उदयपुर। सहारा इंडिया परिवार ने एक वक्तव्य में कहा कि पिछले 75 दिनों में अपने 10,17,194 सदस्यों को 3,226.03 करोड़ रूपये का भुगतान किया है। इस अवधि में भुगतान की गयी कुल राशि में से 2.18 प्रतिशत राशि का भुगतान विलंबित-भुगतान संबंधी शिकायतकर्ताओं के निवेदनों पर किया गया। विलंबित भुगतान के शिकायतकर्ताओं की संख्या निवेशकों की कुल संख्या का 0.07 प्रतिशत है। सहारा के भारतभर में लगभग 8 करोड़ निवेशक हैं। सहारा ने पिछले 10 वर्षों में अपने 5,76,77,339 निवेशकों को 1,40,157.51 करोड़ रूपये का भुगतान किया है। इसमें से केवल 40 प्रतिशत मामले पुनर्निवेश के हैं जबकि शेष को नकद भुगतान किया गया है।
सहारा समूह भुगतानों में विलंब को स्वीकारता है जो प्राथमिक तौर पर पिछले 8 वर्षों से माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध (एम्बार्गो) के कारण है। यदि समूह की (कोऑपरेटिव सहित) किसी भी परिसंपत्ति को बेचकर, गिरवी रखकर या संयुक्त उद्यम से कोई भी धन जुटाया जाता है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार यह सारा धन सहारा-सेबी खाते में जमा हो जाता है। सहारा के एक अधिकारी ने बताया कि हम इसमें से एक रूपये का उपयोग भी संस्थागत कार्य के लिए नहीं कर सकते, यहां तक कि निवेशकों के पुनर्भुगतान के लिए भी नहीं। दूसरी ओर स्थिति यह है कि सहारा अब तक लगभग 22,000 करोड़ रूपये मय ब्याज के सहारा-सेबी खाते में जमा करा चुका है, जबकि पिछले 8 वर्षों में देशभर के 154 अखबारों में सेबी द्वारा 4 बार विज्ञापन देने के बावजूद सेबी निवेशकों को केवल रूपये 106.10 करोड़ का ही भुगतान कर सका है। अपने अंतिम विज्ञापन में जो करीब एक वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था, सेबी ने स्पष्ट कर दिया था कि वह आगे कोई भी दावा स्वीकार नहीं करेगा यानी कि अब कोई दावेदार नहीं है। सेबी के पास दावे न आने का एकमात्र कारण यह था कि सहारा समूह अपने निवेशकों का पुनर्भुगतान पहले ही कर चुका था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार रूपये 22,000 करोड़ की यह राशि सत्यापन के पश्चात अंतत: सहारा को वापस मिल जाएगी।
सहारा के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि मीडिया की कुछ खबरों में लिखा गया है कि सहारा चिटफंड व्यवसाय में है, यह पूरी तरह गलत और भ्रामक सूचना है। सहारा कभी भी चिटफंड व्यवसाय में नहीं था, न पहले कभी रहा और न अब है। सहारा ने हमेशा नियामकीय विधिक ढांचे के अंतर्गत कार्य किया है। हमने एक-एक जमाकर्ता का भुगतान किया है और निवेशकों का हित सर्वोपरि है। सहारा पिछले 42 वर्षों से अपने सदस्यों की निष्ठा से सेवा कर रहा है और आगे भी ऐसा करना जारी रखेगा। सदस्यों से जो भी धन प्राप्त किया गया है वह पूरी तरह विधिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए लिया गया है परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के प्रभाव के कारण थोड़ा विलंब से पुनर्भुगतान कर रहे हैं। तथापि, हम विलंबित अवधि का ब्याज भी दे रहे हैं। इस आशय की जानकारी अखबारी विज्ञापनों के माध्यम से सभी निवेशकों तक पहुंचा दी गयी है। हम यह भी बताना चाहते हैं कि सहारा इंडिया परिवार के पास उसकी देनदारी से तीन गुना ज्यादा परिसंपत्तियां हैं। अत: हर निवेशक को अपने पुनर्भुगतान को लेकर पूर्णत: आश्वस्त रहना चाहिए।