उदयपुर के जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल ने दिया कोरोना संक्रमित माँ के प्रीमेच्योर शिशु को नया जीवन

उदयपुर। उदयपुर के जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल में चिकित्सकों ने एक प्रीमेच्योर शिशु को नया जीवन दिया है। जीवन्ता चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल के नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ. सुनील जांगिड़ ने बताया कि उदयपुर निवासी माया पत्नी देवसिंह (परिवर्तित नाम) शादी के 18 साल बाद गर्भवती हुई। गत दिनों माया और उसका पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव हो गया। इस पर ईएसआई हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। ईएसआई हॉस्पिटल में ही गर्भावस्था के 30 सप्ताह (साढ़े सात महीने) में माया को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। गर्भाशय का पानी लगभग ख़त्म हो गया था।
पूरे परिवार की धडक़ने बढऩे लग गई कि अब क्या होगा। कोरोना के चलते प्राइवेट हॉस्पिटल्स में कोई डिलीवरी करने तैयार नहीं था। इसके अलावा बच्चे की देखभाल कौन करेगा। ऐसे में कहीं से पता चला कि उदयपुर में एक ही ऐसा हॉस्पिटल है जहां ऐसे बच्चों की अच्छी देखभाल होती है। इस पर परिजनों ने जीवन्ता हॉस्पिटल में संपर्क किया। डॉ. सुनील जांगिड़ ने बताया कि हमारे पास फ़ोन आया कि माँ कोरोना से ग्रसित है एवं ऑक्सीजन पर है और इमरजेंसी में सिजेरियन करना पड़ रहा है। बच्चे को जन्म के बाद नर्सरी में शिफ्ट करना चाहते हैं। हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल था कि इस प्रीमैच्योर शिशु को कॉमन नर्सरी में रखें तो दूसरे शिशुओं को संक्रमण का खतरा था।
हमारी टीम ने तुरंत कोविड-19 के नियमों के तहत आइसोलेशन एनआयसीयू में सेपरेट एंट्री (प्रवेश) और एग्जिट (निकास) इनक्यूबेटर, वेंटीलेटर आदि की तैयारी की। आपातकालीन स्थिति में सिजेरियन ऑपरेशन करके जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल के नर्सरी में शिशु को भर्ती किया। जन्म के वक्त शिशु का वजन 1400 ग्राम था और उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इस पर जीवन्ता चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल डॉ. सुनील जांगिड़, डॉ. निखिलेश नैन, डॉ. विनोद, डॉ. अमित एवं उनकी टीम ने शिशु को कृतिम श्वसनयंत्र पर रखा।
डॉ. जांगिड़ ने बताया कि जन्म समय से पूर्व होने एवं कम वजन के चलते शिशु को बचाना एक चुनौती था। ऐसे बच्चों का शारीरिक सर्वांगीण विकास पूरा हुआ नहीं होता। शिशु के फेफड़े, दिल, पेट की आंते, लिवर, किडनी, दिमाग, आँखें, त्वचा सभी अवयव अपरिपक्व, कमजोर एवं नाजुक होते हैं और इलाज के दौरान काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आंतें अपरिपक्व एवं कमजोर होने के कारण, दूध पच नहीं पाता है। इस स्थिति में शिशु के पोषण के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व ग्लूकोज़, प्रोटीन्स नसों द्वारा दिए गए। धीरे-धीरे बून्द-बून्द दूध, नली द्वारा दिया गया। शिशु को कोई संक्रमण न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया। शुरुवाती 15 दिनों तक शिशु को कृत्रिम सांस पर रखा गया और 22 दिनों तक आईसीयू में देखभाल की गयी। शिशु के दिल, मस्तिष्क, आँखों की नियमित रूप से चेकअप किया गया। आज शिशु का वजन 1590 ग्राम है और वह स्वस्थ है। उसकी मां उसे दूध पीला रही है।

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