उदयपुर (Udaipur) (डॉ. तुक्तक भानावत) । मूलत: बड़ीसादड़ी किन्तु कोटा में स्थायी रूप से रहते स्व. लक्ष्मीलालजी जारोली के सुपुत्र अशोकजी का 26 मई को असामयिक निधन हो गया। वे अपने साथ माता सोबाकबाई, पत्नी रीना, पुत्र निखिल, बहू दीक्षा तथा पुत्री सलोनी का कर्मठ, कर्मशील संस्कारी परिवार लिए थे।
उनकी स्मृति में 28 मई को जूम एप के जरिये श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसमें परिजनों ने उनकी उपलब्धियों का लेखांकन किया। संयोजन डॉ. संजीव भानावत ने किया।
दिल्ली से तृप्ति-अमरसिंहजी मेहता तथा भव्य ने कहा कि दूसरों की मेहमाननवाजी कोई उनसे सीखे। वे हर समय आतिथ्य सत्कार में पलक पांवड़े लिए तत्पर रहते थे। शौकीन मिजाज के साथ अच्छा खाना-पीना, रहना, पहनना और करीने से जीवन जीना उनकी खुशमिजाजी में अहम था।
उदयपुर से डॉ. महेन्द्र भानावत ने कहा, किडनी, शूगर, बी. पी., हरनिया, पाइल्स जैसी बीमारियां रहते भी उन्होंने कभी हार नहीं खाई और अपना आत्मबल शेरे बनाये रखा। एक तरह से वे मृत्युजीवी थे परन्तु कोरोना की चपेट ने उन्हें भी गंधी दे दी जिससे वे बेसमय कालग्रसित हुए।
मुम्बई से राजीव-रेखा भानावत बोले, भव्येश-हेतल के विवाह में रीना-अशोकजी ने बड़े उत्साह-उल्लास से शरीक हो हमारी शोभा बढ़ाई और सभी ने मिलकर खुशियां बांटी। इनके साथ कालूलाल-सरोज, विशाल-लीना मेहता, श्रीपाल-मनोरमा तथा मयंक नाहर, नीलेश-विजेता भद्रा ने भाग लिया।
बीकानेर से कविता-डॉ. सतीशजी मेहता ने कहा, वे शिकागो में विकल्प की पढ़ाई की जानकारी लेते हमें प्रेरित करते रहते कि उसकी भणाई में हर सम्भव सहयोग करते रहें और जब उसने वहीं जोब शुरू किया तो बोले, माता-पिता की सबसे बड़ी धरोहर अपने पुत्र को हीरे की तरह तराशकर रत्न बनाना है। यहीं से रूद्ध गले से रीना की माता सुधा नागोरी बोली, विज्ञान में उच्चशिक्षा के बावजूद रीना ने नौकरी नहीं कर पूरे परिवार की सेवा-सुश्रुषा का दायित्व सम्भाल वाहवाही ली। अशोकजी को अपनी किडनी दी। महीने-महीने भर नडिय़ाद रह माकूल इलाज कराया। अमिताभ-कल्पना बोली, तन-मन से तो दीदी सेवा में लगी रहीं पर धन खर्ची का भी हाथ सदा खुला रखा। प्रमोद-अनिता ने कहा, शरीर नश्वर है सो व्यक्ति तो चला जाता है पर इस चलाचली के खेल में स्मृतियां रह जाती हैं जो सालती रहती हैं। उनके साथ राजा, जिनेश, वैभव भी उपस्थित रहे।
उदयपुर से डॉ. तुक्तक-रंजना ने कहा, इलाज के लिए दीदी को कईबार नडिय़ाद जाना पड़ा। उदयपुर से गुजरते हम उनसे भेंट करने हाईवे चले जाते। दो-एकबार तो उन्होंने शहर में थोड़ी देर के लिए ही सही, बड़ी भुआजी सोवनबाई (98), भाणजी उमरावबाई तथा बहिन डॉ. कहानी-जितेन्द्रजी मेहता एवं बच्चे काव्या, युक्ता, शब्दांक, अर्थांक से भलीप्रकार मिलकर गंतव्य पकड़ा। सचमुच में वे मृत्युंजय अ-शोक ही थे।
जयपुर से डॉ. संजीव-कौशल्या, स्वस्तिक-सोनाली एवं धनुश्री भानावत बोले, सच है, सीखने के लिए दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। अपने आसपास ही अच्छाइयों का लड़ालूम है। बस, केवल दृष्टि चाहिए। कोटा में निखिल-दीक्षा का विवाह पूरे परम्परागत रीति नेगचारों के साथ किया गया उनके हाथों पहला विवाह था। सभी दूर-सुदूर के समधियों को आमंत्रित कर उन्होंने जो उमंग उल्लास और गाजाबाजा कर सीख-सीखावण तक की मांगलिक विधियां पूरी कीं वे सचमुच में अभूतपूर्व यादगार ही बनी हुई हैं।
इनके अलावा उदयपुर से रूचिरा-अनूप तथा विहान गुप्ते, डॉ. शूरवीर-कल्पना भाणावत, सोहनलाल-कलादेवी तथा नरेन्द्र वया, जोधपुर से प्रकाश-सुमित्रा नागोरी, नरेश-रंजु नागोरी, भीलवाड़ा से महावीर-सुनीता तथा वीतराग, श्रेया, भव्या नागोरी, लता-फतहसिंहजी मेहता, उमरगांव से डिंपल-राजेश भद्रा, इंग्लैण्ड से पारूल-प्रणय, समर्थ, उर्वी प्रभात, सिंगापुर से भव्या-विकास गेलड़ा एवं जावद से सुन्दरलाल चौधरी ने अपनी उपस्थिति तथा वैचारिक योगदान से अशोकजी के प्रति श्रद्धा-भाव व्यक्त करते परमपिता परमेश्वर से मृतात्मा को शान्ति तथा परिवारजनों को असह्य दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की।