में परियोजना सहायक होगी तथा आने वाले समय में फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ पोषक तत्व सुरक्षा में सहयोग मिलेगा।