महावीर स्वामी की पड़

-डॉ. तुक्तक भानावत-
पड़ से तात्पर्य पट्ट अर्थात् कपड़ा से है। कपड़े पर जो चित्रकारी की जाती है वह पड़ चित्रण कही जाती है। पड़ को फड़ भी कहा जाता है। सबसे पहले देवनारायण की पड़ बनीं। उसके बाद पाबूजी की पड़ अस्तित्व में आई। ये दोनों प्रसिद्ध लोकदेवता हैं। देवनारायण मुख्यत: गुजर जाति के तथा पाबूजी राईका समाज में सर्वाधिक मान्य हैं। इन दोनों पर सबसे पहले डॉ. महेन्द्र भानावत ने लिखा।
पड़ में इनकी जीवनलीला से जुड़ी सम्पूर्ण गाथा का चित्रण मिलता है। ये चित्र शाहपुरा-भलवाड़ा के चितेरों द्वारा बनाये जाते हैं जो जोशी हैं। इनमें श्रीलाल जोशी ने सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त की। वे पद्मश्री से भी सम्मानित हुए। उन्होंने परम्परा से आगे बढ़ते प्रयोगधर्मी अन्य पड़-चित्र बनाये और विदेशों में भी कई संग्रहालयों में उन्होंने अपना यह योगदान दिया।
भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण प्रसंग पर भीलवाड़ा के कलाकर्मी निहाल अजमेरा ने राजस्थान की पारम्परिक पड़ शैली में महावीर स्वामी की पड़ तैयार करवाकर एक सार्थक अभिनव प्रयोग किया। इस पड़ में दाईं से बाईं ओर चित्रत ऊपर व नीचे दो भाग हैं। ऊपर के भाग में क्रमश: त्रिशला के सौलह स्वपन, इन्द्राणी द्वारा महावीर को सौधर्म इन्द्र को सोपना, राजा सिद्धार्थ और उनके दरबारीगण, जन्मकल्याणक दृश्य, भगवान को मेरु पर्वत पर ले जाना, देव-देवियों द्वारा उनकी स्तुति में नृत्य-गान करना, पर्वत पर जलाभिषेक मनाना, राजकुमार वर्धमान की देव द्वारा सर्प-परीक्षा, संगम देव का अजमुख मानव रूप धारण करना, वर्धमान का महावीर नामकरण एवं पंच परमेष्ठि, अरिहंत, सिद्ध आचार्य, उपाध्याय तथा सर्व साधुगण के चित्र शोभित हैं।
नीचे के भाग में क्रमश: राजकुमार का कौए की ओर इंगित करते हुए कौआ काला भी है कहना, झूला झूलना, दरबारियों के साथ सिद्धार्थ, मधु-बिन्दु, संसार-दर्शन व तपस्या में लीन भगवान महावीर, रूद्र के उपसर्ग, दीक्षा कल्याणक, वस्त्रालंकार का त्याग व पंचमुष्टि केशलुंचन, आहार देती हुई चन्दनबाला, इन्द्रभूति गौतम का मान भंग, देवताओं द्वारा निर्मित समवसरण में भगवान का धर्मप्रवचन तथा देवताओं द्वारा महावीर के मोक्ष गमन के पश्चात उनके पार्थिव शरीर का अग्नि-संस्कार करना विषयक चित्र मिलते हैं। इस प्रकार इस पड़ में जैसे महावीर का समग्र जीवनचरित ही मूर्तिवंत हो उठा है।
पाबूजी की पड़ की तरह यह पड़ मंच पर दर्शकों के सम्मुख खड़ी कर दी जाती है। तत्पश्चात इसका गान-वाचन प्रारंभ होता है। इसमें दो व्यक्ति होते हैं। एक पड़ चित्रों के बारे में पूछता जाता है जबकि दूसरा नाटकीय लहजे में नृत्यमय लयकारी द्वारा राजस्थानी कथाशैली में उन्हें अरथाता रहता है।    

Related posts:

कोटड़ा में नारायण सेवा सहायता शिविर

OYO to add over 1000 properties to its leisure offering in 2022

विश्व जल दिवस पर हिंदुस्तान जिंक द्वारा झील स्वच्छता अभियान 

आरएनटी मेडिकल कॉलेज में मतदाता जागरूकता कार्यशाला

रोटरी क्लब मीरा ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

मोटोरोला की भारत में नई पेशकश

Urban Square Mall (Phase-I) is all set to open for shoppers in Dec. 2022

नारायण सेवा के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल को राष्ट्रीय पुरस्कार 

जिंक फुटबाल यूथ टूर्नामेंट का शानदार आगाज, डीएवी एचजेडएल जावर माइन्स (लडक़े) और लकी फुटबाल क्लब (लड़क...

केबिनेट मंत्री खराड़ी ने किया पोपल्टी में पंचायत भवन और पुलिया का लोकार्पण

उदयपुर में तीन दिवसीय योग महोत्सव 8 मार्च से

हिन्दुस्तान जिंक के आतिथ्य में इंट्रा जोनल खान बचाव प्रतियोगिता का समापन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *