उदयपुर। पारस जे. के. हॉस्पिटल में विश्व हैड इन्जरी अवेयरनेस दिवस मनाया गया। हॉस्पिटल के डायरेक्टर विश्वजीत कुमार ने बताया कि इस दौरान नर्सिंगकर्मियों के लिए ट्रोमा जैसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए वर्कशॉप आयोजित की गई।
वर्कशॉप में न्यूरो सर्जन डॉ. अजीत सिंह ने जानकारी दी कि गत वर्ष कोरोना से ज्यादा जीवन की क्षति सडक़ हादसों के कारण हुई है जो कि ट्रोमा की भयानकता बयां करती है। सडक़ पर ट्रोमा होने के बाद मरीज को एक घंटे के भीतर मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भर्ती करवाना चाहिये। इस दौरान मरीज ज्यादा हिले-डुले नहीं का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही मरीज को सीधे प्लेन सरफेस पर करवट देकर लेटाकर लाना चाहिये। कहीं से खून आ रहा है तो उसे साफ कपड़े से साफ कर बंाध देना चाहिये।
न्यूरो सर्जन डॉ. अमितेन्दु शेखर ने बताया कि सावधानी बरतकर ही ट्रोमा से बचा जा सकता है। सडक़ हादसों में होने वाले ट्रोमा से बचने के लिए यातायात नियमों का पालन करना चाहिये। बुजुर्गों को घर, पार्क या आसपास होने वाले ट्रोमा से बचाने के लिए घरों में लाइटिंग अच्छी होनी चाहिये, एंटी स्लिप मेट का प्रयोग करना चाहिये व जूते चप्पल आदि उत्कृष्ट गुणवत्ता के होने चाहिये। इससे घर पर होने वाले ट्रोमा से बचा जा सकेगा। कई बार सिर में अंदरूनी चोट लगने पर बाहर से सब ठीक दिखाई देता है, लेकिन बाद में चोट असर दिखाती है। चोट लगने के बाद बेहोश होना, खून निकलना, उल्टी होना, नाक और कान से खून निकलना, ठीक से सुनाई न देना, हार्ट बीट कम, ज्यादा होना, दौरे पडऩा जैसे लक्षण नजर आते हैं। ऐसे में पैरालिसिस या कोमा तक का खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत नजदीकी हॉस्पिटल में ले जाना चाहिये। वर्कशॉप के दौरान पूर्व उपचारित ट्रोमा मरीजों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।