राजस्थान में हर बारह व्यक्ति में से एक को किड्नी की समस्या

उदयपुर। हर बार की भांति इस वर्ष भी वल्र्ड किडनी डे मार्च के दूसरे गुरुवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष की थीम है ‘किडनी का स्वास्थ्य सभी के लिए’ किडनी दिवस का एक ही उद्देश्य है कि न सिर्फ जनसाधारण बल्कि हेल्थ केयर वर्कर्स में भी किडनी की बीमारियों के प्रति जागरुकता एवं समझ पैदा की जाए क्योंकि स्पष्ट रुप से यह देखा गया है की किडनी की जटिल कार्यप्रणाली एवं इसकी बीमारियों की जटिलता की समझ हेल्थ केयर वर्कर्स एवं अन्य स्ट्रीम के चिकित्सकों में भी कम पाई जाती है।
क्रोनिक किडनी की समस्या एक गंभीर और बहुतायत में पाई जाने वाली बीमारी है जो कि जानकारी और इलाज के अभाव में गंभीर रुप धारण कर सकती है। जहां तक राजस्थान में किडनी बीमारियों का सवाल है, राजस्थान में किडनी बीमारियों के अध्ययन करने हेतु उदयपुर में पारस जेके हॉस्पिटल के डॉ. आशुतोष सोनी, कंसलटेंट नेफ्रोलॉजी ने बीकानेर, जोधपुर, कोटा एवं उदयपुर के अस्पतालों के डाटा का विश्लेषण किया जिसमें पता चला कि राजस्थान में हर बारह व्यक्ति में से एक को किडनी की किसी ना किसी समस्या से सामना करना होता है।
डॉ. आशुतोष सोनी ने बताया कि सिरोही से जैसलमेर तक किडनी स्टोन बहुतायत से पाये जाते हैं। अधिक गर्म जलवायु, पानी के कम सेवन एवं शरीर में मौजूद मेटाबोलिक प्रक्रिया में उतार चढ़ाव के कारण इन क्षेत्रों में किडनी में स्टोन या पथरी बनने की समस्या आम है। किडनी में बने स्टोन जब पेशाब के रास्ते को रोक देते हैं तो उसके बढ़े हुए दबाव से किडनी में स्थायी परिवर्तन अथवा सीकेडी की संभावना बढ़ जाती है। सुखी जलवायु के लोगों को दिन में तीन से चार लीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता होती है जिससे वे अपनी किडनी की स्वास्थ्य को सामान्य बनाएं रख सकें। राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में किडनी बीमारी का प्रमुख कारण दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तरह अब भी डायबिटीज है। क्रोनिक किडनी बीमारी के लगभग आधे मरीज वे हैं जिनमें लंबी अवधि के शुगर की बीमारी का प्रभाव किडनी पर आ जाता है। डायबिटीज खून में शुगर का बढऩा मात्र नहीं है बल्कि इस बढ़ी हुई शुगर का असर शरीर के हर सिस्टम पर पड़ता है जिसमें तंत्रिकाएं, आंखें, किडनी एवं हृदय के सिस्टम प्रमुख हैं।
जब किसी डायबिटीज के मरीज की आंखों अथवा पांवों में सूजन आना शुरु हो जाती है इसका अर्थ है कि किडनी पर शुगर का काफी प्रभाव आ चुका है एवं ये समय के साथ आगे बढ़ेगा परंतु इस स्थिति में आने से पूर्व हर डायबिटीस मरीज को वर्ष में कम से कम एक बार नेफ्रोलॉजिस्ट से परीक्षण करवा कर अपनी किडनी के स्वास्थ की जांच करा लेनी चाहिए ताकि इस बिमारी को आगे बढऩे से रोका जा सके। राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में डायबिटीज के मरीजों में किडनी बीमारी के प्रति जागरुकता एवं ज्ञान का अभाव है एवं ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी तभी होती है जब उनके गुर्दे पर डायबिटीज का प्रभाव आ चुका होता है। शुगर को नियंत्रित मात्रा में रखकर लंबे समय तक गुर्दे की बीमारी से बचा जा सकता है।
शहरी क्षेत्रों में किडनी बीमारी का दूसरा प्रमुख कारण अनियंत्रित ब्लड प्रेशर है जिसके कारण लगभग 25 प्रतिशत किडनी के मरीज पाए जाते हैं। उच्च रक्तचाप के मरीज का ब्लड प्रेशर जब दो से अधिक दवाइयों से कंट्रोल ना हो तो या तो उसकी किडनी प्रभावित को चुकी है उच्च रक्तचाप से अथवा खराब किडनी के कारण रक्तपात बढ़ा हुआ है।
3 से 5 प्रतिशत मरीजों मे संयुक्त रूप से किसी की ग्लोमेरुलर डिजीज और सिस्टिक किडनी डिजीज भी पाई जाती हैं। गुर्दे अगर 15 प्रतिशत से कम काम कर रहे हैं तो जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए डायलिसिस की आवश्यकता होती है। राजस्थान में चल रही चिरंजीवी योजना एवं आरजीएचएस योजना के तहत हजारों लाभार्थी डायलिसिस का लाभ तो उठा रहे है लेकिन कुछ शहरों को छोड़ कर बाकी जगह गुर्दा विशेषज्ञों की अनुपस्थिति के कारण खून के डायलिसिस की गुणवत्ता प्रश्नचिन्ह के घेरे में रहती है। पेट की डायलिसिस अथवा सीएपीडी ऐसी प्रक्रिया है जिसे मरीज बिना किसी मशीन अथवा चिकित्सक के घर पर ही कर सकते है एवं इस प्रक्रिया को राजक्षय दिये जाने की आवश्यकता है।

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